प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद द्वारा बुधवार को पेश की गई आर्थिक समीक्षा में वर्ष 2012-13 में वृद्धि दर 7.5 से 8.00 फीसद तक रहने का अनुमान लगाया गया है। ऐसे समय जब यूनान संकट, ईरान संकट और अन्य वैिक कारकों से वि अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित है और चीन जैसे देश में विकास की रफ्तार घटी है, देश की आर्थिक वृद्धि की रफ्तार भी सिर्फ 7.1 फीसद ही रहने का अनुमान है। राजकोषीय घाटा 4.6 फीसद तक सीमित रखने का लक्ष्य भी पूरा होता नहीं दिख रहा है। देश की आर्थिक वृद्धि दर 7.5 से 8.00 फीसद के बीच पहुंचाना सरकार के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती साबित होगा। इसके बावजूद सरकार आर्थिक वृद्धि दर को रफ्तार देने के लिए प्रतिबद्ध है। इसलिए इस बार के आम बजट में आम आदमी को कुछ ‘खास’
मिलना मुश्किल ही नजर आ रहा है। बजट में लोक लुभावन घोषणाओं की उम्मीद इस बार इसलिए भी कम नजर आ रही है क्योंकि बजट पेश होने तक राज्यों के विधानसभा चुनाव खत्म हो चुके होंगे और आम चुनाव में भी अभी काफी समय है इसलिए सरकार को वोटरों को लुभाने की फिलहाल कोई जरूरत नहीं दिखाई देती। ऐसे में सरकार का ध्यान अर्थव्यवस्था को गति देने पर केंद्रित रहेगा। 16 मार्च को पेश होने वाले आम बजट में अर्थव्यवस्था को गति देने वाले कारकों जैसे औद्योगिक विकास को बढ़ावा, कृषि उपज में वृद्धि, विनिवेश कार्यक्रम में गति लाना, निर्यात में वृद्धि, कर सुधारों को आगे बढ़ाना और प्रति व्यक्ति आय में इजाफा करने जैसे मुद्दों पर सरकार का ध्यान केंद्रित होगा। मंदी के चलते ब्याज दरें लगातार बढ़ने से देश के उद्योग धंधे बुरी तरह प्रभावित हैं। सरकार ब्याज दरों में कटौती कर सकती है और इस कटौती से बैंकों पर पड़ने वाले बोझ को कम करने के लिए बैकिंग क्षेत्र को प्रोत्साहन के रूप में 10 हजार करोड़ रुपए की अतिरिक्त मदद भी दे सकती है। बैंकों की हालत सुधरने से उद्योगों को कर्ज मिलने में आसानी होगी जिससे औद्योगिक उत्पादन व निर्यात बढ़ेगा। सरकार कृषि उपज बढ़ाने पर भी ध्यान केंद्रित करेगी ताकि महत्वपूर्ण खाद्यान्नों की आयात पर निर्भरता कम हो सके और विदेशी मुद्रा भंडार से इस मद में खर्च होने वाले कोष को सुरक्षित रखा जा सके। अर्थव्यवस्था को गति देने के लिए सरकार के सामने सबसे बड़ी समस्या धन की होगी। इससे निपटने के लिए सरकार विनिवेश कार्यक्रमों में गति ला सकती है। सेवाकर के दायरे में नई वस्तुओं को लाया जा सकता है और जीएसटी लागू करने की प्रक्रिया तेज हो सकती है। डीजल व रसोई गैस पर सब्सिडी में कटौती भी संभव है। हालांकि बजट लोक लुभावन नहीं होगा लेकिन डीटीसी के कुछ प्रावधान लागू करके सरकार वेतनभोगियों को कुछ राहत अवश्य प्रदान कर सकती है।
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