संप्रग सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि का सच गरीबों के लिए बहुत कड़वा है। गेहूं की रिकॉर्ड उपज के बावजूद आटे और गेहूं की कीमत में दो से ढाई गुना का फर्क है। दाल भी दलहन के मुकाबले तीन गुनी तक महंगी है। यह इसका प्रमाण है कि खाद्यान्न पैदावार 25.50 करोड़ टन पहुंचने के बाद भी सरकार बाजार संभालने में विफल रही है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने मंगलवार को संप्रग-दो सरकार के तीन साल पूरे होने पर अनाज के बंपर उत्पादन को अपनी सबसे बड़ी उपलब्धि बताया। यह सच भी है। लेकिन, बाजार में आटे और दाल की कीमतों पर इसका कोई असर नहीं है। सरकार की खाद्य नीति में असंतुलन है। खाद्य उत्पादों पर लगाम कसने वाला प्रशासनिक अमला हार चुका है। खाद्यान्न प्रबंधन की खामियां इसके लिए जिम्मेदार हैं। मांग और आपूर्ति के सिद्धांत के विपरीत बाजार सटोरियों और जमाखोरों के हाथों में खेल रहा है। अनाज की भारी पैदावार पर सरकार इतरा रही है, लेकिन उसके प्रबंधन की चूक पर वह चुप्पी साधे है। तभी तो जिंस बाजार में गेहूं साढ़े नौ से 11 रुपये किलो और आटा 20 से 25 रुपये किलो बिक रहा है। इसी तरह 33 रुपये किलो की अरहर और उसकी दाल 70 रुपये किलो। खुले बाजार में गेहूं समर्थन मूल्य 1285 रुपये प्रति क्विंटल से नीचे यानी 950 से 1100 रुपये क्विंटल पर बिक रहा है। हैरानी यह कि जिंस बाजार में गेहूं के आटे का मूल्य 20 रुपये से नीचे नहीं है। प्रीमियम क्वालिटी के नाम पर तो यह 25 से 30 रुपये किलो तक बिक रहा है। ब्रांडेड आटे का मूल्य इससे भी अधिक है। दालों के मूल्य तो और भी अतार्किक तरीके से बढ़ाए गए हैं। घरेलू बाजार में अरहर 3300/3400 रुपये प्रति क्विंटल बिक रही है जबकि अरहर दाल 7000 से 7500 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गई है। दालों का प्रसंस्करण करने वालों की मानें तो प्रति किलो दाल पर आठ से दस रुपये प्रति किलो की लागत आती है। तैयार दाल के मूल्य खुदरा बाजार में बहुत अधिक हैं।
No comments:
Post a Comment