Monday, May 28, 2012

पेट्रोल बम का धमाका


पेट्रोल की कीमतें बढ़ने वाली हैं इसका संकेत वित्तमंत्री प्रणव मुखर्जी ने पिछले दिनों ही यह कह कर दे दिया था कि लोगों को अब कड़े फैसलों के लिए तैयार रहना चाहिए। लेकिन एक झटके में ही पेट्रोल की कीमत दस फीसद बढ़ा दी जाएगी, इसका अंदाजा शायद किसी को नहीं रहा होगा। इस बढ़ोत्तरी के बाद पेट्रोल सत्तर रुपए लीटर की सीमा पार कर गया है और आश्चर्य नहीं यदि यूपीए सरकार की इस दूसरी पारी के खत्म होते-होते पेट्रोल सौ रुपए की सीमारेखा छूने लगे। केंद्र सरकार को यह अंदाजा तो है कि पहले ही महंगाई से त्रस्त लोगों के लिए यह वृद्धि कितना पीड़ादायक होगी, इसीलिए वित्तमंत्री ने पल्ला झाड़ते हुए कह दिया कि पेट्रोल की कीमत पर सरकार का कोई नियंतण्रनहीं है और यह जवाबदेही तेल कंपनियों की है जो बाजार के हालात के मद्देनजर फैसला लेती हैं। शायद यही दिखाने के लिए इस वृद्धि की घोषणा उस वक्त हुई, जब पेट्रोलियम मंत्री जयपाल रेड्डी देश के बाहर थे। लेकिन आम आदमी क्या इतना नादान है जो यह भी नहीं जानता कि सरकारी हरी झंडी के बिना तेल कंपनियां ऐसी चोट लगाने की सोच भी नहीं सकतीं! तेल कंपनियां क्या इस इंतजार में थीं कि संसद का सत्र खत्म हो और यूपीए सरकार अपनी दूसरी पारी का तीसरा साल पूरा करने का जश्न मना ले उसके बाद ही देश को यह कड़वी खुराक पिलानी है! अब एनडीए के नेतृत्व में विपक्षी पार्टियां बंद के जरिए इस बढ़ोतरी के विरोध का दिखावा कर रहीं हैं तो तृणमूल और डीएमके जैसे यूपीए के घटक दल यह शोर मचा रहे हैं कि उनसे पूछे बिना ऐसा कैसे कर दिया गया! पिछली बार पेट्रोल के दाम बढ़ते ही बगावत पर उतर आने वाली तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी के सुर इस बार उतने कठोर नहीं दिख रहे हैं। उन्हें शायद यह अंदाज हो गया हो कि समाजवादी पार्टी के सरकारी खेमे के निकट पहुंच जाने के बाद सरकार पर अब उनकी पकड़ पहले वाली नहीं रह गयी है। इस बढ़ोत्तरी के लिए तेल कंपनियों के माथे भी तमाम ठीकरे नहीं फोड़े जा सकते हैं क्योंकि असल खलनायक तो लगातार बदहाल होती आर्थिक हालत में छिपा है। डॉलर के मुकाबले रुपए की गिरावट अब चिंताजनक रूप लेने लगी है और जिस देश की जरूरत का अस्सी फीसद पेट्रोलियम आयात पर टिका हो, उसके लिए सस्ता पेट्रोल शायद सपने में भी संभव नहीं। लेकिन कड़े फैसलों
की तो यह पहली कड़ी है। अब रसोई गैस, डीजल और कैरोसिन की कीमतों पर पड़ने वाली चोट का इंतजार है। पेट्रोल के मुकाबले डीजल का इस्तेमाल काफी अधिक है और इन पर दी जाने वाली सब्सिडी हमारी तेल कंपनियों के लिए घाटे का मुख्य कारण है। लेकिन, इन पर हाथ डालने के लिए सरकार को कलेजा और मजबूत करना पड़ेगा क्योंकि इसका असर खासतौर पर ग्रामीण इलाकों पर पड़ेगा। रसोई गैस की कीमत बढ़ा कर सरकार क्या गृहणियों के कोप का सामना कर पाएगी! पेट्रोल की कीमत में ऐसी उछाल आसमान छूती महंगाई को और हवा देगी, इतना तो तय है। बाइक और कार की सवारी करने वालों को घर से निकलने के पहले दो बार सोचना पड़ेगा तो इनका उत्पादन करने वाले कंपनियों के माथे पर भी शिकन पड़ना तय है। ऑटो वाले अब किराया बढ़ाए बिना मानेंगे नहीं और कहीं डीजल के दाम भी बढ़ गए तो फिर दिल थाम कर बैठने के सिवा दूसरा चारा नहीं बचेगा।

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