महंगाई हो या मंदी, आर्थिक तंगी के नाम पर खर्च कटौती के लिए सरकार की नजर सबसे पहले गरीबों और किसानों को मिलने वाली सब्सिडी पर जाती है। योजना आयोग, रिजर्व बैंक से लेकर तमाम अर्थशास्त्री और उद्योग जगत के लोग इसी सब्सिडी को लेकर हायतौबा मचाते हैं। आपको यह जानकर हैरत होगी कि सब्सिडी की यह रकम सिर्फ डेढ़ लाख करोड़ रुपये ही है। इसमें भी वह कैंची चलाने की उत्सुकता दिखा रही है। इसके उलट केंद्र सरकार ने टैक्स छूट और रियायतों के रूप में उद्योगपतियों पर साढ़े चार लाख करोड़ रुपये से ज्यादा लुटा डाले। यह राशि लगातार बढ़ती जा रही है। संसद को वित्त मंत्रालय द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक, बीते साल केंद्र सरकार ने उद्योगपतियों को तमाम तरह की टैक्स छूट, रियायतों और प्रोत्साहनों के तौर पर 4.6 लाख करोड़ रुपये बांटे। केंद्रीय उत्पाद और सीमा शुल्क से छूटों के रूप में ही 3.73 लाख करोड़ रुपये की रकम सरकारी खजाने तक पहुंचने के बजाय उद्योगपतियों की तिजोरी में चली गई। इसमें निर्यात पर दी गई सब्सिडी और रियायतें शामिल नहीं हैं। वहीं, 31 मार्च, 2011 को समाप्त पिछले वित्त वर्ष के दौरान गरीबों और किसानों के नाम पर सरकार ने 1.54 लाख करोड़ रुपये की सब्सिडी दी है। इसमें भी आम आदमी को खाद्यान्न उपलब्ध कराने पर 60,600 करोड़ रुपये गए हैं। पेट्रोल, डीजल, केरोसीन और रसोई गैस के मद में 38,000 करोड़ रुपये की सब्सिडी मिली है। किसानों को सस्ती खाद के लिए उर्वरक कंपनियों को 55,000 करोड़ रुपये की सरकारी मदद मुहैया कराई गई है। आम आदमी के लिए दी जाने वाली सब्सिडी भी बढ़ रही है, लेकिन यह अमीरों को प्रदान की गई इमदाद के सामने कुछ भी नहीं है।
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