Friday, June 1, 2012

सरकारी सुस्ती ने अर्थव्यवस्था को नीचे धकेला


फैसले लेने में सरकार की सुस्ती, ऊंची ब्याज दरों और खराब वैश्विक हालात की तिकड़ी ने देश की अर्थव्यवस्था को नीचे धकेल दिया। तेज रफ्तार से दौड़ चुकी अर्थव्यवस्था अब विकास की हिंदू दर की ओर फिर लौटने लगी है। बीते वित्त वर्ष 2011-12 की चौथी तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की विकास दर छह फीसदी से नीचे रही है। गत नौ साल में यह देश की सबसे कम आर्थिक विकास दर है। सरकार की नाकामी से बदहाल हुई अर्थव्यवस्था साफ संकेत दे रही है कि चालू वित्त वर्ष 2012-13 में विकास की रफ्तार और घट सकती है। सरकार के ताजा आंकड़ों के मुताबिक चौथी तिमाही (जनवरी-मार्च) में जीडीपी दर घटकर 5.3 प्रतिशत पर आ गई है जो बीते वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में 6.1 प्रतिशत थी। चौथी तिमाही में विकास दर चौंकाने वाली तेजी से गिरी है। निवेश व खर्च की दर में आ रही कमी का इशारा समझें तो अभी स्थितियां और खराब हो सकती हैं। सालाना आर्थिक विकास दर भी अनुमानित 6.9 के बजाय 6.5 प्रतिशत पर ही सिमट गई है। जीडीपी के आंकड़ों का असर वित्तीय बाजारों पर भी हुआ। शेयर बाजार लुढ़क गया। रुपया भी गुरुवार को जीडीपी के आंकड़े आने के बाद न्यूनतम स्तर को छू गया। कृषि, खनन और मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र ने अर्थव्यवस्था का काम बिगाड़ दिया है। कृषि क्षेत्र की धीमी रफ्तार चौंकाने वाली है। सरकार की नीतिगत सुस्ती ने खनन क्षेत्र की विकास दर को बुरी तरह प्रभावित किया है। बीते वित्त वर्ष में महंगे कर्ज और वैश्विक अर्थव्यवस्था में मांग घटने से मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र में उत्पादन कम होने की रफ्तार बहुत तेज रही। चौथी तिमाही में तो यह रफ्तार शून्य से 0.3 प्रतिशत नीचे चली गई। अर्थव्यवस्था में छाई सुस्ती ने उद्योगों की चिंता बढ़ा दी है। सरकार का खजाना फिलहाल सुस्ती दूर करने के लिए किसी तरह का वित्तीय पैकेज देने की स्थिति में नहीं है। निर्यात के मुकाबले आयात ज्यादा होने से चालू खाते का घाटा बढ़ रहा है। राजकोषीय घाटा भी सरकार के नियंत्रण से बाहर हो रहा है। ऐसे में रिजर्व बैंक के जरिए ब्याज दरों में राहत देने के अलावा सरकार के पास कोई फौरी उपाय नहीं बचा है। रिजर्व बैंक अगले महीने की 18 तारीख को मौद्रिक नीति की मध्यतिमाही समीक्षा करने वाला है।

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