पंजाब में सत्तारूढ़ प्रकाश सिंह बादल सरकार ने बुधवार को विधानसभा में 2012-13 का बजट पेश किया। वित्त मंत्री परमिंदर सिंह ढींढसा ने 3123.31 करोड़ रुपये के राजस्व घाटे वाले इस बजट में कोई नया कर नहीं लगाया गया है। साथ ही सरकार ने खर्च पर अंकुश के तमाम उपाय किए हैं। ढींढसा ने आतंकी दौर में बढ़े खर्चो और आमदनी के उपाय न किए जाने को बजट घाटे की मुख्य वजह करार दिया है। इसके अलावा कर्मचारियों व पेंशनरों के महंगाई भत्ते में पहली जनवरी, 2012 से सात प्रतिशत बढ़ोतरी का ऐलान भी किया गया है। इससे 745 करोड़ रुपये की अतिरिक्त देनदारी का बोझ बढ़ेगा। खर्च पर अंकुश की दिशा में नए वाहनों की खरीद पर पाबंदी, सरकारी वर्गो के ईधन, कार्यालयों के बिजली व टेलीफोन बिल और कार्यालय खर्चो पर दस प्रतिशत की कटौती, वाहनों के रखरखाव व मरम्मत खर्च में कटौती, सरकारी दफ्तरों की मरम्मत व साजोसामान पर पूरी पाबंदी, इस साल रिटायर हो रहे सरकारी कर्मचारियों को छोड़कर बाकी कर्मचारियों की एलटीसी सुविधा पर एक साल की रोक लगाई गई है। मंत्रियों और मुख्य संसदीय सचिवों की सुविधाओं में दस प्रतिशत की कटौती की गई है। इन फैसलों से सालाना 250 करोड़ रुपये की बचत होगी। बजट में सरकार ने स्वास्थ्य सेवाओं को अपनी वरियता सूची में सबसे ऊपरी कतार में रखा हुआ है। राज्य में सभी को स्वास्थ्य सेवा सुलभ कराने के ध्येय से 1309 करोड़ रुपये का प्रावधान रखा गया है। इस राशि में 260 करोड़ रुपये प्लान के तहत व 1109 करोड़ रुपये नॉन प्लान के तहत खर्च किए जाएंगे। मुख्यमंत्री कैंसर रीलीफ फंड में योगदान के तौर पर भी 30 करोड़ रुपये की राशि प्रस्तावित की गई है। राज्य सरकार साठ करोड़ रुपये के खर्च पर सरकारी अस्पतालों में पहुंचने वाले सभी मरीजों को आवश्यक दवाएं (जेनेरिक) मुफ्त में उपलब्ध कराएगी। पहले यह सुविधा सिर्फ गरीब मरीजों को ही उपलब्ध थी। सरकार ने खाद्य पदार्थो में मिलावट और ड्रग्स के गलत इस्तेमाल को रोकने के लिए राज्य में फूड एंड ड्रग एडमिनीस्ट्रेशन गठित करने का फैसला किया है। इसके लिए बजट में पांच करोड़ का प्रावधान किया गया है। इसका काम राज्य में ड्रग एक्ट व फूड सेफटी एक्ट को प्रभावी ढंग से लागू कराना होगा, ताकि लोगों को गैर मिलावटी खाद्य पदार्थ हासिल हो सकें और लोगों द्वारा दवाओं का नशे के तौर पर हो रहा इस्तेमाल बंद हो सके। ढींढसा ने कहा कि 1987 तक पंजाब वित्तीय लाभ वाला राज्य था मगर लंबे समय तक रहे आतंकवाद के कारण यह वित्तीय घाटे वाला राज्य बन गया। उस समय राज्य की सुरक्षा पर बहुत अधिक खर्च करना पड़ा, जबकि आय बढ़ाने के कोई प्रयास नहीं हुए। केंद्र ने 1984-1994 दौरान विशेष अवधि ऋण दिया। 2002-03 में पड़ोसी राज्यों को रियायतें देने के कारण पंजाब से उद्योग वहां पलायन कर गए। वेतन, पेंशन, ब्याज अदायगी और सब्सिडी के रूप में जरूरी देनदारियां ही आमदन का करीब 90 फीसदी हैं। इस कारण राज्य को अतिरिक्त कर्ज लेने की जरूरत पड़ी। 31 मार्च तक राज्य पर कुल बकाया कर्ज 78236 करोड़ रुपये है जो जीएसडीपी का 31.51 प्रतिशत है। चालू वित्त वर्ष के अंत तक यह कर्ज 87518 करोड़ रुपये होने का अनुमान है।
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