Wednesday, November 30, 2011

वैश्विक अर्थव्यवस्था की अनिश्चितता से गिरा रुपया


डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत में आई गिरावट के लिए सरकार ने वैश्विक हालात को जिम्मेदार ठहराया है। सरकार के मुताबिक, वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता और मांग-आपूर्ति असंतुलन के कारण यह गिरावट आई है। वित्तमंत्री प्रणब मुखर्जी ने राज्यसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में कहा कि रुपये में कमजोरी का मुख्य कारण वैश्विक आर्थिक माहौल में अनिश्चितता है। विशेषकर यूरो क्षेत्र का कर्ज संकट सामने आने के बाद विदेशी मुद्रा बाजार में विदेशी संस्थागत निवेश प्रवाह प्रभावित हुआ है। मुखर्जी ने कहा कि रुपये की विनिमय दर में उतार-चढ़ाव की वजह घरेलू विदेशी विनिमय बाजार में मांग-आपूर्ति में असंतुलन आना है। वर्ष 2011 में अब तक रुपया डॉलर की तुलना में 14.8 प्रतिशत टूटा है। 3 जनवरी को 44.67 रुपये प्रति डॉलर था, जो 25 नवंबर को 52.42 रुपये प्रति डॉलर हो गया। मुखर्जी ने बताया कि एक करोड़ या उससे अधिक का कर्ज लेने वाले लोगों पर बैंकों और वित्तीय संस्थाओं का कुल 47,000 करोड़ रुपये बकाया हैं। उन्होंने बताया कि ऐसी कर्ज राशि समय पर नहीं लौटाने वाले कुल 4,102 चूककर्ता लोग या संस्था हैं। रिजर्व बैंक आंकड़ों के अनुसार, वित्तीय संस्थाओं का 10 करोड़ रुपये या इससे अधिक का बकाया रखने वाले डिफॉल्टर की संख्या 31 मार्च 2011 तक 723 थी। इन पर 26,165.51 करोड़ रुपये का बकाया है। वहीं, नमो नारायण मीना ने बताया कि सार्वजनिक उपक्रम के बैंकों ने औद्योगिक घरानों को मार्च 2010 की स्थिति के हिसाब से 14,12,542.71 करोड़ रुपये का कर्ज दिया है। वहीं, वित्त राज्यमंत्री नमोनारायण मीणा ने एक सवाल के जवाब में कहा कि मूडीज द्वारा भारतीय बैंकिंग प्रणाली की रेटिंग घटाने का कोई दीर्घकालिक असर नहीं पड़ेगा, क्योंकि बैंकिंग क्षेत्र की वित्तीय स्थिति मजबूत है। मीणा ने कहा कि चिंता की कोई बात नहीं है। अमेरिकी साख निर्धारक एजेंसी मूडीज इंवेस्टर सर्विस ने इस महीने भारत की बैंकिंग प्रणाली के प्रति अपनी रेटिंग को स्थिर से बदलकर नकारात्मक किया था। एजेंसी ने इसका कारण उच्च मुद्रास्फीति, कड़ी मौद्रिक नीति और तेजी से बढ़ती ब्याज दरों को बताया। मंत्री ने कहा कि बैंकिंग क्षेत्र और सरकार की ओर से चुनौतियों से निपटने के लिए हरसंभव कदम उठाए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि इस तरह की चुनौतियां भारत के बाहर से आ रही हैं। भारी उद्योग मंत्री प्रफुल्ल पटेल ने एक सवाल के जवाब में कहा कि चीन से औद्योगिक मशीनरी का आयात बढ़ने से घरेलू उद्योग बुरी तरह प्रभावित हुआ है। पिछले वित्त वर्ष में चीन से इस मशीनरी का आयात 15,083 करोड़ रुपये का रहा। इसमें सबसे ज्यादा हिस्सा 7,970 करोड़ रुपये के ऊर्जा संयंत्र उपकरणों का रहा है। पटेल ने कहा कि कम कीमतों के कारण चीन से आयात में वृद्धि हुई है और इससे घरेलू उद्योग प्रभावित हो रहा है। कर संग्रह को लेकर एक सवाल के जवाब में वित्त राज्य मंत्री एसएस पलानिमनिकम ने कहा कि पिछले वित्त वर्ष में आयकर रिफंड पर दिया ब्याज 45 फीसदी बढ़कर 9,000 करोड़ रुपये से अधिक हो गया। इससे पिछले वित्त वर्ष में यह ब्याज 6,867 करोड़ रुपये रहा था।

भारत में अमेरिका से भी महंगा है पेट्रोल

भारत में पेट्रोल की कीमत अपने पड़ोसी देशों और अमेरिका से महंगी है प्राथमिक तौर पर इसका मुख्य कारण कर की अधिक दर होना है। पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस राज्यमंत्री आरपीएन सिंह ने राज्यसभा को एक लिखित उत्तर में बताया कि दिल्ली में पेट्रोल 66.42 रुपए लीटर है जबकि यही कीमत अगर भारतीय मुद्रा में देखी जाए तो न्यूयार्क में Rs44.88 प्रति लीटर, पाकिस्तान के Rs48.64 प्रति लीटर, श्रीलंका में Rs61.38 प्रति लीटर, बांग्लादेश में Rs52.42 प्रति लीटर और नेपाल में इसकी कीमत Rs65.26 प्रति लीटर है। भारत में पेट्रोल की कीमत में 16 नवम्बर को 2.22 रुपए प्रति लीटर की कटौती करने के बाद भी दिल्ली में पेट्रोल की कीमत 66.42 रुपए लीटर है जो अन्य सभी देशों से ज्यादा है। संयोग से नेपाल में कोई रिफायनरी नहीं है और वह अपनी पूरी की पूरी जरूरत का पेट्रोल भारत से आयात करता है लेकिन इसके बाद भी वहां पेट्रोल भारत से सस्ता है। इसके बावजूद भारत के लिए राहत की बात यह है कि कम से कम यूरोप में पेट्रोल की कीमत भारत से ज्यादा है। ब्रिटेन में इसकी कीमत 104.60 रुपए प्रति लीटर है। सिंह ने कहा कि दिल्ली में पेट्रोल की 66.42 रुपए प्रति लीटर की कीमत में करों का अंश 26.59 रुपए प्रति लीटर है। इन करों में केन्द्रीय उत्पाद शुल्क और स्थानीय शुल्क अथवा मूल्यवर्धित कर शामिल हैं। अमेरिका में पेट्रोल पर कर की मात्रा सिर्फ 5.32 रुपए प्रति लीटर ही है जबकि ब्रिटेन में इस पर कर की मात्रा 62.47 रुपए प्रति लीटर है। अप्रैल 2010 के बाद से भारत में पेट्रोल की कीमत 39 प्रतिशत अथवा 18.49 रुपए प्रति लीटर बढ़ी है। पिछले साल दिल्ली में पेट्रोल की कीमत 47.63 रुपए लीटर थी। देश कीमत टैक्स भारत Rs66.42 Rs26.49 अमेरिका Rs44.88 Rs05.32 पाकिस्तान Rs48.63 Rs20.00 श्रीलंका Rs61.38 Rs25.00 बांग्लादेश Rs54.42 Rs21.00 नेपाल Rs65.26 25.00 ब्रिटेन Rs104.60 Rs62.47 विभिन्न देशों में पेट्रोल मूल्य

कहीं विदे शी दुकानों में न खो जाए लाला जी की दुकान


मल्टी ब्रांड रिटेल सेक्टर में एफडीआई को मिली छूट अगर वापस नहीं ली गई तो देश भर में गली- कूचों में चल रही लाला जी की दुकान विदेशी दुकानों में खो जाएगी..बड़े-बड़े विदेशी शाोरूम पर सब कुछ नकद मिलेगा..लाला जी की दुकान पर चलने वाला हमारा- आपका उधार खाता बंद हो जाएगा..रात में अचानक बच्चे के दूध के डिब्बे की जरूरत पड़ जाए या सिर दर्द के लिए एनासिन या नेवलजीन की जरूरत..कुछ नहीं मिलेगा। पान मिलेगा न पान मसाला, सिगरेट-खैनी की तो छोड़ ही दीजिए। जी हां..ये तो एक कल्पना है..जरा सोचिए अगर रिटेल चलेन चलाने वाली बहुराष्ट्रीय कंपनियों को देश में बड़े-बड़े शोरूम खोलने की इजाजत दे दी जाए तो क्या ऐसी स्थिति नहीं पैदा हो जाएगी। सरकार के इस फैसले से गली मोहल्लों में चलने वाली किराना दुकानें बंद हो जाएंगी और आपको इन दुकानों से मिलने वाला उधार नहीं मिलेगा..चौबीसों घंटों मिलने वाली सेवाएं नहीं मिलेंगी। गली के नुक्कड़ पर चलने वाली लाला जी की दुकान बंद हो जाएगी इसलिए अगर रात- बेरात अचानक कोई चीज खरीदने की जरूरत पड़ जाए तो वह भी नहीं मिलेगी। रिटेल एफडीआई के मुद्दे पर सरकार का कहना है कि ‘‘हंगामा है क्यों बरपा..थोड़ी सी जो एफडीआई है’’। ये दीगर बात है कि यह विपक्षी पार्टियों द्वारा एफडीआई के मुद्दे पर शुरू किया गया हंगामा जायज है या नाजायज, लेकिन यह सच यही है कि विदेशी कंपनियों के बड़े-बड़े शोरूम आपकी गली में नहीं बल्कि शहर के पॉश इलाकों में खुलेंगे। ऐसे में गली मुहल्लों में रहने वाली आम जनता की मुश्किलें तो बढ़ेंगी ही, क्योंकि पहली बात तो यह कि बड़े-बड़े शोरूम लाला की दुकान की तरह चौबीसों घंटे सेवाएं नहीं देंगे साथ ही यह शोरूम आम आदमी के घर से इतनी दूर होंगे कि अगर बाइक या कार नहीं है तो रात में वहां पहुंचना मुश्किल होगा। इसके अलावा उन मजदूरों और रिक्शा चालकों का क्या होगा जो दिन भर हाड़ तोड़ मेहनत करने के बाद शाम को दो रुपए का तेल, पांच रुपए का आटा और दो रुपए की सब्जी लेकर रात का खाना बनाते हैं। क्या रिटेल चेन चलाने वाली कंपनियां उन्हें दो रुपए का सरसों का तेल या घी देंगी ? और तो और अगर यह मजदूर और रिक्शा चालक रिटेल चेन चलाने वाली किसी कंपनी के शोरूम पर पहुंचेंगे तो गेट पर तैनात गार्ड ही इनको भगा देगा। इस तरह के एक नहीं अनेकों सवाल हैं जो सरकार की एफडीआई नीति पर प्रश्न चिह्न लगाते हैं इसलिए उम्मीद की जा रही है कि सरकार एफडीआई नीति पर पुन: विचार करेगी।

प्रधानमंत्री ने महंगाई कम होने की उम्मीद जताई


प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने मंगलवार को भरोसा दिलाया कि कृषि उत्पादन में सुधार करने सहित सरकार के विभिन्न ठोस उपायों के चलते अगले कुछ महीनों में महंगाई काफी कम हो जाएगी। सिंह ने कहा, ‘सरकार इस महंगाईसमस्या से निपटने के लिए प्रतिबद्ध है। हम खाद्य मुद्रास्फीति को कम करने, कृषि उत्पादकता और उत्पादन में सुधार करने के उपाय कर रहे हैं। हम हरित क्रांति को पूर्वी क्षेत्रों तक बढ़ाने के लिए कदम उठा रहे हैं। इसके अलावा भंडारण और कोल्ड स्टोरेज के हालातों में भी सुधार लाया जा रहा है। प्रधानमंत्री ने कहा कि वि अर्थव्यवस्था के प्रतिकूल हालात के बावजूद हमें उम्मीद है कि सरकार द्वारा किए गए ठोस उपायों की वजह से अगले कुछ महीनों में महंगाई काफी कम हो जाएगी। उन्होंने कहा कि हमें यह भी मानना चाहिए कि भारत जिस तेज विकास के दौर से गुजर रहा है उसमें खाद्य पदाथरें और दूसरी चीजों की मांग बढ़ती है इससे मांग और आपूर्ति के बीच अंतर पैदा होता है। प्रधानमंत्री ने भारतीय युवा कांग्रेस के दो दिवसीय अधिवेशन के समापन समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि हमारा देश पेट्रोलियम की अपनी जरूरतों का 80 फीसदी आयात करता है, इसलिए अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतें बढ़ने पर हमें भी अपने देश में पेट्रोलियम उत्पादों की कीमतें बढ़ानी पड़ती हैं। इसका असर दूसरी वस्तुओं की कीमतों पर भी पड़ता है। उन्होेंने कहा, ‘फिर भी सरकार ने सुनिश्चित किया है कि देश में डीजल, मिट्टी का तेल और रसोई गैस के दाम काबू में रहें। पिछले डेढ़ सालों में हमने महंगाई कम करने के लिए बहुत से कदम उठाए हैं जिसमें वित्तीय और मौद्रिक नीति से संबंधित उपाय शामिल हैं। कई खाद्य वस्तुओं के निर्यात पर समय समय पर रोक लगाई है तथा जरूरी चीजों की आपूर्ति बढ़ाने के लिए आयात में ढील दी है।
प्रधानमंत्री सिंह ने कहा, ‘हमारे सामने जो चुनौतियां हैं उनका मुकाबला करना कोई आसान काम नहीं है। इन दिनों वि अर्थव्यवस्था में मंदी आई हुई है। अमेरिका और पश्चिमी यूरोप के देशों में आर्थिक हालात ठीक नहीं होने से दुनिया के ज्यादातर देशों पर असर पड़ रहा है।प्रधानमंत्री ने कहा, ‘मध्यपूर्व के कई देशों में राजनीतिक अस्थिरता बनी हुई है। इस तरह के मुिश्कल हालात से निपटने की क्षमता और अनुभव सिर्फ कांग्रेस पार्टी की सरकार के पास ही होता है। हमने साल 2008 की कठिन आर्थिक परिस्थितियों का सामना बहुत अच्छी तरह किया था और हमें विास है कि हम एक बार फिर इस काम में सफल होंगे।उन्होंने कहा कि पिछले साढ़े सात वर्ष में कांग्रेस नीत संप्रग सरकार ने देश को मजबूत बनाने और उसे प्रगति के रास्ते पर आगे ले जाने के लिए तमाम कदम उठाए हैं। हमारे आर्थिक विकास की तेज रफ्तार से हासिल संसाधनों को हमने सामाजिक क्षेत्रों के बड़े कार्यक्र मों में लगाया है ताकि आम आदमी को और समाज के कमजोर तबकों को फायदा मिल सके। सिंह ने कहा कि सूचना के अधिकार की वजह से शासन में पारदर्शिता और जवाबदेही लाने में मदद मिल रही है। हम इन कोशिशों को और आगे बढ़ाना चाहते हैं। आने वाले दिनों में खाद्य सुरक्षा के जरिए हम यह सुनिश्चित कराना चाहते हैं कि हमारे देश का कोई भी नागरिक भूखा नहीं सोए।उन्होंने कहा, ‘सरकार और उसकी एजेंसियों के काम में भ्रष्टाचार कम करने और उसे चुस्त-दुरुस्त बनाने के लिए भी हम आने वाले दिनों में कई कदम उठाएंगे इनमें लोकपाल, नागरिक शिकायत निवारण और सरकारी खरीद के लिए कानून बनाना शामिल है। हमारी यह कोशिश जारी रहेगी कि विकास का फायदा हमारे देश के हर नागरिक तक पहुंचे खासतौर पर उन तबकों तक जो प्रगति के रास्ते में पीछे छूट गए हैं।

बेरोजगार हो जाएंगे लाखों व्यापारी : जदयू


जनता दल (यू) ने कहा कि केंद्र सरकार खुदरा व्यापार क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का फैसला जब तक वापस नहीं ले लेती पार्टी संसद की कार्यवाही को चलने नहीं देगी। पार्टी संसदीय दल के महासचिव डॉ. मोनाजिर हसन, कोषाध्यक्ष दिनेश चंद्र यादव और सांसद महेश्वर जारी ने कहा कि खुदरा व्यापार क्षेत्र में 51 प्रतिशत विदेशी पूंजी निवेश की इजाजत दिए जाने से देश के लाखों गरीब खुदरा व्यापारी बेरोजगार हो जाएंगे। जदयू सांसदों ने कहा कि सदन में इस मुद्दे पर बहस कराने की कोई आवश्यकता नहीं है। सरकार को इसे अविलंब वापस लेना चाहिए। सरकार जब तक कैबिनेट के अपने फैसले को वापस नहीं लेती, संसद की कार्यवाही नहीं चलने दी जाएगी। विपक्ष को विश्वास में ले सरकार : राजनाथ चंडीगढ़ : भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने कहा कि एफडीआइ पर संसद में पैदा गतिरोध को समाप्त करने के लिए केंद्र सरकार विपक्ष को विश्वास में ले। मंगलवार को चंडीगढ़ में पार्टी कार्यालय में आयोजित पत्रकार वार्ता में उन्होंने कहा कि एफडीआइ पर केंद्र सरकार जानबूझ कर विपक्ष को उत्तेजित कर रही है। सरकार नहीं चाहती कि संसद सुचारू रूप से चले। एफडीआइ पर पैदा गतिरोध समाप्त करने के लिए सरकार संसद में खुलकर चर्चा करनी चाहिए। मल्टी ब्रांड रिटेल में प्रत्यक्ष निवेश पर रिटेल रेट का विरोध करना ठीक है। दरअसल एफडीआइ पर सरकार ने अमेरिका और यूरोपीय देशों के दबाव में आकर फैसला लिया है।

एफडीआइ के फैसले पर पीएम अडिग


खुदरा (रिटेल) कारोबार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआइ) को मंजूरी के फैसले पर संसद से सड़क तक मचे कोहराम के बीच प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पहली बार मुंह खोला और विपक्ष पर जमकर बरसे। मनमोहन सिंह ने युवक कांग्रेस सम्मेलन के मंच पर मंगलवार को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी व महासचिव राहुल गांधी की मौजूदगी में इसे सोचा- समझा व देशहित में लिया गया फैसला बताते हुए अपने कुनबे और विपक्ष को साफ कर दिया है कि सरकार रोलबैक नहीं करेगी। वहीं, सोनिया ने इस बारे में पत्ते नहीं खोले। हालांकि पार्टी इस मुद्दे पर मनमोहन के साथ है, लेकिन मौजूदा हालात में नेतृत्व इस मुद्दे पर बिल्कुल उड़ने का हामी नहीं है। सूत्रों के मुताबिक, कांग्रेस आलाकमान ने सरकार से कहा है कि यदि विपक्ष नहीं मानता है और संप्रग सहयोगी भी अड़े रहते हैं,तो शीर्ष नेतृत्व को लचीला रवैया अपनाना चाहिए। यद्यपि कांग्रेस नेतृत्व एफडीआइ के खिलाफ नहीं है, लेकिन अगर सियासी नुकसान की बात आई तो उसे रोलबैक से भी परहेज नहीं है। शायद यही कारण था कि प्रधानमंत्री ने युवक कांग्रेस के उस मंच से एफडीआइ की पुरजोर पैरवी की, जहां सोमवार को इसके विरोध में कुछ स्वर उठे थे। प्रधानमंत्री ने दो टूक कहा, हमने ये फैसला जल्दबाजी में नहीं, बल्कि बहुत सोच-समझकर लिया है। यह देश हित में है। रिटेल एफडीआइ से आधुनिक तकनीक आएगी और कृषि उत्पादों की बर्बादी कम होगी और किसानों को फायदा मिलेगा। थोक और खुदरा कीमत में अंतर कम होगा, जिससे लोगों को रोजमर्रा की वस्तुएं सस्ते में मिलेगी। छोटे खुदरा व्यापारियों के खत्म होने की आशंका को भी नकारते हुए उन्होंने कहा, हमारा अनुभव है कि छोटे और बड़े दोनों साथ काम कर सकते हैं। हमने अपने फैसले में कुछ शतर्ें भी रखी हैं। कोई जोर-जबरदस्ती नहीं है। जिन राज्य सरकारों को ऐसा करने में फायदा नहीं नजर आता है, तो उनके पास एफडीआइ रोकने के उपाय हैं। प्रधानमंत्री ने दावा किया रिटेल में एफडीआइ से खाद्य एवं परिवहन जैसे तमाम क्षेत्र में रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे। उन्होंने युवा कांग्रेस कार्यकर्ताओं से कहा कि वे इस विषय में जनता को सही जानकारी दें। खास बात थी कि सोमवार को इस मुद्दे पर कुछ आशंकित दिख रहे युवा कांग्रेस के कार्यकर्ता प्रधानमंत्री के बयान पर ताली पीट रहे थे। इतना ही नहीं, प्रधानमंत्री ने लोकपाल और शिक्षा का अधिकार समेत तमाम अहम विधेयकों का उल्लेख करते हुए संसद बाधित करने के विपक्ष के रवैये को अन्यायपूर्ण बताया। उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार से लेकर तमाम मुद्दे ऐसे हैं, जिन पर संसद की मंजूरी जल्द से जल्द जरूरी है, लेकिन विपक्षी दल इस सत्र में ऐसा नहीं होने दे रहे हैं, लेकिन उम्मीद है कि संसद का काम संचालित होने का रास्ता निकलेगा। प्रधानमंत्री ने यह टिप्पणी ऐसे समय की है जब संसद का शीतकालीन सत्र शुरू होने के बाद महंगाई, कालाधन और एफडीआई के मुद्दे पर दोनों सदनों में कोई कामकाज नहीं हो पा रहा है।

Tuesday, November 29, 2011

जिंस के वायदा कारोबार पर नहीं लगेगी रोक


जिंस के वायदा कारोबार पर प्रतिबंध लगाने का कोई प्रस्ताव सरकार के पास नहीं है। हमेशा की तरह सरकार ने एक बार फिर कहा है कि महंगाई बढ़ाने में वायदा बाजार का कोई योगदान नहीं है। खाद्य मंत्री केवी थॉमस ने राज्यसभा को एक लिखित जवाब में बताया कि कमोडिटी एक्सचेंजों में मौजूदा समय में जिन खाद्य जिंसों का कारोबार हो रहा है, उन्हें प्रतिबंधित करने का केंद्र सरकार की तरफ से कोई प्रस्ताव नहीं है। इस समय कमोडिटी एक्सचेंजों में 24 खाद्य जिंसों में वायदा कारोबार किया जाता है। इनमें गेहूं, जौ, चना, चीनी, आलू और कच्चा पाम तेल शामिल हैं। थॉमस ने कहा कि खाद्य जिंसों में हालिया तेजी सब्जियों, मांस, दूध, मछली और फलों में देखने को मिली हैं। उन्होंने कहा कि इनका कमोडिटी एक्सचेंजों में कारोबार नहीं किया जाता है। खाद्य सुरक्षा को लेकर एक सवाल के जवाब में थॉमस ने कहा कि खाद्य सुरक्षा के मामले में भारत 81 देशों में 67वें स्थान पर है, लेकिन देश में खाद्य सुरक्षा की स्थिति में गिरावट नहीं आई है। ग्लोबल हंगर इंडेक्स (जीएचआइ) में भारत को रवांडा से नीचे 67 वें स्थान पर रखा गया है। जीएचआइ पहले के आंकड़ों पर आधारित है। यह खाद्य पदार्थों की उपलब्धता और वितरण में मौजूदा वृद्धि को ध्यान में नहीं रखता। पिछले पांच वर्षो के दौरान न केवल चावल और गेहूं का उत्पादन बढ़ा है, बल्कि इसके परिणामस्वरूप खरीद के साथ-साथ खाद्यान्नों का वितरण भी कई गुना बढ़ा है। बिजली क्षेत्र को लेकर एक सवाल के जवाब में बिजली राज्यमंत्री केसी वेणुगोपाल ने राज्यसभा को बताया कि इस वर्ष अप्रैल-अक्टूबर 2011 के दौरान बिजली उत्पादन पिछले साल से 8.6 प्रतिशत अधिक रहा है। हालांकि, कोयले की कमी के कारण बिजली कंपनियों को 5.3 अरब यूनिट के बिजली उत्पादन की हानि हुई। देश में कोयला आधारित बिजली उत्पादन में पिछले वर्ष की समान अवधि में 7.7 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की थी। वेणुगोपाल ने कहा कि कोयला मंत्रालय से कहा गया है कि देश में कोयला उत्पादन बढ़ाया जाए। बिजली इकाइयों को भी कोयले की जरूरत और घरेलू स्रोतों से उपलब्धता के बीच के अंतर को पाटने के लिए कोयले का आयात करने का सुझाव दिया गया है।

एफडीआइ पर सरकार की अधूरी सफाई


सरकार की सफाई के बावजूद विदेशी रिटेल कंपनियां भारतीय सूक्ष्म व लघु उद्यमों (एमएसई) से कितनी खरीदारी करेंगी, इसको लेकर स्थिति साफ नहीं हो पाई है। केंद्र ने इस पर चुप्पी साध ली है कि विदेशी रिटेलर भारत में बेचने के लिए की गई कुल वैश्विक खरीदारी का 30 फीसदी भारतीय एमएसई से खरीदेंगी या सिर्फ भारत में की जाने वाली खरीदारी का इतना हिस्सा घरेलू उद्यमों से लेंगी। इंडिया इंक चाहता है कि केंद्र सरकार इस बारे में जल्द स्थिति स्पष्ट करे। साथ ही रिटेल क्षेत्र में नियामक एजेंसी गठित करने की भी मांग की गई है, ताकि देशी कंपनियों के हितों के साथ कोई भेदभाव न हो। पिछले हफ्ते मल्टीब्रांड रिटेल में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआइ) की मंजूरी के फैसले के बाद से यह मामला उलझा हुआ है। कैबिनेट के इस फैसले की जानकारी देने वाले प्रपत्र में कहा गया है कि बाहरी रिटेल कंपनियां अपनी कुल खरीदारी का 30 फीसदी भारत के साथ ही विदेशी सूक्ष्म व लघु इकाइयों से भी कर सकती हैं। सरकार की यह शर्त घरेलू उद्योग जगत को बहुत अच्छी नहीं लगी। सोमवार को वाणिज्य व उद्योग मंत्री आनंद शर्मा की ओर से सिर्फ यह कहा गया है कि विदेशी रिटेल कंपनियों को भारत में कुल खरीदारी का 30 फीसदी भारतीय एमएसई से करना होगा। उद्योग चैंबर फिक्की ने सरकार से इस बारे में ज्यादा स्पष्टता बरतने को कहा है। अन्य उद्योग संगठन सीआइआइ की तरफ से भी यह कहा गया है कि सरकार को इस मुद्दे पर सोच-समझकर आगे बढ़ना चाहिए। सीआइआइ ने कहा है कि मल्टीब्रांड स्टोर के लिए बनाए जाने वाले संयुक्त उपक्रम में न्यूनतम पूंजी की जरूरत या विदेशी कंपनियों की हिस्सेदारी को लेकर सरकार सतर्कता बरते। भारतीय उद्योग जगत का कहना है कि विदेशी रिटेल कंपनियां देश में बिक्री के लिए पूरी दुनिया में खरीदारी करेंगी। इस पर रोक नहीं लगाई जा सकती। यह स्पष्ट होना चाहिए कि ये कंपनियां भारत में बिक्री करने के लिए जितनी खरीदारी करेंगी, उसका 30 फीसदी हिस्सा भारतीय एमएसई से लेना है या फिर सिर्फ भारत में की गई खरीदारी की ही 30 फीसदी आपूर्ति घरेलू एमएसई से लेनी है। फिक्की के महासचिव राजीव कुमार का कहना है कि विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के दौर में विदेश से आयात पर पाबंदी नहीं लगा सकते। ऐसे में सरकार 30 फीसदी संबंधी बाध्यता को किस तरह से लागू करती है, यह देखना होगा। बेहतर होगा कि सरकार इसके अलावा तमाम मुद्दों पर नजर रखने के लिए एक नियामक एजेंसी का गठन करे। इससे यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि भारतीय कंपनियों के साथ कोई भेदभाव नहीं होगा। वैसे फिक्की व सीआइआइ ने मल्टीब्रांड रिटेल में एफडीआइ के फैसले को ऐतिहासिक करार दिया है। इनका कहना है कि राजनीतिक वजहों से इस फैसले का विरोध हो रहा है। फिक्की के मुताबिक, वर्ष 2020 तक भारतीय रिटेल बाजार 850 अरब डॉलर होने का हो जाएगा। इस हिसाब से अगले 10 वर्षो में देश के एमएसई को 255 अरब डॉलर के नए ऑर्डर मिलेंगे। भारत को प्रतिस्पर्धी बनाना सरकार की जिम्मेदारी नई दिल्ली, एजेंसियां : चीन के सस्ते उत्पादों की आमद से भारतीय इकाइयों को सुरक्षा और संरक्षण देना सरकार की जिम्मेदारी है। अगर खुदरा क्षेत्र में एफडीआइ से लघु व मझोली इकाइयों को इसका नुकसान होता है, तो सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए। फिक्की के महासचिव राजीव कुमार ने कहा कि खुदरा एफडीआइ में विदेशी कंपनियों को 30 प्रतिशत सामान अति लघु व लघु इकाइयों से खरीदने की शर्त रखी गई है। माना जा रहा है कि इसका फायदा चीनी कंपनियों को होगा। उन्होंने कहा कि सरकार को आयात की अधिकतम सीमा तय करनी चाहिए।

Monday, November 28, 2011

अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी


रिटेल सेक्टर में विदेशी निवेश के आने से हमारी पूरी अर्थव्यवस्था को तामाम लाभ मिलेंगे। खुदरा कारोबार के अंदर इस कदम से आपसी प्रतिस्पद्र्धा बढ़ेगी। लाखों नई नौकरियां आएंगी, लेकिन जो सबसे अहम बदलाव होगा वह है उत्पादों के थोक मूल्य और खुदरा मूल्य के अंतर का कम होना। वर्ष 2007 में रिटेल सेक्टर की भारतीय जीडीपी में हिस्सेदारी 8 से 10 फीसदी के बीच थी, जिसमें बाद के सालों में बढ़ोतरी भी देखने को मिली है। अब उम्मीद की जा रही है कि जीडीपी में रिटेल की हिस्सेदारी इसी साल 22 फीसदी तक पहुंच सकती है। इसमें रिटेल कारोबार में विदेशी निवेश की भूमिका बेहद अहम होगी। हम लोगों का आकलन है कि वर्ष 2025 तक भारत में उपभोक्ताओं का बाजार आज के मुकाबले चार गुना बढ़ जाएगा। तब हमारा उपभोक्ता बाजार दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा बाजार होगा। सरकार के इस कदम से 2013 तक भारत का रिटेल बाजार बढ़कर 833 बिलियन डॉलर का हो जाएगा और 2018 तक यह बाजार 1.3 ट्रिलियन डॉलर का होगा। यह अनुमान 10 फीसदी चक्रवृद्धि ब्याज की दर से लगाया गया है। देश में इस दौरान युवा आबादी की क्रय शक्ति भी बढ़ेगी। 15 साल से कम उम्र के किशोरों के बाजार में ही 33 फीसदी की ग्रोथ देखी जा रही है। सरकार के इस कदम से बड़ा फायदा यह होगा कि रिटेल का कारोबार भी संगठित उद्योग में तब्दील होगा। अभी देश में संगठित रिटेल का कारोबार 8.3 बिलियन डॉलर का ही है। यानी कुल रिटेल बाजार में इसकी हिस्सेदारी महज 5 फीसदी की है। यह बाजार 40 फीसदी की दर से बढ़कर 2013 तक 107 बिलियन डॉलर का हो जाएगा। जब यह बाजार बढ़ेगा तो सरकार को इससे होने वाले राजस्व में वृद्धि होगी। रिटेल के बाजार में विदेशी निवेश को मंजूरी दिए जाने से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को भी काफी फायदा होगा। बड़े-बड़े स्टोर सीधे किसानों से खरीददारी करेंगे, जिसके चलते किसानों को उनकी उपज की ज्यादा कीमत मिलेगी। अभी कृषि क्षेत्र की सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि अनाज और फल-सब्जी उत्पादन का बड़ा हिस्सा रख-रखाव के अभाव में खराब हो जाता है। यह नुकसान कुल उत्पादन का एक तिहाई हिस्सा होता है और इसका नुकसान किसानों को ज्यादा उठाना पड़ता है। जब देश में मल्टी स्टोर अपने आधारभूत ढांचों का निर्माण करेंगे तो अनाज और फल-सब्जियों के रख-रखाव का प्रबंधन बेहतर ढंग से हो पाएगा। देश भर में कोल्ड स्टोरेज और वेयरहाउस की कमी नहीं रहेगी। यह तय है कि रिटेल के बाजार में जो क्रांति होगी, उसमें बड़ी भागीदारी इन किसानों की होगी। उनकी उपज को बेहतर दाम भी मिलेगा और उनका उत्पादन भी बढ़ेगा। इससे भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था में तेजी आएगी। हमारे आकलन के मुताबिक भारत के घरेलू रिटेल बाजार में ग्रामीण भारत की हिस्सेदारी करीब 50 फीसदी तक पहुंच जाएगी। इस दौरान आने वाले दस सालों में औसत ग्रामीण व्यक्ति की आय में 50 फीसदी की वृद्धि भी होगी।

एक बार फिर आर्थिक मंदी की दहलीज पर पहुंचा भारत

अमेरिका और यूरोजोन सहित दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में छाई अनिश्चितता से भारत पर भी आर्थिक संकट के बादल मंडरा रहे हैं। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही के आर्थिक वृद्धि के आंकड़े पिछले साल की तुलना में नीचे आए हैं। इंडियन पालिटिकल इकोनॉमी एसोसिएशन और वरिष्ठ अर्थशात्रियों के पैनल द्वारा तैयार सव्रे रिपोर्ट में भारत में आर्थिक वृद्धि और विकास के अंतविरेधों के बारे में बताया गया है। रिपोर्ट के अनुसार सन 2009-10 की विकास दर 8.0 प्रतिशत थी जिसके मुकाबले सन 2010-11 में विकास दर 8.6 प्रतिशत तक तेज हुई। लेकिन इस वर्ष तिमाही के आंकड़े बताते हैं कि 2010- 11 के मुकाबले 2011-12 में वृद्धि में कमी आ रही है। इस वर्ष अप्रैल से जुलाई की जीडीपी वृद्धि 7.7 प्रतिशत रही जबकि पिछले वर्ष इसी अवधि में यह 8.8 प्रतिशत रही थी। कमलनयन काबरा, अरुण कुमार त्रिपाठी और जया मेहता अर्थशास्त्रियों के इस पैनल का मानना है कि विकसित अर्थव्यवस्थाएं, विशेषकर अमेरिकी अर्थव्यवस्था धीमी पड़ गई है। वैिक मंदी के बाद भारत, चीन और कुछ अन्य उभरती अर्थव्यस्थाओं ने तेजी तो दिखाई पर मौजूदा वैिक मंदी के कारण इन अर्थव्यवस्थाओं पर भी मंदी के बादल मंडरा रहे हैं। इसका कारण साफ है कि इनकी तरक्की तो विकसित देशों को होने वाले निर्यात पर निर्भर करती है। यह असर 2011-12 में और ज्यादा मजबूत होने वाला है जिसके चलते भारत और अन्य उभरती अर्थव्यस्थाओं में मंदी आना निश्चित ही है। सव्रे में बताया गया है कि सन 2010-11 के आर्थिक सव्रेक्षण से पता चलता है कि देश की जीडीपी मे खेती और उससे जुड़े क्षेत्रों का हिस्सा मात्र 14.2 प्रतिशत ही रह गया है, जबकि इस क्षेत्र में अभी भी देश की श्रम शक्ति का 58 प्रतिशत हिस्सा लगा हुआ है। सव्रे में एनएसएसओ रिपोर्ट का उल्लेख करते हुए बताया गया है कि आज भी देश के 48.6 प्रतिशत किसान कर्ज़दार हैं। सबसे ज्यादा कर्ज का फैलाव आंध्र प्रदेश में है जहां 82 प्रतिशत किसान परिवार कर्ज के बोझ में हैं। यदि व्यापार घाटे की बात की जाए तो यह 1991 की तुलना में 25 से 30 गुना तक बढ़ गया है। वर्ष 2010 की मार्च से 2011 मई मध्य तक व्यापार घाटा 5 लाख 90 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। इसमें दिलचस्प है कि चालू खाते में भी वर्ष 2010- 11 में पहली छमाही में 1,28,569 करोड़ का घाटा रहा जिसके साल के अंत तक 2,50,000 करोड़ तक पहुंच जाने का अनुमान है।