Saturday, November 26, 2011

मदमस्त हाथी है भारतीय अर्थव्यवस्था


भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर डी. सुब्बाराव ने भारतीय अर्थव्यवस्था को मदमस्त हाथी बताया है। उनका मानना है कि ईस्ट एशिया अगर चीता है और चीन ड्रैगन, तो भारतीय अर्थव्यवस्था मदमस्त हाथी है। पूरे विश्व में हाथी जैसा कोई जानवर नहीं है। आरबीआइ के गवर्नर का संकेत उस कहावत की तरफ भी था, जिसमें कहा जाता है हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और। चंडीगढ़ स्थित सेंटर फॉर रिसर्च इन रूरल एंड इंडस्टि्रयल डेवलपमेंट में आयोजित समारोह में गवर्नर ने कहा कि भले ही यूरोप मंदी के चक्रव्यूह में है, लेकिन भारत सभी बाधाएं पार करने में सक्षम है। सुब्बाराव ने देश की दस चुनौतियों की तरफ लोगों का ध्यान खींचा। जीडीपी में सबसे कम भूमिका अदा करने वाले कृषि सेक्टर को उन्होंने सबसे बड़ी चुनौती बताया। सुब्बाराव का कहना था कि भले ही कृषि सेक्टर की जीडीपी में 15 फीसदी हिस्सेदारी है, लेकिन यह सेक्टर सर्वाधिक लोगों को रोजगार मुहैया कराता है। अन्य सेक्टरों के मुकाबले कृषि क्षेत्र में 53 फीसदी रोजगार मिलता है। उनका मानना है कि वर्तमान में दूसरी कृषि क्रांति की आवश्यकता है। कृषि के अलावा इंडस्ट्री जीडीपी ग्रोथ में 20 फीसदी और सर्विस सेक्टर 65 फीसदी योगदान डालता है, लेकिन इंडस्ट्री 12 फीसदी और सर्विस सेक्टर महज 35 फीसदी रोजगार के अवसर पैदा करता है। सुब्बाराव ने कहा कि देश की दूसरी बड़ी चुनौती रोजगार के अवसरों को बढ़ाना है। आगामी 20 वर्षो में 250-300 मिलियन हाथों को रोजगार के अवसर प्रदान करने की आवश्यकता है। उन्होंने देश में उत्पादकता को बढ़ाने को तीसरी और शहरीकरण को मैनेज करने को चौथी चुनौती बताया। उन्होंने कहा कि चीन में 1997 में शहरीकरण की दर 32 फीसदी थी, जो 2010 में बढ़कर 50 फीसदी हो गई। जबकि भारत में 1991 में यह दर 26 फीसदी थी, जो 2011 में महज 31 फीसदी है। सुब्बाराव ने मानव संसाधन सेक्टर को अपडेट करने को चुनौती बताया। यूएनडीपी ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स 2011 में भारत की रैंकिंग 187 में 134 है। लिहाजा, इस सेक्टर को अपडेट करने की जरूरत है। उन्होंने देश में वित्तीय संस्थाओं के विस्तार न होने को भी चुनौती बताया। उनका कहना था कि आज भी देश में बहुत बड़ा वर्ग ऐसा है, जो बैंक नहीं जाता है। कुछ है जिनका बैंक में अकाउंट तो है, लेकिन वह उसे ऑपरेट नहीं करते हैं। उन्होंने ग्लोबलाइजेशन को भी चुनौती बताया। ईधन, खाद और सिंचाई पर सब्सिडी सही नहीं चंडीगढ़, एजेंसी : राजकोषीय स्थिति सुगठित करने और सरकार के घाटे को कम करने की वकालत करते हुए भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर डी. सुब्बाराव ने शुक्रवार को ईधन, उर्वरक और सिंचाई के लिए दी जाने वाले सब्सिडी को खराब बताते हुए इस गैरउत्पादक खर्च को खत्म करने को कहा। पीएन हक्सर स्मृति व्याख्यान में सुब्बाराव ने कहा कि वित्तीय सुदृढ़ीकरण का खाका तैयार करते हुए हमें वित्तीय समायोजन का भी ध्यान रखना होगा। ऐसे खर्च को समाप्त करने होंगे जो गैरउत्पादक हैं। सुब्बाराव ने ईधन सब्सिडी को खराब बताते हुए कहा कि एलपीजी सिलेंडर खरीदते समय आपको प्रत्येक बार 300 रुपये की सब्सिडी मिलती है। यही नहीं, अंबानी और बिड़ला को भी हर बार सिलेंडर की खरीद पर यह सब्सिडी मिलती है। इसके बाद उर्वरक सब्सिडी आती है। खाद सब्सिडी की वजह से भूमि खराब हो रही है। इसकी वजह से हमें सिंचाई के लिए सब्सिडी देनी पड़ती है। रिजर्व बैंक के गवर्नर ने कहा कि कुछ अच्छी सब्सिडी भी हैं। मसलन स्कूल जाने वाली लड़कियों को साइकिल, गांवों में लड़कियों के स्कूल में शौचालय बनाना। ये च्च्छी सब्सिडी की गिनती में आते हैं।

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