Tuesday, November 29, 2011

एफडीआइ पर सरकार की अधूरी सफाई


सरकार की सफाई के बावजूद विदेशी रिटेल कंपनियां भारतीय सूक्ष्म व लघु उद्यमों (एमएसई) से कितनी खरीदारी करेंगी, इसको लेकर स्थिति साफ नहीं हो पाई है। केंद्र ने इस पर चुप्पी साध ली है कि विदेशी रिटेलर भारत में बेचने के लिए की गई कुल वैश्विक खरीदारी का 30 फीसदी भारतीय एमएसई से खरीदेंगी या सिर्फ भारत में की जाने वाली खरीदारी का इतना हिस्सा घरेलू उद्यमों से लेंगी। इंडिया इंक चाहता है कि केंद्र सरकार इस बारे में जल्द स्थिति स्पष्ट करे। साथ ही रिटेल क्षेत्र में नियामक एजेंसी गठित करने की भी मांग की गई है, ताकि देशी कंपनियों के हितों के साथ कोई भेदभाव न हो। पिछले हफ्ते मल्टीब्रांड रिटेल में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआइ) की मंजूरी के फैसले के बाद से यह मामला उलझा हुआ है। कैबिनेट के इस फैसले की जानकारी देने वाले प्रपत्र में कहा गया है कि बाहरी रिटेल कंपनियां अपनी कुल खरीदारी का 30 फीसदी भारत के साथ ही विदेशी सूक्ष्म व लघु इकाइयों से भी कर सकती हैं। सरकार की यह शर्त घरेलू उद्योग जगत को बहुत अच्छी नहीं लगी। सोमवार को वाणिज्य व उद्योग मंत्री आनंद शर्मा की ओर से सिर्फ यह कहा गया है कि विदेशी रिटेल कंपनियों को भारत में कुल खरीदारी का 30 फीसदी भारतीय एमएसई से करना होगा। उद्योग चैंबर फिक्की ने सरकार से इस बारे में ज्यादा स्पष्टता बरतने को कहा है। अन्य उद्योग संगठन सीआइआइ की तरफ से भी यह कहा गया है कि सरकार को इस मुद्दे पर सोच-समझकर आगे बढ़ना चाहिए। सीआइआइ ने कहा है कि मल्टीब्रांड स्टोर के लिए बनाए जाने वाले संयुक्त उपक्रम में न्यूनतम पूंजी की जरूरत या विदेशी कंपनियों की हिस्सेदारी को लेकर सरकार सतर्कता बरते। भारतीय उद्योग जगत का कहना है कि विदेशी रिटेल कंपनियां देश में बिक्री के लिए पूरी दुनिया में खरीदारी करेंगी। इस पर रोक नहीं लगाई जा सकती। यह स्पष्ट होना चाहिए कि ये कंपनियां भारत में बिक्री करने के लिए जितनी खरीदारी करेंगी, उसका 30 फीसदी हिस्सा भारतीय एमएसई से लेना है या फिर सिर्फ भारत में की गई खरीदारी की ही 30 फीसदी आपूर्ति घरेलू एमएसई से लेनी है। फिक्की के महासचिव राजीव कुमार का कहना है कि विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के दौर में विदेश से आयात पर पाबंदी नहीं लगा सकते। ऐसे में सरकार 30 फीसदी संबंधी बाध्यता को किस तरह से लागू करती है, यह देखना होगा। बेहतर होगा कि सरकार इसके अलावा तमाम मुद्दों पर नजर रखने के लिए एक नियामक एजेंसी का गठन करे। इससे यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि भारतीय कंपनियों के साथ कोई भेदभाव नहीं होगा। वैसे फिक्की व सीआइआइ ने मल्टीब्रांड रिटेल में एफडीआइ के फैसले को ऐतिहासिक करार दिया है। इनका कहना है कि राजनीतिक वजहों से इस फैसले का विरोध हो रहा है। फिक्की के मुताबिक, वर्ष 2020 तक भारतीय रिटेल बाजार 850 अरब डॉलर होने का हो जाएगा। इस हिसाब से अगले 10 वर्षो में देश के एमएसई को 255 अरब डॉलर के नए ऑर्डर मिलेंगे। भारत को प्रतिस्पर्धी बनाना सरकार की जिम्मेदारी नई दिल्ली, एजेंसियां : चीन के सस्ते उत्पादों की आमद से भारतीय इकाइयों को सुरक्षा और संरक्षण देना सरकार की जिम्मेदारी है। अगर खुदरा क्षेत्र में एफडीआइ से लघु व मझोली इकाइयों को इसका नुकसान होता है, तो सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए। फिक्की के महासचिव राजीव कुमार ने कहा कि खुदरा एफडीआइ में विदेशी कंपनियों को 30 प्रतिशत सामान अति लघु व लघु इकाइयों से खरीदने की शर्त रखी गई है। माना जा रहा है कि इसका फायदा चीनी कंपनियों को होगा। उन्होंने कहा कि सरकार को आयात की अधिकतम सीमा तय करनी चाहिए।

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