बंपर पैदावार व भारी स्टॉक के बावजूद गेहूं-चावल निर्यात के मुद्दे पर केंद्र सरकार के भीतर की तनातनी खजाने पर भारी पड़ सकती है। कृषि व वाणिज्य मंत्रालय गेहूं निर्यात के लिए सब्सिडी देने के विकल्प को खंगालने में जुटे हैं, वहीं खाद्य व वित्त मंत्रालय को यह उपाय नहीं सुहा रहा है। सरकार का एक बड़ा तबका इसकी जगह गरीबों को मुफ्त अनाज बांटने का पक्षधर है। मंत्रियों के अधिकारप्राप्त समूह (ईजीओएम) की अगली बैठक में इस मुद्दे पर विस्तार से चर्चा होने की संभावना है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं 240 से 250 डॉलर प्रति टन के भाव पर उपलब्ध है, जबकि भारतीय गेहूं का मूल्य 300 डॉलर प्रति टन पड़ेगा। ऐसे में सरकार को प्रति टन 50 से 60 डॉलर सब्सिडी देनी होगी। गेहूं का लागत मूल्य भारतीय खाद्य निगम (एफसीआइ) के दस्तावेजों में 1500 रुपये से अधिक दर्ज किया है। सरकार के भीतर समन्वय न होने की वजह से गेहूं व चावल निर्यात के फैसले में बहुत देरी हुई है। चावल निर्यात पर तो अंतिम फैसला ले भी लिया गया है, लेकिन गेहूं का मामला अभी भी अधर में है। गेहूं निर्यात की घोषणा के साथ कृषि मंत्री शरद पवार ने यह भी जोड़ा था कि अंतरराष्ट्रीय बाजार फिलहाल अनुकूल नहीं है। सूत्रों के अनुसार, कृषि मंत्रालय और वाणिज्य मंत्रालय ने गेहूं निर्यात के लिए सब्सिडी का प्रस्ताव तैयार किया है। इस मुद्दे पर ईजीओएम की अगली बैठक में इस प्रस्ताव पर विचार किए जाने की संभावना है।वित्त मंत्रालय और खाद्य मंत्रालय को निर्यात सब्सिडी देने का विकल्प पच नहीं रहा है। वित्त मंत्रालय का मानना है कि इससे खजाने पर अतिरिक्त बोझ पड़ेगा। राजकोषीय घाटे को कम करने के लिए सरकार वैसे ही सब्सिडी का भार घटाने में जुटी है।
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