Monday, July 25, 2011

अर्थ व्यवस्था


सुस्ती ने बढ़ाई पीएमजीएसवाई की लागतठ्ठसुरेंद्र प्रसाद सिंह, नई दिल्ली केंद्र बात-बात में भले ही राज्यों पर तोहमत लगाता रहा हो कि केंद्रीय योजनाओं में उनका सहयोग नहीं मिलता है, लेकिन प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना (पीएमजीएसवाई) में इसके उलट हुआ है। केंद्र की ओर से धन आवंटन में देरी, सड़क बनाने के सख्त मानक और नियमों में संशोधन के कारण इस योजना की रफ्तार धीमी हो गई है। नतीजा यह हुआ कि इस देरी के चलते काम की लागत बढ़ गई और काम भी पूरा नहीं हुआ। सभी गांवों को सड़क से जोड़ने में कुछ साल अभी और लगेंगे। साथ ही लागत भी डेढ़ लाख करोड़ रुपये पहुंच गई है। साल 2000 में जब प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना लागू की गई, तब इसमें 1000 की आबादी वाले गांवों को सड़क से जोड़ने की योजना थी। उस वक्त ऐसे सभी गांवों को वर्ष 2007 तक सड़क से जोड़ने का लक्ष्य निर्धारित किया गया था। वर्ष 2003 के दौरान इस योजना में संशोधन करके आबादी की सीमा घटाकर 500 कर दी गई। साथ ही सड़क बनाने वाली एजेंसी पर ही सड़क के रखरखाव का जिम्मा भी डाल दिया गया। नियमों में हुए इन बदलावों का नतीजा यह हुआ कि एक तो गांवों की संख्या बढ़ गई। दूसरे, रखरखाव की जिम्मेदारी आते ही सड़क बनाने वाली एजेंसियों ने इस योजना से किनारा करना शुरू कर दिया। इससे योजना लक्ष्य से पीछे रह गई। अब तक सिर्फ 69 प्रतिशत गांवों को ही सड़क से जोड़ा जा सका है। योजना लागू करते वक्त ग्रामीण सड़कों के निर्माण पर 60 हजार करोड़ रुपये की लागत का अनुमान लगाया गया था, लेकिन अब तक इन सड़कों के निर्माण पर कुल 90 हजार करोड़ रुपये खर्च हो चुके हैं। अब एक बार फिर पीएमजीएसवाई में कुछ संशोधन कर छोटे गांवों (बसावटों) को भी सड़क से जोड़ने का कार्य योजना में शामिल कर दिया गया है। संशोधित योजना में नक्सल प्रभावित सात राज्यों के 60 जिलों के 250 आबादी वाले छोटे गांवों को भी जोड़ दिया गया है। पहले यह योजना सिर्फ पहाड़ी राज्यों में लागू थी। अनुमान है कि इस योजना के लिए अभी अगले पांच साल में डेढ़ लाख करोड़ रुपये की और दरकार होगी। यानी तीस हजार करोड़ रुपये सालाना। योजना में संशोधन कर सरकार उसका दायरा बढ़ा रही है, जिसके चलते इसकी लागत भी बढ़ी है। बावजूद इसके योजना के लिए धन आवंटन में सरकार का रवैया सुस्ती भरा है। चालू वित्त वर्ष में योजना के लिए 20 हजार करोड़ रुपये का आंवटन किया गया है।ं

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