नई दिल्ली गेहूं के निर्यात पर पिछले चार साल से लगी रोक हटा ली गई है। कृषि मंत्री शरद पवार ने शनिवार को यह जानकारी दी। हालांकि अभी निर्यात की मात्रा पर फैसला नहीं किया गया है। विशेषज्ञ मानते हैं कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कम कीमत के कारण फिलहाल गेहूं निर्यात शायद ही फायदेमंद साबित हो। वहीं भरे गोदामों के बीच अगले साल आने वाले गेहूं के रखरखाव को लेकर भी चिंता बढ़ गई है। पवार ने बताया कि फिलहाल गोदामों में 370 लाख टन गेहूं है। उधर, प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने कृषि वैज्ञानिकों को सतर्क करते हुए कहा है कि अगले 10 वर्ष में देश को 28 करोड़ टन से ज्यादा अनाज की जरूरत होगी। फिर से एक हरित क्रांति की जरूरत बताते हुए उन्होंने कहा कि वैज्ञानिकों को सुनिश्चित करना होगा कि हर साल उत्पादन की दर में कम से कम दो फीसदी की बढ़ोतरी हो। उन्होंने कृषि उत्पादन के लिए उत्तर प्रदेश और पंजाब सहित पांच राज्यों को पुरस्कृत किया। शनिवार को भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आइसीएआर) के एक समारोह में प्रधानमंत्री ने जहां किसानों की पीठ थपथपाई वहीं भविष्य को लेकर अपनी चिंता से भी अवगत करा दिया। उन्होंने कहा कि आने वाले समय में हमें पक्की तैयारी करनी होगी। उन्होंने कहा कि वर्ष 1997-98 से लेकर वर्ष 2006-07 के दशक में कृषि उत्पादन की दर काफी कम रही है। हालांकि बाद में इसे ठीक किया गया है। सिंचाई, वैज्ञानिक मदद और कीटाणुओं से अनाज का बचाव बड़ी चिंता है। वैज्ञानिक शोध पर फिलहाल कृषि जीडीपी का 0.6 फीसदी खर्च किया जाता है। इसे दो-तीन गुना बढ़ाना होगा। वहीं सिंचाई को 30 फीसदी से बढ़ाकर कम से कम पचास फीसदी लाना होगा। साथ ही यह भी ध्यान रखना होगा कि नए-नए रोगों से अनाज का बचाव हो सके और किसानों की आमदनी में बढ़ोतरी हो। वर्ष 2010-11 में 24.1 करोड़ टन अनाज का उत्पादन हुआ है जो पिछले साल के मुकाबले 23 फीसदी ज्यादा है। इसी को देखते हुए पहले चावल और अब गेहूं के निर्यात पर से प्रतिबंध को हटाया गया है। सरकार ने वर्ष 2007 में घरेलू जरूरतों को पूरा करने और मुद्रास्फीति पर अंकुश लगाने के लिए गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध लगाया था। इसके एक साल बाद चावल निर्यात पर रोक लगा दी गई थी।
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