नई दिल्ली भूमि अधिग्रहण विधेयक के मसौदे पर आगे बढ़ रही सरकार को अभी से औद्योगिक समूहों का डर सताने लगा है। वह अपने ऊपर यह ठप्पा नहीं लगने देना चाहती कि सरकार औद्योगिकीकरण के खिलाफ है। इस मामले को देख रहे ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश सरकार के दूसरे मंत्रियों का साथ पाने के लिए खुद किसानों को लामबंद करने में जुट गए हैं। यही वजह है रमेश भूमि अधिग्रहण विधेयक तैयार कराने का श्रेय राहुल गांधी को देना भी नहीं भूले। जयराम रमेश औद्योगिक संगठनों के सरकार पर पड़ने वाले दबाव से वाकिफ हैं। भूमि अधिग्रहण के पिछले विधेयक पर पिछले सालों में काफी काम हुआ है। सरकार के पहले कार्यकाल में ही विधेयक दो बार कैबिनेट में गया। इसके पहले विधेयक कैबिनेट और मंत्रिसमूह के बीच घूमता रहा है। बमुश्किल मंजूरी मिल पाई थी, तब संसद में पेश किया जा सका था। इसीलिए उन्होंने किसानों को बताया कि यह मसौदा पहले कैबिनेट में जाएगा, इसके बाद संसद और फिर संसद की स्थायी समिति में रखा जाएगा। ग्रामीण विकास मंत्री से मिलने आज उत्तर प्रदेश के किसानों को लेकर कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष रीता बहुगुणा आई थीं। रमेश ने उनके कई तीखे व असहज सवालों के जवाब में बताया कि विधेयक का संशोधित मसौदा जल्दी ही जारी किया जाएगा। शहरीकरण और औद्योगिकीकरण के बीच फर्क करने की जरूरत है। सर्वाधिक विवाद शहरीकरण के लिए ली जाने वाली जमीन को लेकर है। मसौदे के जिन प्रावधानों को बदला जा रहा है, उनमें शहरीकरण की जमीन के सामाजिक प्रभाव आकलन की सीमा को एक सौ एकड़ से घटाकर 50 एकड़ करना शामिल है। किसानों की कुछ आपत्तियों पर मंत्री निरुत्तर नजर आये। अलीगढ़ के एक किसान नेता धीरेंद्र प्रताप ने पूछ लिया कि उनकी जमीन का अधिग्रहण होने के बाद आखिर उनकी डेयरी के पशु कहां जाएंगे। मसौदे में उनके बारे में कोई प्रावधान नहीं है। उनके रहने के शेड और चारे की समस्या आएगी। भूमि हीन किसान, जो बटाई पर खेती करते हैं, उनका क्या होगा? संयुक्त परिवार प्रणाली में सारी जमीन पिता के नाम पर होती है, ऐसे में बालिग बच्चों को भी इकाई माना जाएगा? किसान को दस साल तक हर महीने 2000 रुपये को बहुत कम बताते हुए इसे बढ़ाने की मांग। दो एकड़ और 50 एकड़ वाले किसानों की पेंशन राशि में फर्क होना चाहिए। चंदौली, मथुरा, अलीगढ़, सहारनपुर, गाजियाबाद, नोएडा और बुलंदशहर के किसान नेताओं ने बैठक में हिस्सा लिया। किस्तों में कत्ल हुआ मेरा.. नई दिल्ली : भूमि अधिग्रहण के मसले पर सरकारों की कथित नाइंसाफी को आडे़ हाथों लेते हुए उत्तर प्रदेश के किसानों ने ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश से यहां तक कह डाला, किस्तों में कत्ल हुआ मेरा, कभी खंजर बदल गया, कभी कातिल बदल गए। उनके निशाने पर वे सभी राजनीतिक दल थे, जिनकी सरकारें समय-समय पर उत्तर प्रदेश में बनीं और उन्होंने भी वही किया जो आज की सरकार कर रही है। इसलिए साहब कानून बदलने की बात करिए। किसानों ने 1991 से 2011 तक भूमि अधिग्रहण की दास्तानों का तरतीबवार जिक्र किया।
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