, नई दिल्ली अमेरिका के कर्ज संकट और साख चौपट होने का सबसे पहला शिकार चीन हो सकता है। अमेरिकी सरकार के ट्रेजरी बिलों में 1.6 ट्रिलियन डॉलर का निवेश रखने वाला चीन अमेरिका को सबसे ज्यादा कर्ज देता है। अमेरिकी कर्ज की साख गिरने से चीन के निवेश कीमत घट जाएगी। इसलिए राष्ट्रपति ओबामा को सबसे कड़वी नसीहत चीन ने दी है। डॉलर को दुनिया की केंद्रीय करेंसी के ओहदे से बेदखल करने के लिए चीन की मुहिम अब और तेज होने वाली है। भारत, रूस, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका के रुख इस संदर्भ में निर्णायक साबित होंगे। सोमवार को बाजार खुलने के बाद दुनिया के निवेशक चीन के कदमों पर करीबी निगाह रखेंगे। ट्रिपल ए क्लब से बाहर होने के बाद अब दुनिया में फ्रांस, जर्मनी, कनाडा, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया के पास यह ताज बचा है। बाजार मान रहा है कि चीन अपना कुछ निवेश इन बांडों में ले जा सकता है। मगर इसके लिए चीन बाजार में अमेरिकी बांडों की बिकवाली करेगा, जो घबराहट को पंख देगी। अमेरिका में संकट को लेकर चीन की चिंताएं कर्ज से परेशान यूरोप व राजनीतिक संकट के शिकार मध्य पूर्व से ज्यादा बड़ी हैं। इसलिए चीन ने आधिकारिक तौर पर कहा कि अमेरिका के लिए कर्ज के दिन अब लद चुके हैं। उसे अपना हिसाब- किताब ठीक करना चाहिए। चीन की समस्या यह है कि उसके पास 3,000 अरब डॉलर का दुनिया सबसे बड़ा डॉलर भंडार है। अमेरिका की साख गिरने और डॉलर की कीमत घटने से इस भंडार का मूल्य घटेगा। यही वजह है कि चीन ने दुनिया के लिए नई अंतरराष्ट्रीय करेंसी की मुहिम शुरू की है। चीन जिस ब्रिक समूह का सदस्य है, वह पहले ही तय कर चुका है कि ब्रिक देशों का आपसी कारोबार अब उनकी अपनी मुद्रा में होगा। ताजा संकट के बाद डॉलर को बेदखल करने की ब्रिक की मुहिम तेज हो सकती है। इस समूह में भारत, रूस और ब्राजील भी शामिल हैं।
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