अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल (क्रूड) की ऊंची कीमतों के चलते तेल कंपनियों पर बढ़ते बोझ से पेट्रोलियम मंत्रालय खासा चिंतित है। तेल कंपनियों के घाटे की भरपाई करने के लिए मंत्रालय ने वित्त मंत्रालय से 58 हजार करोड़ रुपये की राशि मांगी है। इसमें तीसरी तिमाही में कंपनियों की अंडर रिकवरी (घाटे में पेट्रो उत्पादों की बिक्री) के 15 हजार करोड़ रुपये की राशि भी शामिल है। चालू वित्त वर्ष 2011-12 की पहली तिमाही (अप्रैल से जून तक) तक तेल मार्केटिंग कंपनियों का नुकसान 43,000 करोड़ रुपये था। इसमें से वित्त मंत्रालय 14,000 करोड़ रुपये का भुगतान कंपनियों को कर चुका था। इसके अतिरिक्त 15,000 करोड़ रुपये का आश्वासन वित्त मंत्रालय से मिला था, लेकिन यह राशि कंपनियों को अब तक नहीं मिली है। इसलिए वित्त मंत्रालय पर तेल कंपनियों का पहली तिमाही का करीब 29,000 करोड़ रुपये बकाया है। दूसरी तिमाही (जुलाई- सितंबर) के लिए पेट्रोलियम मंत्रालय ने फिर से 14,000 करोड़ रुपये की मांग रखी, लेकिन वित्त मंत्रालय से अभी तक इस राशि पर भी कोई जवाब नहीं मिला है। सूत्रों के मुताबिक, पेट्रोलियम मंत्रालय ने वित्त वर्ष की दूसरी अनुदान मांगें भेजते समय तेल कंपनियों के लिए तीसरी तिमाही के 15,000 करोड़ रुपये की राशि भी जोड़ ली है। इसे मिलाकर पेट्रोलियम मंत्रालय ने अनुदान मांगों की दूसरी किस्त में तेल कंपनियों के लिए करीब 58,000 करोड़ रुपये की मांग वित्त मंत्रालय के सामने रख दी है। पेट्रोलियम मंत्रालय के अधिकारी मानते हैं कि वित्त मंत्रालय से तेल कंपनियों के लिए इतनी ज्यादा राशि मिलने की उम्मीद उन्हें भी नहीं है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड की कीमत अभी भी 110 डॉलर प्रति बैरल के आसपास बनी हुई है। ऊपर से डॉलर के मुकाबले रुपये की कमजोरी ने तेल मार्केटिंग कंपनियों पर बोझ बढ़ा दिया है, क्योंकि उनके लिए आयात अब महंगा हो गया है। इसकी वजह से इन तेल कंपनियों का नुकसान घरेलू बाजार की मौजूदा कीमत के मुकाबले लगातार बढ़ रहा है। पेट्रोलियम मंत्रालय चाहता है कि सरकार अगर पेट्रोल के दाम और बढ़ाने की इजाजत नहीं देती तो कम से कम तेल कंपनियों के नुकसान की भरपाई उसे करनी चाहिए।
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