एक तरफ महंगाई आम जनता को मुंह चिढ़ा रही है, तो दूसरी तरफ सरकारी अमला इसे लेकर जले पर नमक छिड़कने से बाज नहीं आ रहा। कमरतोड़ महंगाई के इस दौर में पिछले महीने ही योजना आयोग को 32 रुपये खर्च की गरीबी रेखा के मामले में खरी-खोटी सुननी पड़ी थी। अब भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआइ) के मुखिया डी सुब्बाराव ने महंगाई घटने के बारे में जो बयान दिया है, वह आग में घी डालने जैसा ही है। रिजर्व बैंक के निदेशक मंडल की जयपुर में हुई बैठक के बाद सुब्बा ने कहा है कि बढ़ती कीमतों पर कुछ हद तक अंकुश लगा है। मुद्रास्फीति को रोकने के लिए उठाए गए कदम से ही महंगाई और नहीं बढ़ी। जबकि हकीकत यह है कि सामान्य और खाद्य महंगाई अभी भी दस फीसदी के करीब बनी हुई हैं। अगस्त में मासिक महंगाई 9.78 फीसदी रही है और सितंबर के आंकड़े आने वाले हैं। इसी तरह एक अक्टूबर को समाप्त सप्ताह में खाद्य मुद्रास्फीति मामूली रूप से घटकर 9.32 फीसदी रही है। इससे पिछले सप्ताह यह 9.41 फीसदी थी। अप्रैल, 2010 से अब तक महंगाई को काबू में करने के लिए आरबीआइ 12 बार ब्याज दरों में बढ़ोतरी कर चुका है। अब केंद्रीय बैंक की 25 अक्टूबर को फिर छमाही मौद्रिक नीति समीक्षा में दरें बढ़ाने की तैयारी है। ब्याज दरें बढ़ाने की रणनीति से महंगाई की तपिश तो कम हुई नहीं, उलटे कर्ज जरूर महंगा हो गया। नतीजतन, न सिर्फ होम व ऑटो लोन लेने वाले उभोक्ताओं की जेब पर ज्यादा ईएमआइ का बोझ बढ़ा है, बल्कि लागत वृद्धि के नाम पर तमाम कंपनियों ने अपने-अपने उत्पाद महंगे कर दिए हैं। केंद्रीय बैंक के मुखिया कीमत वृद्धि पर जिस अंकुश की बात कर रहे हैं वह सिर्फ सरकारी आंकड़ों में नजर आती है। जबकि आम उपभोक्ताओं को नमक, तेल, दाल, सब्जी जैसे रोजमर्रा के सामान से लेकर कपड़े, घर और गाडि़यों तक के लिए ज्यादा जेब ढीली करनी पड़ रही है। यानी थोक मूल्य के आंकड़ों में भले ही कभी महंगाई घटे, मगर उपभोक्ताओं को इसका लाभ मिलता नजर नहीं आ रहा है। एक अक्टूबर को समाप्त सप्ताह के खाद्य महंगाई के जो सरकारी आंकड़े गुरुवार को जारी हुए हैं, उसमें भी इसकी बानगी साफ झलक रही है। खाद्य महंगाई के थोक मूल्य सूचकांक में तो मामूली कमी आई है, लेकिन सालाना आधार पर दूध 13.01 फीसदी मंहगा हुआ है। फल और सब्जियों के दाम क्रमश: 12.19 और 10.35 फीसदी बढ़े हैं। इसी तरह अंडा, मीट और मछली जैसे प्रोटीन आधारित उत्पाद भी सालाना स्तर पर 9.92 फीसदी मंहगे हुए हैं। अनाज 5.41, चावल 5.86 और दाल की कीमतों में 6.87 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। हालांकि, गेहूं और प्याज की कीमतों में थोड़ी गिरावट जरूर आई, लेकिन थोक मूल्य सूचकांक में यह कमी सिर्फ पिछले वर्ष के तुलनात्मक ऊंचे आधार की वजह से हुई है। पिछले साल की समान अवधि में खाद्य महंगाई 17 फीसदी से अधिक थी। प्याज सालाना आधार पर 10.15 और गेहूं 0.24 फीसदी सस्ता हुआ है। ईधन और बिजली की मुद्रास्फीति भी पेट्रोल की कीमतों में बढ़ोतरी के कारण बढ़कर 15.10 फीसदी हो गई है। प्राथमिक उत्पादों की मुद्रास्फीति दर 10.60 और गैर-खाद्य उत्पादों की 9.50 फीसदी रही है। इन आंकड़ों के बावजूद सुब्बाराव किस कीमत वृद्धि पर अंकुश लगने की बात कर रहे हैं, वही जानें। हालांकि, उन्होंने इतना जरूर कहा है कि नवंबर में आरबीआइ की निगरानी कमेटी की बैठक में मंहगाई और मंहगाई को रोकने के लिए उठाए गए कदमों के असर की समीक्षा की जाएगी।
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