Wednesday, November 21, 2012

भारत 2-3 साल में फिर पकड़ लेगा तेज रफ्तार



नई दिल्ली, प्रेट्र : भारतीय अर्थव्यवस्था फिर से कुलांचे भरती नजर आएगी। विश्व विख्यात अर्थशास्त्री जगदीश भगवती की मानें तो इसमें बहुत ज्यादा देर नहीं लगेगी। महज दो-तीन साल में यह फिर से ग्लोबल वित्तीय संकट से पूर्व वाली नौ फीसद की विकास दर हासिल कर लेगी। हां, इसके लिए जरूरी होगा कि सरकार हालिया आर्थिक सुधारों को और धार दे। भगवती अमेरिका की कोलंबिया यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर हैं। भारतीय मूल के जगदीश ने साक्षात्कार में कहा, अगर सरकार हाल में उठाए गए अपने कदमों पर डटी रही और इन्हें मजबूत करने से नहीं चूकी तो हम 2-3 वर्षो में आठ से नौ फीसद की ऊंची आर्थिक विकास दर पर वापस पहुंच सकते हैं। 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट से पूर्व भारतीय अर्थव्यवस्था की विकास दर लगातार तीन वर्षो तक नौ फीसद के आसपास रही थी। पिछले वित्त वर्ष 2011-12 में सकल घरेलू उत्पाद यानी जीडीपी की यह वृद्धि दर गिरकर नौ साल के निचले स्तर 6.5 फीसद पर आ गई। चालू वित्त वर्ष 2012-13 में इसके और घटकर 5.5 फीसद पर आने का अनुमान है। हाल ही में केंद्र सरकार ने रिटेल व विमानन क्षेत्र के लिए अपनी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआइ) नीति को खासा उदार बनाया है। सिंगल ब्रांड में 100 फीसद एफडीआइ की अनुमति के बाद मल्टी ब्रांड रिटेल में भी 51 फीसद प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को मंजूरी दी जा चुकी है। विमानन के मामले में विदेशी एविएशन कंपनियां घरेलू एयरलाइनों में 49 फीसद की हिस्सेदारी ले सकती हैं। बीमा और पेंशन कानूनों में बदलाव करते हुए इन क्षेत्रों में भी एफडीआइ की अधिकतम सीमा बढ़ा दी गई है। विकास बनाम कल्याण की बहस को लेकर भगवती ने कहा, अम‌र्त्य सेन, महबूब उल हक जैसे अर्थशास्त्री कहते रहे हैं कि आर्थिक विकास गरीबी पर असर नहीं डालता। मगर अब यह साफ हो गया है कि ऐसा नहीं है। 1991 के बाद हम कह सकते हैं कि विकास में लोगों को अधिक लाभदायक रोजगार देने की क्षमता है।

Dainik jagran National Edition 21-11-2012 vFkZO;oLFkk  ist -10

Tuesday, November 6, 2012

अर्थव्यवस्था पर आरोपों से बचने की जुगत में सरकार




ठ्ठ नितिन प्रधान, नई दिल्ली भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरी सरकार के लिए शीतकालीन सत्र अर्थव्यवस्था की खस्ता हालत को लेकर भी परेशानी का सबब बन सकता है। रेटिंग घटने की आशंका में सरकार का पूरा अमला अर्थव्यवस्था को दुरुस्त करने की कोशिश में जुट गया है। राजकोषीय संतुलन बिठाने से लेकर खजाने में राजस्व का प्रवाह बढ़ाने तक वित्त मंत्रालय ने तमाम विकल्प आजमाने शुरू कर दिए हैं। अगले महीने अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी फिच को भारत पर अपनी रिपोर्ट देनी है। उस वक्त संसद का शीतकालीन सत्र भी चालू होगा। संसद का सत्र इस महीने 22 तारीख से शुरू हो रहा है। ऐसे में यदि फिच भारत की रेटिंग घटा देती है तो सरकार को संसद में विपक्ष के आरोपों का सामना करना मुश्किल हो जाएगा। इस स्थिति से बचने की कोशिश में ही सरकार ने आर्थिक मोर्चे पर सुधार की रफ्तार बढ़ाने के साथ साथ राजकोषीय संतुलन बनाने के प्रयास तेज कर दिए हैं। राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 5.3 प्रतिशत तक सीमित रखने की वित्त मंत्रालय की हालिया घोषणा का मकसद ही अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियों को संतुष्ट करना था। सूत्र बताते हैं कि अर्थव्यवस्था की मौजूदा हालत से वित्त मंत्रालय खुद बहुत अधिक संतुष्ट नहीं है। निर्यात में तेज गिरावट के बाद चालू खाते का घाटा मंत्रालय के लिए सरदर्द बना हुआ है। उस पर राजस्व संग्रह की रफ्तार भी उम्मीद के मुताबिक नहीं बढ़ रही। शेयर बाजार की स्थिति विनिवेश पर आगे नहीं बढ़ने दे रही है। अब सरकार को गैर कर संग्रह में केवल स्पेक्ट्रम की नीलामी से मिलने वाली करीब 40,000 करोड़ रुपये की राशि पर ही भरोसा है। आर्थिक विकास की दर भी सरकार की चिंता बढ़ाए हुए है। ब्याज दरों को लेकर रिजर्व बैंक और वित्त मंत्रालय के मतभेद सामने आने के बाद विकास की रफ्तार बढ़ने की उम्मीद धूमिल पड़ने लगी है। सूत्र बताते हैं कि इसके मद्देनजर सरकार अर्थव्यवस्था की चालू वित्त वर्ष की मध्यावधि समीक्षा में विकास दर के अनुमान को घटा सकती है। जीडीपी की इस वृद्धि दर को वित्त मंत्रालय घटाकर 5.7 से छह प्रतिशत तक कर सकता है। रिजर्व बैंक ने भी अपनी दूसरी तिमाही की मौद्रिक नीति समीक्षा में अर्थव्यवस्था की रफ्तार के अनुमान को घटाकर 5.8 प्रतिशत कर दिया है। अर्थव्यवस्था की तस्वीर जो भी हो, मगर सरकार रेटिंग एजेंसियों की नजर में आर्थिक सुधारों के मोर्चे पर अब कमजोर पड़ते नहीं दिखना चाहती। अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां किसी भी देश की साख का आकलन करते वक्त अर्थव्यवस्था की मौजूदा स्थिति से ज्यादा सरकार द्वारा उठाए जा रहे कदमों और उनकी दिशा पर ज्यादा ध्यान रखती हैं। इसीलिए केंद्र की कोशिश आर्थिक सुधारों के साथ-साथ राजकोषीय संतुलन बनाने का खाका खींचने पर है।

Dainik Jagran National Edition -6-11-2012 अर्थव्यवस्था Page 10

Sunday, November 4, 2012

विकास दर में गिरावट का दौर खत्म



गुड़गांव, प्रेट्र : योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलुवालिया ने अनुमान जताया है कि आर्थिक विकास दर में गिरावट का सिलसिला अब थम चुका है। अहलूवालिया ने कहा कि चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेत मिले हैं। सीआइआइ के इन्वेस्ट नार्थ सम्मेलन में उन्होंने कहा कि पिछले वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही में आर्थिक विकास दर 5.3 फीसद रही थी, जो चालू वर्ष की पहली तिमाही में बढ़कर 5.5 फीसद हो गई। इसलिए यह कहा जा सकता है कि अर्थव्यवस्था में गिरावट का दौर समाप्त हो गया है। जनवरी-मार्च तिमाही में अर्थव्यवस्था की विकास दर नौ साल के निचले स्तर पर पहुंच गई थी। इसके बाद अगली तिमाही में अर्थव्यवस्था में कुछ सुधार दर्ज किया गया। सितंबर में देश के आठ प्रमुख उद्योगों की वृद्धि दर पिछले साल के मुकाबले लगभग दोगुनी होकर 5.1 फीसद पर पहुंच गई। कोयला, सीमेंट का उत्पादन और पेट्रोलियम पदार्थो की रिफाइनिंग बढ़ने से यह तेजी दर्ज की गई है। इसके अलावा औद्योगिक उत्पादन की दर में 2.7 फीसद की वृद्धि हुई है। इससे पहले दो माह तक इसमें गिरावट दर्ज की गई थी। मोंटेक ने कहा कि अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए उठाए गए सरकार के कदमों से विश्वास बढ़ा है। इसके परिणाम जनवरी से मिलने शुरू हो जाएंगे। सरकार पर निर्णय लेने में देरी के आरोपों के संबंध में योजना आयोग के उपाध्यक्ष ने कहा कि अधिकारी निर्णय लेने में अत्यधिक सतर्कता बरत रहे हैं इससे विकास दर प्रभावित हो रही है। केंद्र सरकार निर्णय लेने में देरी के सभी कारणों को दूर करने के उपाय कर रही है। इस काम में निजी क्षेत्र को सरकार की मदद करनी चाहिए। अहलुवालिया ने कहा कि विकास प्रक्रिया में ऊर्जा क्षेत्र की अहम भूमिका होती है। सरकार को उम्मीद है कि बिजली संयंत्रों को कोल लिंकेज और ईंधन सप्लाई उपलब्ध कराने संबंधी सभी मसलों को इस साल के अंत तक हल कर लिया जाएगा। उन्होंने कहा कि रसोई गैस की कीमतों में वृद्धि का फैसला वापस लेना सुधारों की प्रक्रिया में किसी बदलाव का संकेत नहीं है।
1.       Dainik Jagran National Edition 4-11-2012 vFkZO;oLFkk)Page -11

Friday, November 2, 2012

अर्थव्यवस्था में जान फूंकने को तीन सूत्रीय फार्मूला



ठ्ठ जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली धीमी पड़ रही अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अपनी मंत्रिपरिषद को तीन सूत्रीय नुस्खा सुझाया है। प्रधानमंत्री का मानना है कि बुनियादी ढांचे, निर्यात और राजकोषीय संतुलन पर जोर देकर अर्थव्यवस्था की रफ्तार को बढ़ाया जा सकता है। प्रधानमंत्री ने खासतौर पर इन तीनों क्षेत्रों से जुड़े अपने मंत्रियों को प्रयास तेज करने की सलाह दी। अपनी पूरी मंत्रिपरिषद के साथ बैठक में प्रधानमंत्री का पूरा जोर अर्थव्यवस्था में सुधार पर रहा। सूत्र बताते हैं कि बैठक के बाद अनौपचारिक चर्चा में भी प्रधानमंत्री ने आर्थिक विभागों से जुड़े अपने मंत्रियों को फैसलों की रफ्तार बढ़ाने की सलाह दी। उन्होंने खासतौर पर देश की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए बिजली की मांग और सप्लाई में अंतर को कम करने पर जोर दिया। सूत्रों ने बताया कि ऊर्जा मंत्रालय की स्वतंत्र प्रभार के तौर पर जिम्मेदारी संभालने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया को प्रधानमंत्री ने इसके लिए खास हिदायत दी। पीएम ने बैठक के प्रारंभ में ही बताया कि देश मुश्किल आर्थिक हालात से गुजर रहा है और इस परिदृश्य को बदलने के लिए सरकार को फोकस होकर काम करना होगा। इसके लिए उन्होंने न सिर्फ वित्त मंत्री से राजकोषीय संतुलन को बनाने और वित्तीय घाटा कम करने के उपाय करने को कहा, बल्कि इस लक्ष्य को पाने के लिए वाणिज्य, उद्योग व कपड़ा मंत्री आनंद शर्मा से निर्यात बढ़ाने के उपाय तलाशने को भी कहा। हालांकि प्रधानमंत्री का पूरा जोर बुनियादी ढांचे के विकास पर रहा और उन्होंने कहा भी कि इसके लिए सरकार ने 12वीं योजना में एक खरब डालर का निवेश जुटाने का लक्ष्य रखा है। प्रधानमंत्री ने कहा कि निर्यात लगातार गिर रहा है और राजकोषीय घाटा बढ़ता जा रहा है। चालू वित्त वर्ष में सरकार ने राजकोषीय घाटे के लिए सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 5.1 प्रतिशत का लक्ष्य तय किया था, लेकिन पहली छमाही खत्म होते होते यह लक्ष्य 5.3 प्रतिशत पर पहुंच गया है। प्रधानमंत्री चाहते हैं कि अब इस घाटे में और इजाफा न हो। हालांकि उन्होंने कहा कि भारत की संभावनाओं को लेकर बहुत अधिक नकारात्मक होने की आवश्यकता नहीं हैं, फिर भी हमें इन चुनौतियों से पार पाने के अपने प्रयासों की रफ्तार को दोगुना करना होगा।
  Dainik jagran National Edition -2-11-2012 अर्थव्यवस्था Page -3

Thursday, November 1, 2012

विकास दर 5.5 फीसद से घटी तो आरबीआइ उठाएगा कदम


मुंबई, प्रेट्र : विकास दर बढ़ाने को तरजीह न देने के आरोपों पर रिजर्व बैंक गवर्नर डी सुब्बाराव ने अपना रुख साफ किया है। उन्होंने कहा कि अगर अर्थव्यवस्था की रफ्तार मौजूदा साढ़े पांच फीसद से कम रहती है तो केंद्रीय बैंक इस दिशा में कदम उठाएगा। उन्होंने उम्मीद जताई की अक्टूबर-दिसंबर तिमाही में इसमें तेजी आएगी। वैसे, आरबीआइ ने चालू वित्त वर्ष के लिए 5.8 फीसद विकास दर का ताजा अनुमान लगाया है। मंगलवार को मौद्रिक समीक्षा के बाद बुधवार को अर्थशास्ति्रयों और विश्लेषकों संग बैठक में उन्होंने यह बात कही। विशेषज्ञों के सवालों का जवाब देते हुए सुब्बा ने कहा कि आरबीआइ के अनुमानों के मुताबिक अगली तिमाहियों में विकास दर में बढ़ोतरी होगी। उन्होंने कहा कि मार्च तिमाही में वृद्धि दर 5.3 फीसद रही थी जो जून तिमाही में बढ़कर 5.5 फीसद हो गई है। मौद्रिक समीक्षा के दौरान भी उन्होंने कहा था कि सरकार ने हाल में आर्थिक सुधार के जो फैसले किए हैं उससे अर्थव्यवस्था की रफ्तार बढ़ेगी।
Dainik Jagran National Edition 01-11-2012   Economics page -11