Thursday, September 29, 2011

अमीर ज्यादा टैक्स देने को तैयार रहें : चिदंबरम


2जी स्पेक्ट्रम घोटाले की आंच झेल रहे केंद्रीय गृह मंत्री पी चिदंबरम ने अमीरों से ज्यादा टैक्स वसूले जाने की वकालत की है। देश के विकास के लिए ज्यादा संसाधनों की जरूरत है। इसके लिए आवश्यक है कि राजस्व में बढ़ोतरी हो। हालांकि उन्होंने माना कि अधिकांश लोग इस बात से सहमत नहीं होंगे कि धनवान लोगों पर ज्यादा टैक्स लगे। बुधवार को यहां अखिल भारतीय प्रबंधन संघ (आइमा) के सालाना समारोह को संबोधित करते हुए चिदंबरम ने कहा कि संसाधनों में कमी के रुझान को रोकने के लिए कर राजस्व बढ़ाना होगा। भले ही लोग उनकी इस बात को पसंद न करें, लेकिन इसके बावजूद वो इस तरह का वक्तव्य देने का साहस दिखा रहे हैं। हालांकि चिदंबरम ने ही मई, 2004 से नवंबर, 2008 तक वित्त मंत्री रहते हुए टैक्स की दरों में कमी की थी। इस अवधि के लिए उन्हें स्वप्निल बजट पेश करने वाले वित्त मंत्री के तौर पर भी याद किया जाता है। उन्होंने स्वीकार किया, मैं ही वह वित्त मंत्री था, जिसने टैक्स की दरों में कमी की थी। इसलिए अब आपको ऊंची दर पर टैक्स देने के लिए भी तैयार रहना चाहिए, विशेष तौर पर धनी लोगों को ज्यादा टैक्स देने के लिए तैयार रहना चाहिए। यूरोप में धनी लोग खुद ज्यादा टैक्स देने की पेशकश कर रहे हैं। चिदंबरम का यह वक्तव्य राष्ट्रपति बराक ओबामा की उस सोच से मेल खाता है, जिसमें उन्होंने अमेरिका को संकट से उबारने के लिए वहां के धनी लोगों से ज्यादा टैक्स देने की अपील की है। चिदंबरम ने कहा कि नए बजट की तैयारियां शुरू हो गई हैं। लिहाजा कौन सा टैक्स बढ़े, इस बारे में चर्चा करने का यह उचित समय नहीं है। मगर इस बात पर गंभीरता से सोचना चाहिए कि देश के कर राजस्व को किस तरह से बढ़ाया जा सकता है।

Wednesday, September 28, 2011

इतराने को कुछ नहीं है हमारे पास


आंकड़े फिर से छलने के लिए आ गए हैं। फिजा को अनुकूल बनाने का हर उपाय आजमाया जा रहा है। जी, हां! पीपीपी यानी पर्चेजिंग पॉवर पैरिटी के आधार पर भारत दुनिया की शीघ्र ही तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है। इंटरनेशनल मॉनीटरिंग फंड यानी आइएमएपफ का आकलन है कि भारत जापान को पछाड़कर इस साल दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का खिताब खुद हासिल कर सकता है। जापान अभी दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। पहले और दूसरे स्थान पर क्रमश: अमेरिका और चीन का कब्जा है। कहने-सुनने में यह अच्छा लगता है। रोमांच भी महसूस होता है, लेकिन सोचने और एहसास करने की बात है कि भारत में एक तरफ जहां इतने बड़े पैमाने पर पर्चेजिंग पॉवर है कि वह जापान जैसे देश को पछाड़ने की कगार पर खड़ा है, वहीं दूसरी ओर विडंबना यह है कि भारत दुनिया के सबसे ज्यादा गरीब लोगों का निवास स्थान है। भारत में 40 करोड़ से ज्यादा लोग सरकारी पैमाने के हिसाब से ही गरीबी रेखा के नीचे हैं। क्या उनका जीडीपी से कोई रिश्ता नहीं होना चाहिए? अगर सकल घरेलू उत्पाद का मतलब सिर्फ देश के एक तबके का उत्पाद है यानी सकल घरेलू उत्पाद पर अगर एक तब्के का ही कब्जा है तो फिर इसे देश का सकल घरेलू उत्पाद क्यों कहते हैं? इसे क्यों नहीं ईमानदारी से कुछ भारतीयों का घरेलू उत्पाद कहते हैं। लोकतंत्र के कुछ पाखंड बहुत भयावह होते हैं। लोकतंत्र मर्यादा और लिहाज के नाम पर गेहूं के साथ घुन के पीस जाने को ज्यादती नहीं, मूल्य बताता है। यह खतरनाक है। बहरहाल, जो आइएमएफ का आकलन है, वह 2010 के आंकड़ों के आधार पर है, जिनके मुताबिक पिछले साल जापान की अर्थव्यवस्था 4.31 लाख करोड़ डॉलर की थी, जबकि भारत की अर्थव्यवस्था इसी दौरान 4.06 लाख करोड़ की थी। अब चूंकि इसी साल मार्च में जापान पर जबरदस्त सूनामी की मार पड़ी है, इसलिए विशेषज्ञों का आकलन है कि मोर्चे से अब जापान लगभग बाहर हो चुका है और नहीं हुआ तो हो जाएगा। दूसरी तरफ अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष के मुताबिक 2012 में भारतीय अर्थव्यवस्था के 7-8 फीसदी की दर से विकास की उम्मीद है। जब पूरे यूरोप की अर्थव्यवस्थाएं औसतन 2.5 की विकासदर से भी कुछ नीचे हों और अमेरिका एक ऐसे मोड़ पर आ खड़ा हुआ हो, जहां हर पल विकास के ठप होने की तलवार लटक रही हो, वहां भारत की अर्थव्यवस्था की यह गतिशीलता रोमांचित तो करती ही है, भारतीय होने के नाते गर्व भी दिलाती है। लेकिन सवाल है कि एक तरफ जहां भारतीय अर्थव्यवस्था आसमान चूमने की ओर बढ़ रही है, ठीक उसी समय बड़ी तादाद में गरीब भारतीय पाताल की तरफ क्यों धंसे जा रहे हैं? यह विचित्र विरोधभास है कि दुनिया एक पैमाने पर तो हमें अमेरिका, जापान और चीन के बराबर खड़ा करती है तो दूसरी तरफ हमारा शुमार अंगोला, हैती जैसे देशों में होता है। यह विडंबना नहीं तो और क्या है? इसका साफ मतलब है कि भारत में लोकतंत्र का भले नाम हो, लेकिन यहां भी विकास एक खास तबका का ही हो रहा है। अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष के पूर्वानुमानों में भारत को चमकते सूरज के देश की संज्ञा दी गई है और उगते सूरज के देश पर हमारा वर्चस्व होगा, इसका अनुमान व्यक्त किया गया है। लेकिन यह अनुमान इस हकीकत पर नजर क्यों नहीं घुमाता कि चमकते सूरज के देश में एक बहुत बड़ी आबादी अंधकार के कुंए में क्यों धंसी जा रही है? क्या उसे रोशनी पसंद नहीं? क्या उसे चमकने में कोई रुचि नहीं? नहीं, ऐसा नहीं है। दरअसल, लोकतंत्र की ढाल ने मलाईदार तबके को यह सहूलियत और विशिष्टता दे दी है कि दूसरों के लिए मलाई में हिस्सेदारी का कोई विधान ही नहीं बन रहा। हम इसीलिए हंसी का पात्र भी बन रहे हैं कि एक तरफ तो हमसे दुनिया के बड़े से बड़े देश डर रहे हैं। हमारी अर्थव्यवस्था का आकार उनमें दहशत भर रहा है। दूसरी तरफ हमारी यह भारी-भरकम अर्थव्यवस्था अपने ही कुछ लोगों को बिल्कुल अनदेखा कर रही है। सिर्फ अनदेखा ही नहीं कर रही, बल्कि मौका पड़ने पर उनके ऊपर गिरकर अपने वजन से उनकी जान भी लेने पर उतारू है। समझ में नहीं आ रहा है कि जीडीपी के बढ़ने पर खुश हों या महंगाई के बढ़ने पर मातम मनाएं? भारत भले दुनिया के चुनिंदा देशों में अपनी हैसियत दर्शाने के लायक हो गया हो, लेकिन जब तक देश के बहुसंख्यक लोग इस स्थिति में नहीं पहंुच जाएंगे कि उन्हें भी फील गुड का एहसास हो, तब तक यह बिल्कुल बेकार की उपलब्धि होगी। जब तक जीडीपी का मतलब देश नहीं होगा, तब तक भारत की इस कामयाबी से सारे भारतीयों का दिल भी नहीं धड़केगा। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

Wednesday, September 21, 2011

चालू वर्ष में रिकॉर्ड उत्पादन करेगी भेल

चीन से मिल रही चुनौती से निपटने के लिए सरकारी की इंजीनियरिंग कंपनी भारत हैवी इलेक्टि्रकल्स लिमिटेड (भेल) अब आक्रामक रणनीति अपनाते हुए अपनी कारोबारी गतिविधियों में तेजी ला रही है। कंपनी मौजूदा वित्त वर्ष में 20,000 मेगावाट की बिजली परियोजनाओं से उत्पादन शुरू करेगी और इतनी ही क्षमता के बिजली उपकरणों का उत्पादन करेगी। भेल के अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक बीपी राव ने कंपनी की 47वीं वार्षिक आम बैठक में यह जानकारी दी। भेल ने वर्ष 2010-11 में कुल 9,444 मेगावाट क्षमता की बिजली परियोजनाओं से उत्पादन शुरू किया था। यह उत्पादन कंपनी का एक वर्ष में शुरू किया गया सबसे ज्यादा उत्पादन था। राव ने कहा कि भेल क्रियान्वयन की अपनी क्षमता में लगातार सुधार कर रही है। कंपनी इसके लिए उपकरणों की आपूर्ति करने वालों की संख्या बढ़ाने, उन्नत विनिर्माण कार्य करने और सूचना प्रौद्योगिकी के और अधिक उपयोग पर जोर दे रही है। इसके अलावा कंपनी रेट कांट्रेक्ट, आउटसोर्सिंग बढ़ाने, ज्यादा उपकरण व संयंत्र काम पर लगाने, इंटरनेट के जरिए खरीद और परियोजना प्रबंधकों के अधिकार बढ़ाने जैसी रणनीतियां अपना रही है। भेल देश में बिजली परियोजनाओं के लिए उपकरण बनाने वाली सबसे बड़ी कंपनी है। देश की कुल स्थापित क्षमता में इसका 57 फीसदी योगदान रहा है। कंपनी की कारोबारी रणनीति के बारे में राव ने कहा कि क्षमता विस्तार का काम आगे भी जारी रहेगा इसके लिए अधिग्रहण की रणनीति भी अपनाई जाएगी। भेल ने वर्ष 2008 में सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी भारत हैवी प्लेट्स एवं वेसल्स (बीएचपीवी) का अधिग्रहण किया था। इसके अलावा कंपनी ने केईएल केरल की कसरगोड़ इकाई में भी 51 फीसदी हिस्सेदारी खरीदी है। केंद्र सरकार ने हाल में ही भेल की पांच फीसदी हिस्सेदारी सार्वजनिक निर्गम के जरिए बेचने का फैसला किया है। फिलहाल भेल में सरकार की 67.72 फीसदी हिस्सेदारी है। वित्त वर्ष 2010-11 में भेल की आय 27 फीसदी बढ़कर 43,337 करोड़ रुपये रुपये हो गई। इस दौरान कंपनी का कर पूर्व लाभ 9006 करोड़ रुपये रहा। बढ़ती प्रतिस्पर्धा के बावजूद कंपनी को देश-विदेश से 60,507 करोड़ रुपये के ऑर्डर मिले। कंपनी को इस वर्ष 24 देशों से कुल 3,738 करोड़ रुपये के उपकरण और मशीनों की आपूर्ति के ऑर्डर मिले। इस दौरान कंपनी को हांगकांग और तुर्की से सोलर सेल के ऑर्डर भी मिले। राव ने कहा कि कंपनी के निर्यात बाजार की संभावनाओं को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है

सेंसेक्स का तिहरा शतक

रुपये में कमजोरी के चलते आइटी कंपनियों की आय बढ़ने की उम्मीद में निवेशकों ने इन्फोसिस और टीसीएस की अगुआई में चौतरफा लिवाली की। इससे मंगलवार को बंबई शेयर बाजार (बीएसई) का सेंसेक्स 353.93 अंक यानी 2.11 प्रतिशत उछलकर हफ्ते भर बाद फिर से 17 हजार के पार पहुंच गया। यह संवेदी सूचकांक 17,099.28 अंक पर बंद हुआ। एक दिन पहले यह गिरावट के साथ 16,745.35 अंक पर बंद हुआ था। इसी प्रकार, नेशनल स्टॉक एक्सचेंज का निफ्टी 108.25 अंक यानी 2.15 प्रतिशत चढ़कर 5,140.20 पर बंद हुआ। सोमवार को यह 5,031.95 पर था। अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया दो साल के निचले स्तर 48.06 रुपये पर पहुंच गया है। रुपये की कमजोरी का लाभ सॉफ्टवेयर निर्यातक कंपनियों को मिलेगा, क्योंकि निर्यात बढ़ने से उनकी कमाई बढ़ेगी। भारतीय आइटी कंपनियों की 85 प्रतिशत आय अमेरिकी और यूरोपीय बाजारों से आती है। विदेशी बाजारों में तेजी के रुख का भी दलाल स्ट्रीट की कारोबारी धारणा पर सकारात्मक असर पड़ा। सेंसेक्स में खासा वजन रखने वाली कंपनियों- रिलायंस, इन्फोसिस और टीसीएस के शेयरों में तेजी भी बाजार में बढ़त की एक वजह रही। बीएसई का तीस शेयरों वाला सेंसेक्स इस दिन 16,768.63 अंक पर मजबूत खुला। कुछ समय बाद ही इसने सत्र के निचले स्तर 16,758.69 अंक को देख लिया। शुरू से ही तेजडि़यों ने बाजार को अपनी गिरफ्त में ले लिया। इनकी लिवाली के चलते अंतिम कारोबारी घंटे में यह सूचकांक सत्र के ऊंचे स्तर 17,135.44 अंक पर पहुंच गया। लिवाली के जोर से इस दिन बीएसई के सभी सूचकांक बढ़त पर रहे। आइटी के अलावा निवेशकों ने टेक्नोलॉजी, कंज्यूमर ड्यूरेबल और बैंकिंग कंपनियों के शेयरों में जबरदस्त दिलचस्पी दिखाई। सेंसेक्स की तीस कंपनियों में 28 के शेयर चढ़े, जबकि गिरने वाले सिर्फ 2 ही रहे

कमजोर पड़े सोना-चांदी

लगातार दो सत्रों की तेजी के बाद मंगलवार को सोने-चांदी में गिरावट आई। विदेशी बाजारों में कमजोरी के बीच स्टॉकिस्टों ने इनमें बिकवाली की। इससे पीली धातु 310 रुपये टूटकर 28 हजार 300 रुपये प्रति दस ग्राम हो गई। इसी तरह चांदी 800 रुपये लुढ़क कर 64 हजार 200 रुपये प्रति किलो पर बंद हुई। अंतरराष्ट्रीय बाजार में एक रोज पहले सोना गिरावट के साथ 1,770.07 डॉलर प्रति औंस पर बंद हुआ था। चांदी भी टूटकर बंद हुई थी। इसका असर घरेलू बाजार की कारोबारी धारणा पर भी पड़ा। इस दिन शेयर बाजारों में तेजी देख निवेशकों ने कीमती धातुओं में मुनाफावसूली कर शेयरों में निवेश किया। यह भी सोने-चांदी में गिरावट की एक वजह रही। स्थानीय सराफा बाजार में सोना आभूषण के दाम 310 रुपये के नुकसान के साथ 28 हजार 150 रुपये प्रति दस ग्राम पर बंद हुए। आठ ग्राम वाली गिन्नी भी 100 रुपये टूटकर 22 हजार 700 रुपये हो गई। चांदी साप्ताहिक डिलीवरी 995 रुपये की हानि के साथ 64 हजार 100 रुपये प्रति किलो बोली गई। चांदी सिक्का 1,000 रुपये की गिरावट के साथ 72,000-73,000 रुपये प्रति सैकड़ा हो गया

देसी साइकिल इंडस्ट्री को निगल रहा चीन

 ड्रैगन ने लुधियाना की साइकिल इंडस्ट्री को निगलना शुरू कर दिया है। साइकिल के अधिकतर पा‌र्ट्स चीन से आयात किए जा रहे हैं। आयात का यह आंकड़ा 1,200 करोड़ रुपये सालाना तक पहुंच गया है। इसमें तेजी से बढ़ोतरी जारी है।देश-दुनिया में मशहूर लुधियाना का साइकिल उद्योग ड्रैगन के इस हमले से अपना बाजार गंवा रहा है। आज एलॉय रिम, स्पोक्स, हब, स्टील बॉल, एयर पंप जैसे अधिकतर साइकिल पा‌र्ट्स चीन से आयात किए जा रहे हैं। यूनाइटेड साइकिल एंड पा‌र्ट्स मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन के पूर्व चेयरमैन मनजीत सिंह खालसा के अनुसार साइकिल निर्माण में इस्तेमाल किए जाने वाले अधिकांश स्पेयर पार्टस चीन से आ रहे हें। इससे छोटे घरेलू साइकिल उद्योग को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। एसोसिएशन के नवनिर्वाचित अध्यक्ष गुरमीत सिंह कुलार के मुताबिक प्रदेश के साइकिल उद्योग में चीन से इन पा‌र्ट्स का आयात लगातार बढ़ता जा रहा है

गोदरेज को दस साल में आय दस गुना होने की उम्मीद

एफएमसीजी कंपनी गोदरेज कंज्यूमर प्रॉडक्टस (जीसीपीएल) ने उम्मीद जताई है कि अगले दस साल में उसकी आय बढ़कर दस गुना हो जाएगी। कंपनी कारोबार बढ़ाने के लिए घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में अपनी पहुंच बढ़ाएगी। पिछले वित्त वर्ष में कंपनी की आय 3,800 करोड़ रुपये रही थी। कंपनी की योजना ग्रामीण इलाकों में अपनी पहुंच मजबूत करने की है। साथ ही वह विदेशों में अधिग्रहण पर भी विचार कर रही है। जीसीपीएल के मुख्य वित्तीय अधिकारी पी गणेश ने कहा कि कंपनी अपेक्षाकृत कम कीमत वाले उत्पाद बनाने पर जोर देगी। कंपनी के विपणन उपाध्यक्ष तरूण अरोड़ा ने कहा कि हम 3,000 से अधिक जनसंख्या वाले गांवों और कस्बों तक पहुंचना चाहते हैं और इसके लिए हमें सस्ते उत्पादों की जरूरत होगी। जीवीके छह अरब डॉलर का निवेश करेगी नई दिल्ली : ऑस्ट्रेलिया स्थित कोयला खदान कंपनी हैनकॉक कोल का अधिग्रहण कर चुका जीवीके समूह हैनकॉन की परिसंपत्तियों के विकास पर पहले चरण में छह अरब डॉलर का निवेश करेगा। जीवीके समूह ने 1.26 अरब डॉलर में हैनकॉन का अधिग्रहण किया है। जीवीके पावर एंड इंफ्रास्ट्रक्चर के मुख्य वित्तीय अधिकारी इसाक जार्ज ने कहा कि कंपनी सिंगापुर स्थित सहयोगी कंपनी जीवीके कोल डेवलपर्स में कुछ हिस्सेदारी बेचकर करीब एक अरब डॉलर जुटाने की संभावना तलाश रही है। हिस्सेदारी बिक्री के बाद भी कंपनी में जीवीके की हिस्सेदारी 51 फीसदी बनी रहेगी। जार्ज ने कहा कि हैनकॉक की परिसंपत्तियों के विकास पर कुल 10 अरब डॉलर का निवेश किया जाएगा। इसमें से हमारा योगदान करीब छह अरब डॉलर का होगा। इस विकास योजना का वित्त पोषण 70:30 के अनुपात में ऋण इक्विटी के जरिए किया जाएगा। एवेरॉन्न की 12 प्रतिशत हिस्सेदारी खरीदेगा वार्के गु्रप नई दिल्ली : दुबई स्थित वार्के ग्रुप की कंपनी जेम्स एज्यूकेशन एवेरॉन्न एज्यूकेशन की 12 फीसदी हिस्सेदारी खरीदेगी। इस हिस्सेदारी बिक्री के लिए एवेरॉन्न एज्यूकेशन 138.23 करोड़ रुपये के तरजीही शेयर जारी करेगी। एवेरॉन्न ने एक बयान में कहा कि कंपनी के निदेशक मंडल ने 528 रुपये प्रति शेयर मूल्य पर 26.18 लाख इक्विटी शेयर जारी करने की मंजूरी दी है। एवेरॉन्न एज्यूकेशन वीसैट प्रौद्योगिकी का उपयोग करते हुए देश के 16 राज्यों में शिक्षा सेवाएं उपलब्ध करा रही है। पूर्व सैट प्रमुख सी अच्युतन का निधन मुंबई : प्रतिभूति अपीलीय न्यायाधिकरण (सैट) के पूर्व पीठासीन अधिकारी सी अच्युतन का सोमवार दोपहर दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया। वह 70 वर्ष के थे। पुलिस के मुताबिक केरल में प्रसिद्ध सबरीमाला मंदिर में प्रवेश मिलने की प्रतीक्षा कर रहे अच्युतन को अचानक यह दौरा पड़ा। उनके पुत्र अनूप उस समय उनके साथ मौजूद थे। अच्युतन को पंपा जनरल हास्पिटल ले जाया गया जहां उन्हें मृत घोषित कर दिया गया। अच्युतन उन निदेशकों में से एक थे जिन्हें घोटाले के बाद सत्यम कंप्यूटर को उबारने के लिए सरकार द्वारा नियुक्त किया गया था। वह सेबी की नई अधिग्रहण नियमन सलाहकार समिति के भी अध्यक्ष रह चुके थे

मैन्युफैक्चरिंग नीति पर अब मंत्रियों का समूह करेगा फैसला

नई दिल्ली मैन्युफैक्चरिंग नीति मंत्रालयों के आपसी झगड़े में फंस गई है। मंत्रिमंडल की बैठक में इस नीति पर विवाद खुलकर सामने आने के बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अब इस मामले को मंत्रिसमूह (जीओएम) के हवाले कर दिया है। केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार इस नए जीओएम के अध्यक्ष होंगे। वाणिज्य व उद्योग मंत्रालय की इस नीति पर पर्यावरण और श्रम मंत्रालय ने आपत्ति जताई थी। इन आपत्तियों को नजरअंदाज करते हुए मंत्रालय नीति को कैबिनेट में मंजूरी के लिए ले गया, लेकिन बीते हफ्ते मंत्रिमंडल की बैठक में इस पर मंत्रालयों के आपसी विवाद खुल कर सामने आ गए। कैबिनेट की बैठक में न सिर्फ वन व पर्यावरण मंत्री जयंती नटराजन ने इस नीति के कुछ प्रस्तावों को लेकर आपत्ति जाहिर की, बल्कि विदेश दौरे के चलते कैबिनेट में उपस्थित नहीं होने वाले श्रम मंत्री मल्लिकार्जुन खड़गे ने लिखित में अपनी आपत्तियां पहले ही दर्ज करा दी थीं। सूत्रों के मुताबिक श्रम मंत्री ने प्रधानमंत्री से इस नीति पर उनकी उपस्थिति में ही बातचीत का आग्रह किया था। मैन्युफैक्चरिंग नीति को कैबिनेट में ले जाने से पहले भी औद्योगिक नीति व संव‌र्द्धन विभाग (डीआइपीपी) इन दोनों मंत्रालयों के साथ उनकी आपत्तियों को लेकर बातचीत कर चुका था। यह अलग बात है कि मंत्रालयों के आपसी विचार-विमर्श में कोई हल नहीं निकल पाया था। सूत्र बताते हैं कि इन तीनों मंत्रालयों के बीच उत्पन्न मतभेदों का हल नहीं निकलते देख अब प्रधानमंत्री ने इन मुद्दों पर फैसला लेने की जिम्मेदारी जीओएम को सौंप दी है। मंत्रालयों को क्या है एतराज वन व पर्यावरण मंत्रालय को इस नीति के तहत बनने वाले राष्ट्रीय निवेश एवं मैन्युफैक्चरिंग जोन (एनआइएमजेड) में लगने वाली इकाइयों को पर्यावरण मंजूरी की जरूरत के मुद्दे पर आपत्ति है। इस नीति में प्रस्ताव किया गया है कि एनआइएमजेड में लगने वाली यूनिटों में केवल खतरनाक उद्योगों से जुड़ी इकाइयों को ही पर्यावरण मंजूरी की आवश्यकता पड़ेगी। बाकी क्षेत्रों की इकाइयां इस जोन में बिना पर्यावरण मंजूरी के उद्योग लगा सकेंगी। पर्यावरण मंत्रालय का मानना है कि सभी तरह के उद्योगों को पर्यावरण मंजूरी की जरूरत होनी चाहिए। श्रम मंत्रालय ने नीति में प्रस्तावित लघु व मध्यम श्रेणी के उद्योगों में भविष्य निधि, मेडिक्लेम और बीमा की जिम्मेदारी किसी एक कंपनी को सौंपने पर एतराज जताया है। मंत्रालय का तर्क है कि इससे कर्मचारियों की बचत पर एक ही कंपनी का एकाधिकार हो जाएगा, जिसका खामियाजा कर्मचारियों को भुगतना पड़ेगा। कौन-कौन होगा जीओएम में सूत्रों के मुताबिक, मैन्युफैक्चरिंग नीति पर गठित होने वाले इस मंत्रिसमूह में पवार के अलावा जयंती नटराजन, मल्लिकार्जुन खड़गे, आनंद शर्मा, कानून मंत्री सलमान खुर्शीद और सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्योग मंत्री वीरभद्र सिंह को सदस्य बनाया गया है। अभी इस जीओएम की अधिसूचना जारी नहीं हुई है, लेकिन प्रधानमंत्री ने अमेरिका यात्रा पर जाने से पहले इसके गठन को मंजूरी दे दी है

Thursday, September 8, 2011

साठ फीसदी तक महंगे होंगे घर


रियल एस्टेट कंपनियों की आस टूटती नजर रही है। भूमि अधिग्रहण विधेयक के जिस प्रारूप को कैबिनेट ने मंजूरी दी है उसे तो उद्योग जगत स्वीकार कर रहा है और ही रियल एस्टेट कंपनियां। रियल एस्टेट कंपनियों ने तो कहा है कि इससे एनसीआर में आवासीय इकाइयों की कीमतों में 60 फीसदी तक की वृद्धि होगी जिससे मध्यम वर्ग के लिए घर खरीदना मुश्किल हो जाएगा। रियल एस्टेट कंपनियों के शीर्ष संगठन क्रेडाई के एनसीआर क्षेत्र के अध्यक्ष पंकज बजाज का कहना है कि अब दिल्ली, लखनऊ और लुधियाना जैसे शहर विकसित करना नामुमकिन होगा। उद्योग जगत को उम्मीद थी कि बहुफसली जमीन के अधिग्रहण को मंजूरी दी जाएगी। सरकार ने इस बारे में नियम में थोड़ी रियायत तो दी है, लेकिन उद्योग जगत का कहना है कि यह नाकाफी है। खास तौर पर उत्तर भारत के इलाकों में तो सुनियोजित तरीके से शहर बसाना नामुमकिन हो जाएगा। क्योंकि यहां की सभी जमीनें बहुफसली हैं। उद्योग जगत का कहना है कि पांच फीसदी में तो सिर्फ सड़क वगैरह बनाने का ही काम हो सकेगा। आवासीय कालोनियों का विकास तो नहीं हो सकेगा। क्रेडाई का यह भी कहना है कि इससे छोटे स्तर पर जमीन की बिक्री बढ़ेगी, जिससे बेतरतीब तरीके के शहरों का विकास होगा।