Saturday, August 20, 2011

अब शीतकालीन सत्र में पेश होगा खाद्य विधेयक


विभिन्न राज्यों और मंत्रालयों में सहमति नहीं बन पाने के कारण सरकार अब महत्वपूर्ण खाद्य सुरक्षा विधेयक को संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में ही पेश कर पाएगी। खाद्य मंत्री केवी. थॉमस ने बुधवार को यह जानकारी दी। इस विधेयक में सरकार ने देश की 70 फीसदी आबादी को कानूनी तौर पर सस्ता अनाज उपलब्ध कराने का प्रस्ताव किया है। पहले इस विधेयक को संसद के चालू मानसून सत्र में ही पेश किए जाने की उम्मीद थी। थॉमस ने कहा कि फिलहाल इस विधेयक पर विभिन्न राज्यों और मंत्रालयों के साथ विचार-विमर्श चल रहा है। मंत्रियों का अधिकार प्राप्त समूह और कानून मंत्रालय पहले ही विधेयक के मसौदे को मंजूरी दे चुके हैं। उन्होंने कहा कि विधेयक के मसौदे को पिछले शुक्रवार को ही राज्य सरकारों के पास उनकी राय के लिए भेजा गया है। इस प्रक्रिया में कम से कम 15 दिन का समय लगेगा। उसके बाद प्रधानमंत्री राज्यों के मुख्यमंत्रियों की बैठक बुलाएंगे, जिसमें विधेयक के प्रारूप को अंतिम रूप दिया जाएगा। स्वतंत्रता दिवस के मौके पर राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा था कि सरकार जल्द ही राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून लाएगी। खाद्य सुरक्षा कानून पर ठीक ढंग से अमल करने के लिए हमें देश का कृषि उत्पादन बढ़ाने की आवश्यकता है। 12 वीं योजना में हम इस दिशा में प्रयास तेज करेंगे। थॉमस ने कहा कि विधेयक में यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी की अगुवाई वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की ज्यादातर सिफारिशों को शामिल किया गया है। यह पूछे जाने पर कि इस विधेयक के दायरे में कितनी आबादी आएगी, खाद्य मंत्री ने कहा कि अभी हम अंतिम आंकड़ों तक नहीं पहुंचे हैं। राष्ट्रीय सलाहकार परिषद ने सुझाव दिया है कि इस कानून के दायरे में 90 प्रतिशत आबादी को लाया जाना चाहिए। वहीं अधिकार प्राप्त मंत्री समूह का कहना है कि इसके दायरे में केवल 75 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों को शामिल किया जाना चाहिए


18 एफडीआइ प्रस्ताव मंजूर


: सरकार ने 122.79 करोड़ रुपये के प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआइ) के 18 प्रस्तावों को मंजूरी दी है। इनमें पिपावाव डिफेंस एंड ऑफशोर इंजीनियरिंग का प्रस्ताव भी शामिल है। हालांकि वोडाफोन में एस्सार की हिस्सेदारी बेचने के प्रस्ताव पर निर्णय टाल दिया गया है। वित्त मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि विदेशी निवेश संव‌र्द्धन बोर्ड (एफआइपीबी) ने कुल 39 एफडीआइ प्रस्तावों पर विचार किया है। इसमें से 16 प्रस्तावों पर फैसला टाला गया है। जबकि चार प्रस्ताव खारिज किए गए हैं और एक आवेदक को भारतीय रिजर्व बैंक से संपर्क करने के लिए कहा गया है। एफआइपीबी की पांच अगस्त को हुई बैठक में पिपावाव डिफेंस ऑफशोर इंजीनियरिंग कंपनी के 81.62 करोड़ रुपये के विदेशी निवेश प्रस्ताव को मंजूरी दी गई। आर्थिक मामलों के सचिव आर गोपालन की अगुवाई वाले एफआइपीबी ने एयर व‌र्क्स इंडिया (इंजीनियरिंग) के भारतीय विमानन कंपनियों में 17.77 करोड़ रुपये के निवेश प्रस्ताव को भी मंजूरी दी। बयान में कहा गया कि वॉल्ट डिज्नी कंपनी के भारत में प्रसारण और डाउनलिंकिंग क्षेत्र में अतिरिक्त गतिविधियों के आवेदन को भी स्वीकार कर लिया गया। इसके अलावा डिश टीवी के शेयरों के हस्तांतरण से अतिरिक्त विदेशी निवेश जुटाने के प्रस्ताव को भी मंजूर किया गया है। गुजरात की ओम पाइल प्राइवेट लिमिटेड के 5.85 करोड़ रुपये के एफडीआइ प्रस्ताव को भी मंजूरी मिल गई है। हालांकि बोर्ड ने दूरसंचार कंपनी वोडाफोन एस्सार में मॉरीशस की दो कंपनियों द्वारा 5.48 प्रतिशत हिस्सेदारी 2,700 करोड़ रुपये में खरीदने के प्रस्ताव पर फैसला टाल दिया है। बोर्ड ने दूरसंचार क्षेत्र में विभिन्न गतिविधियों के संचालन के लिए भारतीयों के शेयर अप्रवासी भारतीयों को हस्तांतरित करने के प्रस्ताव को टाल दिया है। साथ ही एस्सार कैपिटल होल्डिंग्स (इंडिया) द्वारा दूरसंचार क्षेत्र की एक कंपनी में नई हिस्सेदारी खरीदने के प्रस्ताव पर भी फैसला टाल दिया है। पिछली बैठक में एफआइपीबी ने 3,844.7 करोड़ रुपये के 31 एफडीआइ प्रस्तावों को मंजूरी दी थी। बोर्ड विदेशी निवेश के प्रस्तावों को सिंगल विंडों सिस्टम के जरिए मंजूरियां प्रदान कर रहा है। बोर्ड की अगली बैठक दो सितंबर को प्रस्तावित है।


Wednesday, August 17, 2011

महाराष्ट्र और गुजरात में घटेगा प्याज उत्पादन


देश में प्याज के प्रमुख उत्पादक राज्य महाराष्ट्र और गुजरात में कम बरसात के कारण प्याज उत्पादन 20-30 प्रतिशत तक घट सकता है। राष्ट्रीय बागवानी शोध व विकास न्यास (एनएचआरडीएफ) के निदेशक आरके गुप्ता ने बताया कि फसल वर्ष 2010-11 (जुलाई-जून) में करीब 1.40 करोड़ टन प्याज का उत्पादन हुआ था। कम बरसात के कारण महाराष्ट्र, कर्नाटक और गुजरात में प्याज की खरीफ बुआई देर से हुई। इससे बाजार में प्याज आवक पर असर पड़ सकता है। आम तौर पर सितंबर में खरीफ प्याज की आवक होती है। इस बार इसके आने में अक्टूबर के अंत या नवंबर के पहले हफ्ते तक की देरी हो सकती है। गुप्ता ने कहा कि महाराष्ट्र के नाशिक व धूलिया, गुजरात के अहमदनगर व सौराष्ट्र और कर्नाटक के धारवाड़ व हुबली जैसे प्रमुख प्याज उत्पादक क्षेत्रों में कम बरसात हुई। एनएचआरडीएफ के आंकड़ों के अनुसार, इस वर्ष अगस्त से दिल्ली, नाशिक, बेंगलूर, चेन्नई, जयपुर, कोलकाता, मुंबई और पटना में प्याज की कीमतों में औसतन चार-आठ रुपये की बढ़ोतरी हुई है। प्याज के बढ़ते थोक और खुदरा मूल्य पर अंकुश लगाने के लिए सरकार हरकत में आ चुकी है। जून के बाद से प्याज का न्यूनतम निर्यात मूल्य तीन बार बढ़ाया जा चुका है। पिछले हफ्ते ही प्याज निर्यात को हतोत्साहित करने और घरेलू उपलब्धता को बनाए रखने के लिए सरकार ने प्याज के न्यूनतम निर्यात मूल्य को 45 डॉलर प्रति टन बढ़ाकर 275 डॉलर प्रति टन कर दिया था। प्याज की दो उन्नत किस्मों कृष्णापुरम और बेंगलूर रोज की कीमत को 50 डॉलर प्रति टन बढ़ाकर 400 डॉलर प्रति टन कर दिया गया।


सीएसआर में फेल हो रहीं कंपनियां


मुंबई देश की आजादी के 64 साल पूरे हो चुके हैं। अभी भी समाज के उत्थान के लिए बहुत कुछ करने की जरूरत है। सरकार में बैठे लोग अगर भ्रष्टाचार में लिप्त हैं, तो निजी कंपनियां भी अपने सामाजिक दायित्वों को नहीं निभा रही हैं। एक गैर लाभकारी संस्था, कर्मयोग ने कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी (सीएसआर) यानी कंपनी जगत की सामाजिक जिम्मेदारी के आकलन के बाद अपने शोध में यह बात कही है। शोध में स्वतंत्रता के बाद से अब तक की 500 सबसे बड़ी भारतीय कंपनियों का अध्ययन किया गया। अध्ययन में पाया गया कि इन कंपनियों के उद्यमियों में राष्ट्रीय भावना की भी कमी है। कर्मयोग ने अपने शोध में विभिन्न उद्योगों से जुड़ी सार्वजनिक, निजी और बहुराष्ट्रीय कंपनियों को शामिल किया। इनमें उपभोक्ता वस्तुओं, वाहन, आधारभूत संरचना, वित्तीय संस्थान शामिल थे। कर्मयोग सीएसआर स्टडी एंड रेटिंग नाम से किए गए इस अध्ययन के अनुसार एक भी कंपनी गे्रड फाइव हासिल नहीं कर सकी। यह ग्रेड उन कंपनियों को दिया जाता है, जो अपनी कुल बिक्री का 0.2 फीसदी सामाजिक जिम्मेदारियों पर खर्च करते हुए, सामाजिक सरोकारों के प्रति प्रतिबद्धता का प्रदर्शन करती हैं। कंपनियों के उत्पादों के पर्यावरण अनुकूल होने और अपने संयंत्रों के नजदीक रहने वालों से उनके व्यवहार को भी अध्ययन में शामिल किया गया। अध्ययन में केवल दो फीसदी यानी दस कंपनियां ही किसी तरह गे्रड फोर पाने में कामयाब रहीं। जबकि तीस फीसदी कंपनियां यानी 150 सबसे निचले दर्जे पर रहीं। मात्र 13 फीसदी कंपनियां ग्रेड थ्री पा सकीं। इससे संकेत मिलता है कि ये कंपनियां सीएसआर के प्रति कुछ गंभीर हो रही हैं। आइआइटी मुंबई से पढ़े और 2004 में कर्मयोग की स्थापना करने वाले विनय सोमानी का कहना है कि सीएसआर परिदृश्य में पिछले चार वर्षो में ही मुख्य बदलाव आया है, जब केंद्र सरकार ने कुछ माह पहले इसकी संस्तुति की। हार्वर्ड बिजनेस स्कूल से स्नातक विनय का कहना है कि व्यापक जागरूकता से कंपनियों की रिपोर्ट में उनकी सामाजिक गतिविधियां बढ़ी हैं। हालांकि, उन्हें अभी लंबा सफर तय करना है। पिछले वित्त वर्ष में इन सभी कंपनियों ने 37 लाख करोड़ की बिक्री की। जिसके अनुसार 7400 करोड़ रुपये सीएसआर पर खर्च होने चाहिए थे। जबकि खर्च महज 740 करोड़ रुपये ही किए गए।

Tuesday, August 16, 2011

अविकसित व उपेक्षित है हेलीकॉप्टर सेवा उद्योग


नई दिल्ली संचालन संबंधी बुनियादी ढांचे एवं प्रशिक्षण सुविधाओं की कमी की वजह से देश में हेलीकॉप्टर सेवाओं का समुचित विस्तार नहीं हो पा रहा है। अभी भी ज्यादातर वीआइपी उड़ानों के लिए ही हेलीकॉप्टरों का उपयोग हो रहा है। जबकि चिकित्सा और पर्यटन जैसे कई क्षेत्रों में इनके इस्तेमाल की भरपूर संभावनाएं हैं। संसद में पेश परिवहन, पर्यटन एवं संस्कृति संबंधी स्थायी समिति की रिपोर्ट में इस ओर सरकार का ध्यान आकर्षित किया गया है। समिति के मुताबिक इतने बड़े देश में महज 263 हेलीकॉप्टर हैं। इन्हें भी करीने से उड़ाने वालों की कमी है। ज्यादातर हेलीकॉप्टर बाहर से आयात होते हैं। इनकी मरम्मत और रखरखाव के इंतजाम भी अधूरे हैं। हेलीकॉप्टर पायलटों को प्रशिक्षण देने के लिए देश में राष्ट्रीय स्तर की एक भी अकादमी नहीं है। यह काम हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स की आंतरिक अकादमी के भरोसे चलाया जा रहा है। फिलहाल देश में नान शिड्यूल्ड ऑपरेटर परमिट के तहत 169 हेलीकॉप्टर वाणिज्यिक तौर पर संचालित हो रहे हैं। इसके अलावा 44 हेलीकॉप्टर सरकार और पीएसयू के स्वामित्व में हैं। जबकि 50 निजी क्षेत्र के तहत संचालित हो रहे हैं। इनमें 129 हेलीकॉप्टर एक (सिंगिल) इंजन, जबकि 134 दो (ट्विन) इंजन वाले हैं। इनमें से महज 18 हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स के बनाए हैं। जबकि 109 बेल हेलीकॉप्टर्स अमेरिका के, 60 यूरोकॉप्टर फ्रांस के, 28 ऑगस्टा-बेल/वेस्टलैंड इटली के और 44 अन्य विभिन्न कंपनियों (राबिन्सन, सिको‌र्स्की, एन्स्ट्राम, एमआइ-172, एमडी व शेवियर) के हैं। हेलीकॉप्टरों का संचालन विभिन्न नियम-कायदों के तहत होता है जिनमें एयरक्राफ्ट एक्ट, 1937 और समय-समय पर जारी सिविल एविएशन रिक्वायरमेंट्स (सीएआर) के नियम शामिल हैं। मगर मरम्मत एवं रखरखाव, प्रशिक्षण संबंधी संस्थानों और अकादमियों की कमी के कारण इनका समुचित पालन नहीं होता। आज की तारीख में देश में केवल एक हेलीकॉटर पायलट ट्रेनिंग अकादमी है जो सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी एचएएल के स्वामित्व में है। कुछ समय पहले ही उड्डयन महानिदेशालय (डीजीसीए) ने पीएचएचएल नामक कंपनी को पुणे में एक प्रशिक्षण अकादमी खोलने का प्रस्ताव दिया है। इसके अलावा गोंदिया (महाराष्ट्र) में एक राष्ट्रीय स्तर की पायलट अकादमी खोलने का प्रस्ताव है जहां हेलीकॉटर पायलटों को ट्रेनिंग दी जाएगी। हेलीकॉप्टर पायलटों की ट्रेनिंग में शुरू में सिमुलेटर का प्रयोग किया जाता है। दिल्ली में निजी क्षेत्र का एक फिक्स सिमुलेटर है। जबकि बड़े स्तर का सिमुलेटर बेंगलूर में एचएएल-सीएई के संयुक्त उद्यम के तहत हाल में लगाया गया है। इसके अलावा डीजीसीए ने हेलीकॉप्टरों की मरम्मत एवं रखरखाव के लिए भी कुछ ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट को मंजूरी दी है। समिति के मुताबिक आने वाले समय में देश में हेलीकॉप्टरों का इस्तेमाल कई गुना बढ़ने वाला है क्योंकि इनके उपयोग के नए क्षेत्र खुल रहे हैं। खासकर आपात चिकित्सा और पर्यटन में बड़ी संभावनाएं हैं। लिहाजा इस क्षेत्र के विस्तार के लिए पीएसयू और राज्य सरकारों की भी मदद ली जानी चाहिए।


Friday, August 12, 2011

सड़क परियोजनाओं में देरी से संसदीय समिति नाराज


नई दिल्ली देश के चारों महानगरों को जोड़ने वाली स्वर्णिम चतुर्भुज सड़क परियोजना के निर्माण में हो रही देरी पर संसद की प्राक्कलन समिति ने गहरी चिंता जताई है। उत्तर से लेकर दक्षिण और पूरब से लेकर पश्चिम को जोड़ने वाली महत्वपूर्ण सड़क परियोजना भी विलंब की शिकार है। यह राष्ट्रीय राजमार्ग विकास परियोजना (एनएचडीपी) के तहत संचालित है। संसद में पेश समिति की 2010-11 की रिपोर्ट में कहा गया है कि पूर्व-पश्चिम और उत्तर-दक्षिण कॉरीडोर परियोजना को 2009 में ही बन कर तैयार हो जाना था। कई बार अवधि विस्तार देने के बाद समिति को बताया गया कि दिसंबर 2010 में इसे एक बार फिर से अवधि विस्तार दिया गया। समिति ने इस बात पर चिंता जताई है कि परियोजना की 444 किलोमीटर सड़क के लिए अभी टेंडर तक नहीं दिए गए हैं। जब तक सारे टेंडर दिए नहीं जाते तब तक सड़क परिवहन मंत्रालय भी बता पाने की स्थिति में नहीं है कि यह परियोजना कब तक पूरी हो पाएगी। इस परियोजना में विलंब के संबंध में मंत्रालय के तर्को से भी समिति सहमत नहीं है। समिति ने अनुशंसा की है कि पूर्व-पश्चिम, उत्तर-दक्षिण कॉरीडोर के बचे काम के लिए बिना देरी किए टेंडर दिए जाएं और एनएचएआइ बोर्ड जैसी कोई उच्च स्तरीय कमेटी इसकी पाक्षिक निगरानी करे, ताकि निर्माण कार्यो में आगे कोई विलंब न हो। देश के चार महानगरों को जोड़ने वाली स्वर्णिम चतुर्भुज सड़क परियोजना को 2004 में पूरा होना था। समिति ने सात साल बाद भी इस परियोजना के पूरा नहीं होने पर नाराजगी जाहिर की है। मंत्रालय की इस दलील से समिति ने असहमति व्यक्त की कि इतने बड़े पैमाने की सड़क परियोजना को पूरा करने के लिए देश का निर्माण उद्योग सक्षम नहीं था। समिति ने कहा है भूतल परिवहन मंत्रालय सड़क निर्माण के काम में आने वाले भारी उपकरणों के आयात की अनुमति देने का फैसला लेने में शीघ्रता दिखाकर निर्माण में होने वाली देरी को कम कर सकता था। समिति ने अनुशंसा की है कि मंत्रालय सतत निगरानी करके जल्द से जल्द इस परियोजना को पूरा कराए।


निर्यात में तेज उछाल मगर आगे घटेगी रफ्तार


: अमेरिकी और यूरोपीय संकट के बावजूद जुलाई के निर्यात में 81.8 फीसदी की तेज बढ़त दर्ज की गई है। इंजीनियरिंग, पेट्रो-रसायन और रत्न एवं आभूषण क्षेत्र के बेहतर प्रदर्शन के चलते यह 29.3 अरब डॉलर पर पहुंच गया है। जबकि चालू वित्त वर्ष 2011-12 के पहले चार महीनों (अप्रैल-जुलाई) के दौरान निर्यात में 54 फीसदी की तेजी आई है। हालांकि सरकार ने चेताया है कि कठिन वैश्विक हालत में आगामी महीनों के दौरान यह रफ्तार शायद ही बरकरार रहे। वाणिज्य सचिव राहुल खुल्लर ने गुरुवार को निर्यात के आंकड़े जारी करते हुए कहा कि अमेरिका और यूरोपीय देशों में अनिश्चितता की वजह से निर्यात की रफ्तार को कायम रख पाना मुश्किल होगा। अगस्त-सितंबर से ही निर्यात की वृद्धि दर में कमी दिखाई देनी शुरू हो जाएगी। खुल्लर ने कहा कि ज्यादातर क्षेत्रों ने हालांकि बेहतर प्रदर्शन किया है, पर निर्यातकों को अति उत्साहित होने की जरूरत नहीं है। उन्हें संभलकर चलना चाहिए। माना जा रहा है कि अमेरिका और यूरोप में अनिश्चितता की वजह से वैश्विक मांग प्रभावित होगी। इन देशों की भारत के निर्यात में 35 फीसदी की हिस्सेदारी है। जुलाई में देश का इंजीनियरिंग निर्यात 8.7 अरब डॉलर का रहा। इसी तरह पेट्रोलियम उत्पादों का निर्यात 4.6 अरब डॉलर और रत्न एवं आभूषण निर्यात 3.5 अरब डॉलर का हुआ। इस दौरान आयात भी 51.5 फीसदी बढ़कर 40.4 अरब डॉलर पर पहुंच गया है। यानी इस महीने व्यापार घाटा बढ़कर 11.1 अरब डॉलर हो गया। चालू वित्त वर्ष के पहले चार महीनों में निर्यात 54 फीसदी उछल कर 108.3 अरब डॉलर का रहा है। इस दौरान आयात भी 40 फीसदी बढ़कर 151 अरब डॉलर पर पहुंच गया। पेट्रोलियम उत्पादों का आयात साल दर साल आधार पर 23 फीसदी बढ़कर 42 अरब डॉलर का रहा। निर्यातकों के संगठन फियो ने कहा कि निर्यात में इतनी तेजी वृद्धि हाल के समय में कभी नहीं हुई है।

केंद्र को सताने लगा औद्योगिक समूहों का डर


नई दिल्ली भूमि अधिग्रहण विधेयक के मसौदे पर आगे बढ़ रही सरकार को अभी से औद्योगिक समूहों का डर सताने लगा है। वह अपने ऊपर यह ठप्पा नहीं लगने देना चाहती कि सरकार औद्योगिकीकरण के खिलाफ है। इस मामले को देख रहे ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश सरकार के दूसरे मंत्रियों का साथ पाने के लिए खुद किसानों को लामबंद करने में जुट गए हैं। यही वजह है रमेश भूमि अधिग्रहण विधेयक तैयार कराने का श्रेय राहुल गांधी को देना भी नहीं भूले। जयराम रमेश औद्योगिक संगठनों के सरकार पर पड़ने वाले दबाव से वाकिफ हैं। भूमि अधिग्रहण के पिछले विधेयक पर पिछले सालों में काफी काम हुआ है। सरकार के पहले कार्यकाल में ही विधेयक दो बार कैबिनेट में गया। इसके पहले विधेयक कैबिनेट और मंत्रिसमूह के बीच घूमता रहा है। बमुश्किल मंजूरी मिल पाई थी, तब संसद में पेश किया जा सका था। इसीलिए उन्होंने किसानों को बताया कि यह मसौदा पहले कैबिनेट में जाएगा, इसके बाद संसद और फिर संसद की स्थायी समिति में रखा जाएगा। ग्रामीण विकास मंत्री से मिलने आज उत्तर प्रदेश के किसानों को लेकर कांग्रेस की प्रदेश अध्यक्ष रीता बहुगुणा आई थीं। रमेश ने उनके कई तीखे व असहज सवालों के जवाब में बताया कि विधेयक का संशोधित मसौदा जल्दी ही जारी किया जाएगा। शहरीकरण और औद्योगिकीकरण के बीच फर्क करने की जरूरत है। सर्वाधिक विवाद शहरीकरण के लिए ली जाने वाली जमीन को लेकर है। मसौदे के जिन प्रावधानों को बदला जा रहा है, उनमें शहरीकरण की जमीन के सामाजिक प्रभाव आकलन की सीमा को एक सौ एकड़ से घटाकर 50 एकड़ करना शामिल है। किसानों की कुछ आपत्तियों पर मंत्री निरुत्तर नजर आये। अलीगढ़ के एक किसान नेता धीरेंद्र प्रताप ने पूछ लिया कि उनकी जमीन का अधिग्रहण होने के बाद आखिर उनकी डेयरी के पशु कहां जाएंगे। मसौदे में उनके बारे में कोई प्रावधान नहीं है। उनके रहने के शेड और चारे की समस्या आएगी। भूमि हीन किसान, जो बटाई पर खेती करते हैं, उनका क्या होगा? संयुक्त परिवार प्रणाली में सारी जमीन पिता के नाम पर होती है, ऐसे में बालिग बच्चों को भी इकाई माना जाएगा? किसान को दस साल तक हर महीने 2000 रुपये को बहुत कम बताते हुए इसे बढ़ाने की मांग। दो एकड़ और 50 एकड़ वाले किसानों की पेंशन राशि में फर्क होना चाहिए। चंदौली, मथुरा, अलीगढ़, सहारनपुर, गाजियाबाद, नोएडा और बुलंदशहर के किसान नेताओं ने बैठक में हिस्सा लिया। किस्तों में कत्ल हुआ मेरा.. नई दिल्ली : भूमि अधिग्रहण के मसले पर सरकारों की कथित नाइंसाफी को आडे़ हाथों लेते हुए उत्तर प्रदेश के किसानों ने ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश से यहां तक कह डाला, किस्तों में कत्ल हुआ मेरा, कभी खंजर बदल गया, कभी कातिल बदल गए। उनके निशाने पर वे सभी राजनीतिक दल थे, जिनकी सरकारें समय-समय पर उत्तर प्रदेश में बनीं और उन्होंने भी वही किया जो आज की सरकार कर रही है। इसलिए साहब कानून बदलने की बात करिए। किसानों ने 1991 से 2011 तक भूमि अधिग्रहण की दास्तानों का तरतीबवार जिक्र किया।




Tatas and Jindals get together with Govt to bid for mines in Afghanistan


For the first time, two leading private sector groups, the Tatas and Jindals, have joined hands with state-owned undertakings to jointly bid for iron ore blocks in Afghanistan’s Hajigak mines. Tata Steel, Sajjan Jindal’s JSW and Navin Jindal’s JSPL have picked up 16 per cent stake each in the joint venture. Steel maharatna SAIL leads the pack with 18 per cent; the other two PSUs RINL and NMDC hold 17 per cent each.
The Hamid Karzai government in Afghanistan had invited expressions of interest (EoIs) for granting multiple exploration concessions for the Hajigak mines located in the mountainous Bamiyan province, 130 kms west of Kabul. SAIL has been asked by the Indian government to lead the consortium for the mines which have estimated reserves of 1.8 billion tonne.
Foreign Secretary Ranjan Mathai ascertained the progress in the bidding process today and said that the consortium put out a concerted bid. Majority of the partners are understood to be interested only in exploration. SAIL chairman C S Verma, however, told Afghan Mines Minister Wahidullah Shahrani during his New Delhi visit earlier this year that his company would be keen to set up a steel plant in Afghanistan if it provides infrastructural support and raw material sources.
The Afghan government’s bid documents require the bidders to submit a refundable bid bond for $5,00,000 (Rs 2.5 crore each). All royalties, cess and duties will be paid by the bidders. Those wishing to bid for more than one block have to submit separate bids for each block. The last date for bidding is September 3. The Karzai government would commence negotiations with bidders in October and award the contract by December.
The annual investment is estimated to be to the tune of Rs 22.5 crore and given that the contracted exploration period will be 30 years, the total estimated investment is expected to be about Rs 700 crore, besides the expenditure to be incurred in developing infrastructure and evacuation mechanisms, a government official said.
Today’s meeting chaired by Mathai deliberated on a possible mechanism to evacuate iron ore from Hajigak. The options being considered are: through Pakistan and through the Bandar Abbas Port in Iran. In any case, the consortium would have to execute infrastructure projects to build rail-road connectivity to evacuate the produce, the official said.



कर्ज की फिक्र पीछे छूटी मंदी रोकने की मुहिम हुई शुरू


, नई दिल्ली कर्ज संकट की चिंता छोड़ दुनिया भर के बैंक मंदी रोकने और ग्रोथ बचाने की जंग में कूदने वाले हैं। राह फेडरल रिजर्व ने दिखाई है। अमेरिका का यह केंद्रीय बैंक ब्याज दरों को वर्ष 2013 तक तक न्यूनतम रखेगा। इतना ही नहीं, उद्योगों व निवेशकों के लिए अपने खजाने भी खुले रखेगा। दुनिया के अन्य केंद्रीय बैंक भी ऐसा ही करेंगे। इससे ब्याज बढ़ने का दौर थमने और दरें कम होने की शुरुआत हो सकती है। मंगलवार को देर रात आए फेड रिजर्व के इस फैसले की उंगली पकड़कर बाजार बुधवार को कुछ खड़े होते दिखे। दुनिया के कई बाजारों में लड़खड़हाट के साथ कुछ सुधार हुआ। मोर्गन स्टेनली ग्लोबल इंडेक्स आधा फीसदी बढ़ा, मगर बाजारों में बहुत भरोसा नहीं था। फ्रांस की रेटिंग घटने का खतरा बुधवार को यूरोपीय बाजारों को रीढ़ कंपा गया। वहीं, धराशायी हुए एशियाई बाजार हल्की खरीद के सहारे कुछ उबरे। भारत में सेंसेक्स 273 अंक की बढ़त लेकर फिर सत्रह हजार के पार चला गया। मंगलवार को फेड रिजर्व के फैसले के बाद दो साल में सबसे अच्छा दिन दर्ज करने वाले अमेरिकी बाजार बुधवार को करीब तीन फीसदी की कमजोरी के साथ खुले। लगभग तीन दिन की अफरातफरी और अनश्चितता के बाद अब दुनिया के बैंक व राजनेता संकट से निबटने के लिए एक रणनीति के करीब पहुंचते दिख रहे हैं। कोशिश कर्ज संकट से ध्यान हटाकर मंदी रोकने की है, क्योंकि ग्रोथ सौ मर्जो की एक दवा है। फेड चेयरमैन बेन बर्नाकी ने साफ कर दिया कि अमेरिका कर्ज संकट की जगह ग्रोथ को गिरने से रोकने व बढ़ाने पर ध्यान देगा। कर्ज सस्ते रखे जाएंगे यानी बाजार में डॉलर की सप्लाई बढ़ेगी। फेड रिजर्व की बैठक में अप्रत्याशित तौर पर असहमति नजर आई। असहमत सदस्यों को महंगाई का डर सता रहा था, लेकिन कम से कम एक दिन बर्नाकी ने बाजारों को राहत जरूर दे दी। दूसरी तरफ जी-7 देशों के इशारे पर यूरोप के बैंक भी बाजार में सक्रिय हस्तक्षेप यानी बांडों की खरीद और सस्ते कर्ज की राह पकड़ने वाले हैं। संभवत: एशियाई बैंक भी यही रणनीति अपनाएंगे। बुधवार को बाजार यूरोप को लेकर ज्यादा बेचैन थे। बाजारों को लग रहा है कि ट्रिपल ए यानी सबसे ऊंची साख वाले क्लब से बाहर होने की राह पर अब फ्रांस का नंबर है। इसी वजह से यूरोप के बाजार बुरी तरह टूटे और असर मुद्रा बाजारों तक गया, जहां पहले से मार खा रहा यूरो और गिर गया। फ्रांस की रेटिंग घटना यूरोप में एक नए किस्म के राजनीतिक संकट की शुरुआत होगी। फ्रांसीसी बैंको के शेयरों पर मंदडि़यों का धावा था। इस देश के प्रमुख बैंक सोसाइटी जनरेली के शेयर में 23 साल की सबसे तेज गिरावट आई। हालांकि, मूडीज ने फ्रांस ने ट्रिपल रेटिंग जारी रखने का संकेत दिया है, लेकिन यूरोपीय बाजारों को इस पर विश्वास नहीं हुआ। ब्याज दरें कम रखने की रणनीति से शेयर बाजारों को तो राहत मिली, लेकिन मुद्रा बाजार में डॉलर को लेकर घबराहट है। अमेरिका में ब्याज दर कम होने से डॉलर की ताकत घटेगी। निर्यातकों के दबदबे वाले एशियाई बाजारों में डॉलर को लेकर आशंकाएं ज्यादा थीं।


उनकी साख डूबी और इनकी संभावनाएं


नई दिल्ली दुनिया की आर्थिक तस्वीर बिगड़ते ही रोजगारों का पूरा परिदृश्य तब्दील होने लगा है। वर्ष 2011 की शुरुआत में रोजगारों का बाजार मंदी से उबरने की उम्मीदें और सूचना तकनीक, रिटेल के अलावा इंजीनियरिंग व शोध विकास जैसे क्षेत्रों में नए अवसरों की संभावना से सराबोर था। वहीं, आज सन्नाटा और आशंका की मुश्किलें आ जमी हैं। नौकरियों के लिए मुश्किलें तितरफा हैं। घाटे से परेशान सरकारें खर्च व रोजगार के अवसर घटा रही हैं। सरकारों की यह हमलावर मुद्रा अमेरिका व यूरोप के रोजगार बाजारों में आतंक बन गई है। मंदी से डरी कंपनियों को देख एशिया व दक्षिण अमेरिका के उभरते बाजारों मे रोजगार चाहने वालों की सांसें अटकी हुई हैं। रही बची कसर लंदन में भड़की हिंसा ने पूरी कर दी है। वित्तीय संकट की हताशा प्रवासियों और मूल निवासियों के बीच तनाव की वजह बन रही है, जबकि राजनीति इसे भड़का रही है। मंदी से उबरने की कुछ ठोस उम्मीदों के मद्देनजर इस साल की शुरुआत में नौकरियों के बाजार का नजरिया बदलता दिख रहा था। सीएनबीएसी और करियर बिल्डर्स जैसे नामचीन जॉब आउटलुक सर्वेक्षण रोजगार बाजार के अच्छे दौर की तरफ इशारा कर रह थे। मगर अब रोजगारों के पारंपरिक व नए सभी क्षेत्रों पर निराशा का साया है। भर्ती मैनेजरों व निवेशकों की निगाहें गुरुवार को आने वाली अमेरिका की इनीशियल क्लेम्स रिपोर्ट पर हैं। यह अमेरिका बाजार में रोजगारों की स्थिति की बताएगी। पिछली रिपोर्ट ने कुछ उम्मीद बंधाई थी, मगर अमेरिका की रेटिंग घटने के बाद बहुत कुछ बदल गया है। रोजगारों पर सबसे बड़ा खतरा सरकारों की तरफ से आया है, जो कि रोजगारों का एकमुश्त बड़ा स्त्रोत हैं। घाटे और दमघोंटू कर्ज से घिरी सरकारें खर्च घटाने पर बाध्य हैं। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरून के रणनीतिक सलाहकार स्टीव हिल्टन की रोजगार विरोधी सूझ ब्रिटेन में राजनीतिक विवादों की वजह बनी है। खर्च कम करने के लिए स्टीव हिल्टन ने सरकारी रोजगार घटाने और अस्थायी श्रमिकों के लिए श्रम कानून सख्त करने की राय दी है। लंदन में भड़के दंगों के पीछे इस रणनीति को लेकर उभरी आशंकाएं भी एक वजह हैं। अस्थायी नौकरियां प्रवासियों का प्रमुख आकर्षण हैं और ताजा दंगों में प्रवासियों को शामिल बताया गया है। अमेरिका में कर्ज की सीमा बढ़ाने की राजनीतिक सहमति का प्रमुख आधार खर्च में कमी है। अमेरिका में राज्यों व स्थानीय सरकारें पहले ही नौकरियां काट रही हैं। करियर बिल्डर व सीएनबीसी ने सूचना तकनीक यानी आइटी (जॉब लिस्टिंग 45 फीसदी बढ़ी) और वित्तीय सेवाओं जैसे पारंपरिक क्षेत्रों के अलावा इंजीनियरिंग, प्रशासन, हेल्थकेयर, शोध व विकास, रिटेल व एकाउंटिंग को भर्तियों का नया सरताज बताया था। मानव संसाधन मैनेजरों व भर्ती एजेंसियों के बीच हुए इन सर्वे में पाया गया कि इन्नोवेशन के कारण शोध विकास, लागत घटाने के कारण इंजीनियरिंग और प्रशासनिक पुनर्गठन के कारण प्रशासन में रोजगार बढ़ने की उम्मीद है। साथ ही नए एकाउंटिंग नियमों के कारण एकाउंटिंग और संगठित रिटेल के विस्तार के चलते रिटेल व सेल्स में रोजगार बढ़ने की उम्मीद की जा सकती है। मगर आर्थिक सुस्ती सब चौपट कर रही है। ब्रिटेन में फैक्टरी उत्पादन गिरा है। अमेरिका में मंदी के कारण आउटसोर्सिग राजनीतिक निशाने पर होगी। चीन व भारत जैसी बड़ी आर्थिक मशीनें धीमी पड़ गई है। मंदी से रोजगार घटने की चिंता सबसे ज्यादा एशिया, अफ्रीका व लैटिन अमेरिका के बाजारों में हैं, क्योंकि उत्पादन का प्रमुख स्त्रोत यही बाजार हैं।




फेमा को बदल विदेशी मुद्रा की आवाजाही आसान करो


ऐसे समय जब वैश्विक मंदी के बादल फिर से मंडरा रहे हैं और भारत सहित तमाम देशों की मुद्राओं को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है, आरबीआइ की उच्चस्तरीय समिति ने विदेशों से पैसा लाने या ले जाने की मौजूदा नीतियों को काफी सरल बनाने का सुझाव दिया है। केजे उदेशी की अध्यक्षता वाली इस समिति की रिपोर्ट में कहा गया है कि व्यक्तिगत स्तर पर विदेशी मुद्रा के इस्तेमाल को लेकर फेमा के मौजूदा नियम काफी पुराने पड़ चुके हैं। समिति ने प्रवासी भारतीयों को भारत में निवेश करने, इलाज करने या अपने रिश्तेदारों को ज्यादा विदेशी मुद्रा भेंट स्वरूप देने का भी रास्ता खोल दिया है। उदेशी समिति ने चार महीने के भीतर ही अपनी रिपोर्ट तैयार कर बुधवार को आरबीआइ को सौंप दी। इसमें कहा गया है कि आज विदेशी कारोबार का आकार सकल घरेलू उत्पाद का 40 फीसदी है। हमें इस सच्चाई को ध्यान में रखते हुए ही विदेशी मुद्रा के आवागमन पर नियंत्रण करना चाहिए। इस संदर्भ में फेमा (विदेशी मुद्रा प्रबंधन कानून) का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि यह मूल तौर पर पुराने फेरा (विदेशी विनियमन नियंत्रण कानून) की तरह ही काम करता है।




Tuesday, August 9, 2011

मंदी की आहट


अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था गहरे संकट में धंसती जा रही है। कर्ज संकट से निबटने में अमेरिका व यूरोप की नाकामी के चलते मंदी का खतरा गहरा गया है। अमेरिका की कमजोर आर्थिक स्थिति पर वहां के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ने देर रात अपनी बैठक में मुहर लगा दी है। चीन व भारत की महंगाई व मांग की कमी आशंकाओं को मजबूत कर रही है। कर्ज संकट को लेकर दुनिया की सरकारें लगभग असहाय सी हैं। किसी भी स्तर पर फिलहाल कोई ठोस रणनीति नहीं उभरी है, जबकि रेटिंग एजेंसियां अंतरराष्ट्रीय बैंकों व निवेश संस्थाओं की रेटिंग घटा रही हैं। डरे हुए बाजार मंगलवार को जबर्दस्त अस्थिरता के बाद और गिरे। भारतीय समयानुसार करीब 12 बजे समाप्त फेड रिजर्व की बैठक में अगले दो साल तक ब्याज दरों को निम्नतम स्तर पर बनाए रखने का फैसला किया गया। बैठक के बाद कहा गया कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था की विकास दर सुस्त होने और महंगाई का भी खतरा बना हुआ है। फेड रिजर्व का यह इलाज अमेरिकी बाजारों को नहीं भाया। बैठक के पहले उत्सुकतावश ऊपर खुले अमेरिकी बाजार बाद में तेज गिरावट के शिकार हो गए। एशिया के बाजारों में इस दिन भुगतान संकट की नौबत बनती नजर आ रही थी। पूरी दुनिया में निवेशकों को करीब 3,800 अरब डॉलर की चपत लगी और समूचे विश्व का संयुक्त शेयर सूचकांक (मोर्गन स्टैनले व‌र्ल्ड इंडेक्स) 1.2 फीसदी गिर कर बंद हुआ। भारत में सेंसेक्स तेज उतार-चढ़ाव के बाद 132 अंक की गिरावट के साथ बंद हुआ। हालांकि, यह शुरुआत में 450 अंक तक लुढ़का था। बाजारों की घबराहट अब मुद्रा व जिंस बाजार तक फैल गई है। सोना नई ऊंचाई के रिकॉर्ड बनाने की मुहिम पर बढ़ते हुए 25,840 रुपये प्रति दस ग्राम हो गया। डॉलर में उतार-चढ़ाव व आशंकाओं के बीच मजबूती का नया आकर्षण स्विस फ्रैंक बन गया है। स्टैंडर्ड एंड पुअर्स (एसएंडपी) द्वारा अमेरिका की रेटिंग घटाने के चार दिन बाद भी दुनिया की सरकारें इस संकट को टालने की कोई रणनीति लेकर नहीं आ पाईं। अमेरिकी शेष कृष्ठ 2 कालम 1 कर

मंदी की आहट राष्ट्रपति बराक ओबामा ने देश व दुनिया को अमेरिकी साख का भरोसा दिलाने की कोशिश की, मगर बाजारों ने उनकी एक नहीं सुनी। मंदी की वापसी दुनिया के निवेशकों की नई चिंता है। अमेरिकी अर्थव्यवस्था में गिरावट तय है, यूरोप घिसट रहा है। शीर्ष 200 अर्थशास्ति्रयों के बीच रायटर्स द्वारा कराए गए ताजा सर्वे में कहा गया है कि अमेरिका में डबल डिप मंदी के आसार हैं। यानी वर्ष 2008-09 की मंदी एक बार फिर लौट सकती है। इस बीच डराने वाली बड़ी खबर चीन से आई, जहां महंगाई पर कोई काबू नहीं हो पा रहा है। भारत व चीन में विकास दर घटने से डरे निवेशक मान रहे हैं कि यह संकट एक मंदी पर जाकर खत्म होगा। बाजारों में अब नकारात्मक घटनाओं की श्रृंखला बन रही है। एशियाई देशों की रेटिंग पर खतरे से बाजार बेदम हो गए। अमेरिका के कुछ बैंकों व वित्तीय संस्थाओं की रेटिंग एक दिन पहले ही घट गई थी। यही हश्र कुछ और बैंकों का हो सकता है। दो साल पहले प्रमुख निवेश बैंक लीमन ब्रदर्स के ढहने के बाद एशिया के बाजार जिस तरह गिरे थे, ठीक वही स्थिति मंगलवार को बनती दिखी। मंदी का डर सबसे बड़ा था। एशियाई देशों को निर्यात घटने का भय सता रहा है, जबकि विदेशी निवेशक किनारा कर रहे हैं। कोरिया का शेयर सूचकांक कोस्पी एक बार तो दस फीसदी का गोता लगा गया। बाजार को उबारने के लिए कोरिया सरकार के स्टेट फंड को बाजार में उतरना पड़ा। जापान के मुद्रा बाजार में घाटा व गिरावट रोकने के लिए नियामकों को विशेष आदेश जारी करने पड़े। यूरोपीय बाजारो में गिरावट कुछ कम भी, लेकिन घबराहट व बेचैनी बहुत ज्यादा नजर आई। लंदन के बाजार में सोना अपनी दो साल की अपनी सबसे बड़ी तीन दिनी तेजी दिखाकर 1778 डॉलर प्रति औंस पर चढ़ गया। निवेशक केवल सोने व बांड को सुरक्षित मान रहे हैं। इसलिए नई खरीद इन्हीं दोनों की तरफ मुखातिब है।


..तो सस्ते होंगे पेट्रोल-डीजल


नई दिल्ली कर्ज संकट से घिरे अमेरिका की रेटिंग घटने से वैसे तो भारतीय अर्थव्यवस्था पर कई तरह के नकारात्मक असर पड़ेंगे, लेकिन कुछ अच्छे प्रभाव भी देखने को मिल सकते हैं। जानकारों का मानना है कि अमेरिका और यूरोप के ताजा हालात भारत में पेट्रोल डीजल की कीमत कम करने में मदद कर सकते हैं। साथ ही इससे खाद्य उत्पादों की महंगाई से भी राहत मिलने के आसार बन सकते हैं। ठंडा होगा कच्चा तेल जब भी अमेरिका में मांग कम होने की खबर फैलती है, सबसे पहले कच्चे तेल (क्रूड) की कीमत धाराशायी होती है। वर्ष 2008-09 में क्रूड कुछ दिनों के भीतर 145 डॉलर प्रति बैरल से गिरकर 50 डॉलर प्रति बैरल पर गया था। इस बार भी कुछ ऐसे ही आसार दिख रहे हैं। पिछले शुक्रवार को क्रूड के वायदा में 10 और हाजिर सौदे में 7 फीसदी की गिरावट देखी गई। अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड की कीमत अभी 107 डॉलर के करीब है। पिछली बार जब सरकार ने पेट्रोल, डीजल, केरोसीन और रसोई गैस को महंगा करने का फैसला किया था, तब क्रूड की आधार कीमत 95 डॉलर मानी गई थी। ऐसे में क्रूड की कीमत 95 डॉलर से कम होते ही कम से कम पेट्रोल डीजल की खुदरा कीमत में कमी आने की सूरत बनती है। काबू में आएगी महंगाई जानकारों का कहना है कि पिछले तीन वर्षो से कमोडिटी बाजार में जारी तेजी पर भी मौजूदा हालात ब्रेक लगा सकते हैं। खास तौर पर अगर चीन की अर्थव्यवस्था डगमगाती है तो इसका सीधा असर विश्व के खाद्य बाजार पर पड़ेगा। अंतरराष्ट्रीय बाजार में खाद्य तेल, चीनी, दुग्ध उत्पाद, गेहूं जैसे प्रमुख खाद्यान्नों की कीमतों में कमी सकती है। इसका असर भारतीय बाजार पर भी पड़ेगा। इससे सरकार के लिए महंगाई पर लगाम लगाने का काम आसान हो सकता है। कर्ज भी हो सकते हैं सस्ते अमेरिका और यूरोप के मौजूदा संकट की वजह से दुनिया भर में ब्याज दरों में गिरावट की संभावना जताई जा रही है। उद्योग चैंबर फिक्की की ओर से जारी सर्वेक्षण के मुताबिक, भारतीय उद्योग ग्लोबल मांग में कमी के साथ ब्याज दरों का बोझ नहीं उठा सकता। लिहाजा, रिजर्व बैंक वर्ष 2008-09 ग्लोबल मंदी की भांति ब्याज दरें घटा सकता है। इससे होम लोन अन्य बैकिंग कर्जो के सस्ता होने का रास्ता साफ होगा। सोने में होगा फायदा वित्तीय फर्म एजेंल ब्रोकिंग के कमोडिटी बाजार विशेषज्ञ नवीन माथुर का कहना है कि शेयरों में गिरावट की वजह से सोना एक बार फिर निवेशकों का पसंदीदा बन जाएगा। ऐसे में सोने की कीमत और नए रिकॉर्ड बनाए तो कोई आश्चर्य नहीं। एक अन्य जानकार का कहना है कि अगले कुछ हफ्तों बाद त्योहारी मौसम शुरू होने वाला है। इससे सोने की कीमत में और तेजी सकती है। हालांकि, चांदी में गिरावट की संभावना है और निवेशकों को इससे फिलहाल दूर ही रहने की सलाह दी गई है।