Tuesday, November 6, 2012

अर्थव्यवस्था पर आरोपों से बचने की जुगत में सरकार




ठ्ठ नितिन प्रधान, नई दिल्ली भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरी सरकार के लिए शीतकालीन सत्र अर्थव्यवस्था की खस्ता हालत को लेकर भी परेशानी का सबब बन सकता है। रेटिंग घटने की आशंका में सरकार का पूरा अमला अर्थव्यवस्था को दुरुस्त करने की कोशिश में जुट गया है। राजकोषीय संतुलन बिठाने से लेकर खजाने में राजस्व का प्रवाह बढ़ाने तक वित्त मंत्रालय ने तमाम विकल्प आजमाने शुरू कर दिए हैं। अगले महीने अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी फिच को भारत पर अपनी रिपोर्ट देनी है। उस वक्त संसद का शीतकालीन सत्र भी चालू होगा। संसद का सत्र इस महीने 22 तारीख से शुरू हो रहा है। ऐसे में यदि फिच भारत की रेटिंग घटा देती है तो सरकार को संसद में विपक्ष के आरोपों का सामना करना मुश्किल हो जाएगा। इस स्थिति से बचने की कोशिश में ही सरकार ने आर्थिक मोर्चे पर सुधार की रफ्तार बढ़ाने के साथ साथ राजकोषीय संतुलन बनाने के प्रयास तेज कर दिए हैं। राजकोषीय घाटे को सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 5.3 प्रतिशत तक सीमित रखने की वित्त मंत्रालय की हालिया घोषणा का मकसद ही अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसियों को संतुष्ट करना था। सूत्र बताते हैं कि अर्थव्यवस्था की मौजूदा हालत से वित्त मंत्रालय खुद बहुत अधिक संतुष्ट नहीं है। निर्यात में तेज गिरावट के बाद चालू खाते का घाटा मंत्रालय के लिए सरदर्द बना हुआ है। उस पर राजस्व संग्रह की रफ्तार भी उम्मीद के मुताबिक नहीं बढ़ रही। शेयर बाजार की स्थिति विनिवेश पर आगे नहीं बढ़ने दे रही है। अब सरकार को गैर कर संग्रह में केवल स्पेक्ट्रम की नीलामी से मिलने वाली करीब 40,000 करोड़ रुपये की राशि पर ही भरोसा है। आर्थिक विकास की दर भी सरकार की चिंता बढ़ाए हुए है। ब्याज दरों को लेकर रिजर्व बैंक और वित्त मंत्रालय के मतभेद सामने आने के बाद विकास की रफ्तार बढ़ने की उम्मीद धूमिल पड़ने लगी है। सूत्र बताते हैं कि इसके मद्देनजर सरकार अर्थव्यवस्था की चालू वित्त वर्ष की मध्यावधि समीक्षा में विकास दर के अनुमान को घटा सकती है। जीडीपी की इस वृद्धि दर को वित्त मंत्रालय घटाकर 5.7 से छह प्रतिशत तक कर सकता है। रिजर्व बैंक ने भी अपनी दूसरी तिमाही की मौद्रिक नीति समीक्षा में अर्थव्यवस्था की रफ्तार के अनुमान को घटाकर 5.8 प्रतिशत कर दिया है। अर्थव्यवस्था की तस्वीर जो भी हो, मगर सरकार रेटिंग एजेंसियों की नजर में आर्थिक सुधारों के मोर्चे पर अब कमजोर पड़ते नहीं दिखना चाहती। अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां किसी भी देश की साख का आकलन करते वक्त अर्थव्यवस्था की मौजूदा स्थिति से ज्यादा सरकार द्वारा उठाए जा रहे कदमों और उनकी दिशा पर ज्यादा ध्यान रखती हैं। इसीलिए केंद्र की कोशिश आर्थिक सुधारों के साथ-साथ राजकोषीय संतुलन बनाने का खाका खींचने पर है।

Dainik Jagran National Edition -6-11-2012 अर्थव्यवस्था Page 10

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