Friday, December 31, 2010

सबसे ज्यादा होगी हमारी जनसंख्या

 जनसंख्या के मामले में भारत उतना नियंत्रण नहीं कर पा रहा है जितने की जरूरत है। अगर इसी तेजी से भारत की आबादी बढ़ती रही तो 2025 तक हमारा देश इस मामले में चीन को पीछे छोड़ देगा। अमेरिकी जनगणना ब्यूरो ने यह अनुमान लगाया है। ब्यूरो के मुताबिक वर्ष 2025 तक भारत की जनसंख्या 1.396 अरब हो जाएगी जो दुनियाभर के देशों में सर्वाधिक होगी। अमेरिकी जनगणना ब्यूरो का अनुमान इसी हफ्ते जारी किया गया है। इसके मुताबिक भारत जनसंख्या के मामले में पहली बार चीन से आगे निकलेगा। अनुमान है कि वर्ष 2025 में भारत की जनसंख्या उस वक्त चीन की जनसंख्या से 20 लाख ज्यादा होगी जबकि वर्ष 2050 में भारत की जनसंख्या बढ़कर 1.656 अरब हो जाएगी और चीन की जनसंख्या घट कर 1.330 अरब रह जाएगी। चीन में 1980 से एक महिला के एक बच्चे की नीति पर काम किया जा रहा है। इस विवादित नीति का लक्ष्य बढ़ती जनसंख्या पर लगाम लगाना है। फिलहाल चीन में महिला पर 1.5 च्च्चे का औसत है जबकि भारत में यह औसत 2.7 च्च्चे का है। हालांकि भारत में शहरीकरण और शिक्षा को बढ़ावा मिलने के कारण जन्म दर में कमी आई है। यह जनसांख्यिकीय परिवर्तन भारत की तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर सकता है। युवा वर्ग के रुझान के कारण चीन विनिर्माण क्षेत्र का गढ़ बन चुका है जिससे देश में निर्यात को जबरदस्त बढ़ावा मिला है। इस कारण भारत के मुकाबले चीन की बढ़ोतरी दर ज्यादा है। मगर आने वाले सालों में चीन को सिकुड़ते मजदूर बल और पेंशनभोगियों के बोझ का सामना करना पड़ सकता है। अमेरिकी जनगणना ब्यूरो का आकलन है कि वर्ष 2050 में दुनिया के सर्वाधिक जनसंख्या वाले 10 देश दक्षिण एशिया के होंगे। इनमें भारत और चीन के साथ ही पाकिस्तान और बांग्लादेश भी शामिल होंगे। फिलहाल पाकिस्तान छठे स्थान पर है जो वर्ष 2025 तक पांचवें स्थान पर आ जाएगा और बांग्लादेश नौवें स्थान पर आ जाएगा। पहले स्थान पर भारत, दूसरे पर चीन, तीसरे पर अमेरिका और चौथे पर इंडोनेशिया होंगे। जिन देशों की जनसंख्या घटने की उम्मीद है उनमें जापान, रूस, जर्मनी शामिल हैं। इन देशों में पिछले कुछ सालों के दौरान काफी धीमी जन्म दर रही है। जापान फिलहाल जनसंख्या के मामले में 10वें नंबर पर है, मगर ब्यूरो के अनुसार 2050 तक यह गिरकर 20वें स्थान पर पहुंच जाएगा।

सस्ते प्याज की उम्मीद छोडि़ए!

 प्याज में लगी आग को ठंडा करने के लिए की गई सरकार की कोशिशों से फिलहाल भले ही इसकी कीमतों में थोड़ी नरमी आ गई है, लेकिन ज्यादा समय तक इसके दामों को दबाए रखना सरकार के लिए चुनौती भरा होगा। बेमौसम बरसात से पहले ही देश के सबसे बड़े उत्पादक राज्य महाराष्ट्र में प्याज की 70 प्रतिशत फसल खराब हो गई है। इसकी पुष्टि खुद देश की शीर्ष कृषि संस्था आइसीएआर ने कर दी है। वहीं, मुनाफा काटने के लिए अधिकतर किसानों ने समय से पहले ही प्याज खोदकर बाजार में बेच लिया है। पाकिस्तानी प्याज भी भारत की मांग पूरा नहीं कर सकेगा, ऐसे में लाख टके का सवाल है कि यह आएगा कहां से? इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च (आइसीएआर) ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कहा है कि बेमौसम बारिश से प्याज की खरीफ फसल बर्बाद हो चुकी है। किसानों ने भी इसके बचाव के समुचित उपाय नहीं किए। इससे पर्पल एंथ्राक्नोस और पर्पल ब्लॉच नाम के दो रोग पैदा हो गए और इनसे फसल चौपट हो गई। भारत में सालाना करीब 40 लाख टन प्याज पैदा होता है। प्याज की पैदावार के मामले में हमारा देश सिर्फ चीन से ही पीछे है। मगर फिलहाल संकट की स्थिति बनी हुई है। प्याज खुदरा बाजार में अभी भी 40 से 50 रुपये किलो बिक रहा है। इसके दाम एक हफ्ते पहले 70-80 रुपये किलो चले गए थे। इन दामों पर मुनाफा काटने के चक्कर में अधिकतर किसानों ने समय पूर्व ही प्याज खोद लिया है। वैसे यह प्याज 15 जनवरी के बाद आने वाला था। आने वाली फसल के भरोसे प्याज की कीमतों को थामने के सपने संजोए सरकार की योजनाओं को चकनाचूर कर सकता है। ऐसे में पाकिस्तान से प्याज आयात की आशा लगाई गई है, लेकिन दिक्कत यह है कि वहां प्याज का इतना उत्पादन होता ही नहीं है कि भारत की जरूरतें पूरी कर सके। यही वजह है कि भारत में प्याज का निर्यात करने के बाद वहां इसकी कीमतें आसमान छूने लगी हैं। लिहाजा वहां से प्याज का आयात फायदे का सौदा साबित नहीं होगा। प्याज की कीमतों पर कैसे अंकुश लगेगा, जब राजधानी में सरकारी बूथों पर बिकने वाले प्याज की कीमत ही 40 रुपये से बढ़ाकर 45 रुपये प्रति किलो कर दी गई है। खास बात यह है कि इस दौरान मंडियों में प्याज के दाम लगभग स्थिर बने हुए हैं।

आसमान छूती महंगाई से सरकार हलकान

खाद्य उत्पादों की महंगाई अब सरकार को परेशान करने लगी है। थोक मूल्यों पर आधारित खाद्य उत्पादों की महंगाई दर के पंद्रह प्रतिशत के करीब पहुंचते ही प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने गुरुवार को कीमतों पर मंत्रिमंडलीय समिति की बैठक कर खाद्य उत्पादों की कीमतों की समीक्षा की। कीमतों को काबू में रखने की कड़ी मशक्कत के बावजूद महंगाई की दर हफ्ते दर हफ्ते बढ़ती जा रही है। इस सप्ताह भी खाद्य उत्पादों की महंगाई की दर 2.31 प्रतिशत बढ़कर 14.44 प्रतिशत पर पहुंच गई है। इसे देखते हुए कीमतों पर मंत्रिमंडलीय समिति ने फल, अंडा, मीट, मछली, दूध और सब्जियों की ऊंची कीमतों पर चिंता जताई। बाजार में प्याज की आपूर्ति और दामों को लेकर भी बैठक में चर्चा हुई। इसके अलावा अनाज की उपलब्धता पर भी समिति ने विचार किया। उधर, बढ़ती महंगाई के भय से कैबिनेट ने सामान्य उपभोक्ताओं के लिए राशन की दुकानों से मिलने वाले रियायती दर के गेहूं और चावल की कीमत में वृद्धि के प्रस्ताव पर कोई फैसला टाल दिया। इस प्रस्ताव पर कैबिनेट अक्टूबर के बाद से लगातार चर्चा कर रहा है। पिछले सप्ताह महंगाई दर 12.13 प्रतिशत पर थी। खुदरा बाजार में रोजमर्रा के उपयोग वाली वस्तुओं की बढ़ी कीमतों ने महंगाई दर को 10 महीने के उच्चतम स्तर पर ला दिया है। यह लगातार पांचवां सप्ताह है जब महंगाई में वृद्धि दर्ज हुई है। इस वृद्धि ने जहां एक तरफ जनता का बजट लड़खड़ा दिया है, वहीं बढ़ती महंगाई को नियंत्रित करने के लिए रिजर्व बैंक नए साल में प्रमुख नीतिगत दरों में बढ़ोतरी की पहल भी कर सकता है। इसी बीच वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने कहा कि बढ़ती महंगाई सरकार के लिए चिंता की बात है। संवाददाताओं से बातचीत में मुखर्जी ने कहा कि हम महंगाई को गंभीरता से ले रहे हैं। जहां तक प्याज का सवाल है सरकार ने इसकी कीमतें घटाने के उपाय किए हैं। मगर दूध, फलों, सब्जियों और अन्य जिंसों की कीमतों में घट-बढ़ का असर महंगाई पर दिख रहा है। उन्होंने चालू वित्त वर्ष के अंत तक महंगाई दर के 6.5 प्रतिशत के इर्द-गिर्द आने की उम्मीद जताई है। वाणिज्य मंत्रालय ने गुरुवार को महंगाई के ताजे आंकड़े जारी किए हैं। सालाना आधार पर प्याज सबसे ज्यादा 39.66 प्रतिशत महंगा हुआ। फल 21.97 प्रतिशत, दूध 17.75 प्रतिशत और अंडा-मीट व मछली में भी 20.34 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। सब्जियां के दाम में 29.26 प्रतिशत का इजाफा हुआ है। वहीं, आलू, गेहूं और दालों की कीमतें कम हुई हैं। साप्ताहिक आधार पर पोल्ट्री चिकन 18 प्रतिशत, फल-सब्जियों और मूंग में तीन-तीन प्रतिशत की वृद्धि हुई है। बाजरा और ज्वार भी एक-एक प्रतिशत महंगा हुआ है। हालांकि, अरहर और मसूर के दाम घटे हैं।

देश के विदेशी व्यापार ने पकड़ी रफ्तार

 इस साल देश का विदेशी व्यापार पांच सौ अरब डॉलर का आंकड़ा पार करने की संभावना है। विश्व व्यापार में इस वर्ष 13.5 फीसदी की वृद्धि का अनुमान है। वैश्विक मंदी से उबरते हुए विश्व बाजार में सुधार के सहारे भारत से वस्तुओं के आयात-निर्यात में अच्छी तेजी दर्ज की गई। इस दौरान आयात का आंकड़ा 350 अरब डॉलर तक पहुंचने की संभावना है। पिछले साल कुल 288 अरब डॉलर का आयात हुआ था। चालू वित्त वर्ष में भारत से वस्तुओं का निर्यात 200 अरब डॉलर के पार जा सकता है। विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) की एक रिपोर्ट के मुताबिक अर्थशास्ति्रयों ने वर्ष 2010 में विश्व व्यापार की वृद्धि के अपने अनुमान को बढ़ाकर 13.5 फीसदी कर दिया है। भारतीय अर्थव्यवस्था अपनी खुली व्यापार नीतियों के चलते वैश्विक स्पर्धा में तेजी से आगे बढ़ रही है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि चालू वित्त वर्ष में भारत का व्यापार घाटा 120-130 अरब डॉलर के दायरे में रहने का अनुमान है। वर्ष 2010 के दौरान अंतरराष्ट्रीय व्यापार जगत में कई विवाद भी दिखे। अमेरिका और चीन के बीच विनियम दर नीति को लेकर वाद-विवाद हुआ। अमेरिका चाहता है कि चीन अपनी मुद्रा युआन की दर को बाजार पर छोड़े। उसकी राय में चीन अपना निर्यात बढ़ाने के लिए युआन को कृत्रिम तौर से सस्ता रखे हुए है। इससे अमेरिकी कंपनियों का कारोबार प्रभावित होता है। अमेरिका पर भी ऐसे ही चालें चलने का आरोप लगा है। अमेरिका के केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ने नवंबर में घोषणा की कि वह मंदी से जूझती अपनी अर्थव्यवस्था में नकदी बढ़ाने के लिए 600 अरब डॉलर की सरकारी प्रतिभूतियों की खरीदारी करेगा। ऐसी नीति का सीधा असर डॉलर की विनिमय दर पर पड़ सकता है और डॉलर सस्ता हो सकता है। अमेरिका ने अपनी कंपनियों पर आउटसोर्सिग के बजाय देश में ही नौकरी देने पर बल दिया। भारत जैसे देशों ने उसकी इस नीति को विरोध किया है। अमेरिका के ओहियो राज्य ने विदेश से सरकारी कामकाज कराने पर रोक लगा दी। अमेरिकी प्रशासन ने मैक्सिको से लगी अपनी सीमा पर सुरक्षा व्यवस्था बढ़ाने संबंधी एक नए कानून के तहत भारत जैसे देशों के आइटी और अन्य पेशेवर कर्मचारियों के लिए वीजा शुल्क बढ़ा दिया गया। वर्ष 2010 के दौरान विकसित देशों के मुकाबले विकासशील देशों का व्यापार प्रदर्शन अच्छा रहने की उम्मीद जताई जा रही है। इस दौरान चीन द्वारा 36.3 फीसदी की व्यापार वृद्धि के साथ सबसे च्च्छा प्रदर्शन करने की उम्मीद है। वर्ष 2010 के पहले 11 महीनों में एशिया की सबसे तेजी से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था चीन का व्यापार 2,680 अरब डॉलर रहा। अमेरिका, भारत और अन्य भागीदार देशों के साथ व्यापार संतुलन चीन के पक्ष में झुका होने से अर्थशास्ति्रयों, केंद्रीय बैंकरों और नीति निर्माताओं के माथे पर चिंता की लकीरें गहराती रहीं। भारत ने अपनी व्यापार चिंताएं चीन के समक्ष उठाई और व्यापार असंतुलन दूर करने पर जोर दिया। चीन के साथ मुक्त व्यापार समझौता करने के मामले में भी भारत ने इंकार कर दिया। भारत सरकार ने वर्ष के दौरान दक्षिण कोरिया सहित दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के संगठन आसियान के साथ मुक्त व्यापार समझौते पर कदम आगे बढ़ाया। इसके अलावा ब्रिटेन, यूरोपीय यूनियन सहित कई देशों के साथ मुक्त व्यापार समझौते पर बातचीत चल रही है। मलेशिया और जापान के साथ व्यापार समझौतों को अंतिम रूप दिया जा चुका है। वर्ष 2001 में शुरू हुई विश्व व्यापार संगठन की दोहा वार्ताओं में वर्ष के दौरान कोई खास प्रगति नहीं हुई।

पोस्को-आर्सेलर परियोजनाओं में विलंब राष्ट्रीय नुकसान

अक्सर शांत रहने वाले इस्पात मंत्री वीरभद्र सिंह ने भी अब परियोजनाओं में देरी के लिए परोक्ष रूप से पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश पर निशाना साधा है। बहुराष्ट्रीय इस्पात कंपनी पोस्को और आर्सेलर-मित्तल की 1.5 लाख करोड़ रुपये की परियोजनाओं में देरी पर अफसोस जताते हुए उन्होंने इसे राष्ट्रीय नुकसान बताया है। उनका मानना है कि इतनी बड़ी परियोजनाओं को तरजीह देने की बजाय इन्हें आम परियोजनाओं की तरह देखा गया। इससे पहले खनन क्षेत्र में गो व नो गो की परिभाषा व्यावहारिक नहीं होने के चलते रमेश कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल और योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह आहलूवालिया के निशाने पर रहे हैं। वीरभद्र सिंह ने कहा कि मैं इसे लेकर व्यक्तिगत तौर पर दुखी हूं। मुझे लगता है कि यह राष्ट्रीय नुकसान है। उन्होंने कहा कि हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जिन प्रक्रियाओं को लागू किया जाना है, उसे तेजी से लागू किया जाए। परियोजनाओं में देरी से हमारी उत्पादन क्षमता प्रभावित हुई है और हमें 3.6 करोड़ टन का नुकसान हुआ है। पोस्को और आर्सेलर मित्तल द्वारा स्टील संयंत्र लगाए जाने का मामला पिछले पांच साल से लटका है। पोस्को की उड़ीसा परियोजना को पर्यावरण मंत्रालय की मंजूरी का इंतजार है। इसके अलावा दोनों परियोजनाओं को जमीन अधिग्रहण और विरोध संबंधी कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि पोस्को और आर्सेलर मित्तल ने अपनी परियोजनाओं की स्थापना को लेकर गंभीरता दिखाई है लेकिन प्रधानमंत्री कार्यालय समेतच्उच्च स्तर पर चिंता जताए जाने के बावजूद परियोजनाएं लटकी हुई हैं। हम चाहते हैं कि कानून के तहत सभी बाधाएं दूर हो। पोस्को परियोजना उड़ीसा सरकार के लिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके जरिए 54,000 करोड़ रुपये का प्रत्यक्ष पूंजी निवेश आएगा। दक्षिण कोरियाई कंपनी पोस्को ने उड़ीसा सरकार के साथ 1.2 करोड़ टन सालाना क्षमता का कारखाना लगाने के लिए 2005 में समझौता किया था। कंपनी के निवेश को अबतक का सबसे बड़ा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश माना जा रहा है। इसी तरह दुनिया की दिग्गज स्टील कंपनी आर्सेलर मित्तल ने झारखंड सरकार के साथ 2005 में समझौता किया था। इसके साल बाद कंपनी ने उड़ीसा सरकार के साथ समझौता किया। कंपनी लगभग एक लाख करोड़ रुपये के निवेश से 1.2-1.2 करोड़ टन सालाना क्षमता का कारखाना दोनों राज्यों में लगाना चाहती है। मगर उसे भी कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।