Thursday, March 29, 2012

अपनी मुद्रा में एक दूसरे को कर्ज देंगे ब्रिक्स


वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं में उभरती ताकत माने जाने वाले दुनिया के पांच देश ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका स्थानीय मुद्राओं में एक दूसरे को कर्ज उपलब्ध कराने के समझौते के काफी करीब पहुंच गए हैं। सभी देशों के बीच आपसी व्यापार को 500 अरब डॉलर तक पहुंचाने पर भी सहमति बन गई है। इसके अलावा एक संयुक्त विकास बैंक की स्थापना को भी ये देश राजी हो गए हैं। सूत्रों के मुताबिक इस आशय के समझौतों पर गुरुवार को शिखर बैठक के बाद हस्ताक्षर होने की संभावना है। पांचों ब्रिक्स देशों के राष्ट्राध्यक्षों का सम्मेलन गुरुवार को दिल्ली में शुरू हो रहा है। सम्मेलन में आपसी व्यापार को बढ़ाने के साथ साथ क्षेत्रीय हालात पर भी चर्चा होगी। दुनिया की 40 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करने वाले पांचों देशों के नेता चौथी शिखर वार्ता के लिए यहां पहुंच रहे हैं। इस बार शिखर वार्ता की थीम वैश्विक स्थिरता, सुरक्षा और समृद्धि के लिए ब्रिक्स की साझेदारी तय की गई है। इससे पहले बुधवार को ब्रिक्स देशों के वाणिज्य मंत्रियों ने बैठक कर आपसी व्यापार को बढ़ाने वाले समझौते की रूपरेखा तैयार की। बैठक के बाद पांचों मंत्रियों ने संवाददाता सम्मेलन कर आपसी व्यापार की दिशा में उठाये जाने वाले कदमों की जानकारी दी। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री आनंद शर्मा ने बताया कि ब्रिक्स देशों के बीच मौजूदा व्यापार 230 अरब डॉलर का है। यह 28 प्रतिशत सालाना की दर से बढ़ रहा है। सभी देशों ने इसे 500 अरब डॉलर तक पहुंचाने का लक्ष्य तय किया है। चीन के राष्ट्रपति हू जिंताओ बुधवार दोपहर बाद यहां पहुंचे। उनके साथ आए उच्च स्तरीय शिष्टमंडल में विदेश मंत्री यांग जिएची, स्टेट काउंसिलर दाई बिंगुओ, वरिष्ठ मंत्री और उद्योगपति शामिल हैं। इसके अलावा बुधवार सुबह पहुंचे रूसी राष्ट्रपति दमित्री मेदवेदेव के साथ भी वरिष्ठ अधिकारियों का बड़ा समूह है। ब्राजील की राष्ट्रपति डिलमा रोसेफ मंगलवार को ही दिल्ली पहुंच गई थीं। जबकि दक्षिण अफ्रीकी राष्ट्रपति जैकब जुमा अपनी पत्नी नोंपुमेलेते तुली एवं आधिकारिक शिष्टमंडल के साथ बुधवार सुबह पहुंचे। गुरुवार को होने वाली शिखर वार्ता से पहले सभी नेताओं के सम्मान में भारत की राष्ट्रपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल ने बुधवार शाम भोज का आयोजन किया। गुरुवार को होने वाली शिखर वार्ता के बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह चीनी राष्ट्रपति समेत अन्य नेताओं से द्विपक्षीय बातचीत करेंगे। इसमें व्यापार घाटे को कम करना और नए विश्वास बहाली कदम तेज करने जैसे अनेक विषयों को लिया जाएगा। शिखर वार्ता में भारत द्विपक्षीय व्यापार में भारी असंतुलन के मुद्दे को उठा सकता है जो करीब 70 अरब डॉलर बढ़ गया है। सिंह रूस के राष्ट्रपति के साथ भी द्विपक्षीय वार्ता करेंगे जिस दौरान असैन्य परमाणु सहयोग एवं अन्य रणनीतिक मुद्दों को लिया जा सकता है। शिखर सम्मेलन के दौरान ब्रिक्स की अध्यक्षता भारत को सौंपी जाएगी।

Tuesday, March 20, 2012

महिलाओं और बुजुर्गो को चुकाना होगा अधिक टैक्स


बजट में व्यक्तिगत आयकर छूट सीमा 1.80 लाख से बढ़ाकर दो लाख रुपये कर दी गई है। इसके बावजूद आयकर निर्धारण का गुणाभाग कुछ ऐसा है कि आठ लाख रुपये सालाना कमाई वाले बुजुर्गो और महिलाओं को अगले वित्त वर्ष में अधिक कर चुकाना पड़ सकता है। वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने बजट में व्यक्तिगत आयकर छूट सीमा 20,000 रुपये बढ़ा दी। साथ ही बड़ी सफाई दिखाते हुए इंफ्रास्ट्रक्चर बांड में 20,000 रुपये के निवेश पर मिलने वाली छूट समाप्त कर दी। वैसे, उन्होंने बचत खाते में 10,000 रुपये की ब्याज आय पर छूट की घोषणा की है। आयकर विशेषज्ञ सत्येंद्र जैन ने बताया कि आयकर सीमा बढ़ने से अन्य सभी वर्गो को तो लाभ हुआ लेकिन आठ लाख रुपये सालाना के आय वर्ग में महिलाओं व बुजुगरें को नुकसान हुआ है। ताजा आकलन के अनुसार आठ लाख रुपये सालाना आयवर्ग में महिलाओं को पहले 69,010 रुपये आयकर देना होता था। वहीं अगले वित्त वर्ष में उन्हें 70,040 रुपये आयकर देना होगा। इसी प्रकार 60 से 80 वर्ष के बुजुर्गो को मौजूदा वित्त वर्ष में 62,830 रुपये का आयकर देना होगा। वहीं अब उन्हें 64,890 रुपये आयकर देना होगा। यही स्थिति 80 वर्ष से अधिक उम्र के वरिष्ठ नागरिकों के मामले में होगी। आठ लाख की आय श्रेणी में वरिष्ठ नागरिकों को भी 2060 रुपये अधिक कर देना होगा। विशेषज्ञो के अनुसार आपकी सालाना आय यदि तीन लाख रुपये है और करलाभ वाली सभी योजनाओं में आपने निवेश किया है तो वित्त वर्ष 2011-12 में टैक्स देनदारी शून्य होगी। अगले वित्त वर्ष 2012-13 में इंफ्रा बांड का लाभ तो नहीं मिलेगा, लेकिन छूट सीमा दो लाख होने से कर देनदारी फिर शून्य होगी। पांच लाख रुपये सालाना आय वर्ग में 60 वर्ष से कम आयुवर्ग में करदाताओं को अगले वित्त वर्ष में 19,570 रुपये का आयकर देना होगा। महिलाओं के मामले में कर देनदारी इस वर्ष और अगले वित्त वर्ष में 19,570 रुपये पर यथावत होगी। साठ से 80 वर्ष के बुजुर्गो की श्रेणी में पांच लाख वाले आयवर्ग में अगले वित्त वर्ष में 1,030 रुपये अधिक 14,420 रुपये का कर चुकाना होगा। अस्सी वर्ष से अधिक उम्र के वरिष्ठ नागरिकों को कोई कर नहीं देना होगा, क्योंकि उनकी पांच लाख रुपये तक की आय पिछले बजट में कर मुक्त कर दी गई थी।

बजट के असर से पहले ही महंगाई बढ़ी


आम बजट के प्रस्तावों का महंगाई पर असर तो आने में अभी देर है, लेकिन प्रोटीन वाले खाद्य उत्पादों की वजह से इसमें अभी से तेजी का रुख बन गया है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, खुदरा कीमतों पर आधारित महंगाई की दर फरवरी, 2012 के दौरान 8.83 फीसदी रही है। इसके पिछले महीने यह दर 7.65 फीसदी थी। देश भर में खुदरा कीमतों पर आधारित महंगाई की दर जनवरी, 2012 से ही प्रकाशित होनी शुरू हुई है। माना जाता है कि नीतिगत मामलों में खुदरा की महंगाई दर को भी मानक माना जाएगा। यह भी कहा जाता है कि रिजर्व बैंक (आरबीआइ) ने जनवरी की खुदरा महंगाई दर को देख कर ही ब्याज दरों में कटौती नहीं की थी। बहरहाल, इस दर के नौ फीसदी के करीब पहुंचने से साफ है कि आने वाले दिनों में भी ब्याज दरों को कम करना आसान नहीं होगा। जानकारों का कहना है कि आम बजट में उत्पाद शुल्क व सीमा शुल्क में वृद्धि का जो फैसला है कि उसका महंगाई दर पर असर मई, 2012 में आने वाले आंकड़ों पर ही दिखाई देगा। वैसे वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने सोमवार को इस बात को दोहराया कि दो महीने में महंगाई की दर स्थिर हो जाएगी। वैसे, महंगाई दर के चार से 4.5 फीसदी के स्तर पर आने में अभी काफी समय लगेगा। अगले वर्ष भी महंगाई की औसत दर 6 से सात फीसदी रह सकती है। ब्याज दरों में कब कमी होगी, इस बारे में उन्होंने कहा कि जब आरबीआइ के गवर्नर ऐसा करना ठीक समझेंगे, वह कदम उठाएंगे। सोमवार को रिजर्व बैंक के केंद्रीय बोर्ड के साथ बैठक के बाद वित्त मंत्री संवाददाताओं से बात कर रहे थे। माना जा रहा है कि इस बैठक में ब्याज दरों के मुद्दे पर काफी विस्तार से बात हुई है। उद्योग जगत की नजरें भी अप्रैल, 2012 में पेश होने वाली वार्षिक मौद्रिक नीति पर हैं। आरबीआइ क्या कदम उठाएगा, यह बहुत हद तक प्रोटीन उत्पादों की कीमतों पर निर्भर करेगा। फरवरी, 2012 के आंकड़े बताते हैं कि अंडे, मछली व मांस की कीमतों में 10.62 फीसदी की वृद्धि हुई है। वहीं, दूध व अन्य संबंधित उत्पादों की खुदरा कीमतें 15.76 फीसदी बढ़ी हैं। खाद्य तेल के वर्ग में भी खुदरा दामों में 12.76 फीसदी की वृद्धि हुई है।

सही दिशा में छोटा कदम


इस बजट का मूल दर्शन समझने की जरूरत है। वित्त मंत्री ने सेवा शुल्क एवं एक्साइज ड्यूटी में वृद्धि की है। इससे एक ओर तत्काल महंगाई बढ़ेगी, क्योंकि हर एक वस्तु के दाम बढ़ेंगे। दूसरी ओर सरकार की आय भी बढ़ेगी और सरकार का वित्तीय घाटा कम होगा। वित्तीय घाटा कम होने से सरकार को रिजर्व बैंक से कम ऋण लेना होगा। रिजर्व बैंक को कम नोट छापने होंगे। नोट कम छापने से आगामी समय में महंगाई थमेगी। यानी सरकार की रणनीति है कि तत्काल महंगाई को बढ़ने दो, लेकिन दीर्घकाल में इसे नियंत्रित कर लो। ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार 2014 के चुनाव की तैयारी कर रही है। सोच है कि अगले वर्ष तक लोग टैक्स में इस वृद्धि को भूल जाएंगे। 2013 का बजट चुनावी होगा। उस समय सरकार की आय ठीकठाक होगी और सरकार मनरेगा जैसे लोक-लुभावन कार्यक्रम लाकर पुन: 2014 के चुनाव को जीत सकती है। यही स्थिति विकास दर की है। टैक्स बढ़ाए जाने से तत्काल कंपनियों पर दबाव बढ़ेगा। माल महंगा होगा और उन्हें बिक्री करने में कठिनाई होगी, परंतु यह अल्पकाल की बात है। वित्तीय घाटे पर नियंत्रण होने से देश की मुद्रा स्थिर हो सकती है। ऐसे में विदेशी निवेश के आने की संभावना बनती है। यदि विदेशी निवेश आता है तो आर्थिक विकास पुन: चल पड़ेगा। तत्काल विकास दर में जो गिरावट आएगी वह दीर्घकाल में लाभकारी हो जाएगी। आर्थिक विकास में वृद्धि की संभावना दो और कारणों से बनती है। बजट में बुनियादी ढांचे में लगी भारतीय कंपनियों द्वारा विदेशी निवेशकों को बांड बेचना आसान बना दिया गया है। इसके अलावा बुनियादी ढंाचे में निवेश के लिए टैक्स फ्री बांड की सीमा 30,000 करोड़ से बढ़ाकर 60,000 करोड़ कर दी गई है। इन बांडों के माध्यम से हाईवे, बंदरगाह एवं विद्युतीकरण के लिए और अधिक मात्रा में पूंजी उपलब्ध हो जाएगी। इससे भी विकास दर पर सकारात्मक प्रभाव पड़ने की संभावना है। अत: सरकार की रणनीति है कि तत्काल महंगाई में वृद्धि और विकास दर में कटौती बर्दाश्त करके अगले वर्ष के लोकप्रिय बजट के लिए गुंजाइश बना ली जाए। राजनीतिक दृष्टि से यह ठीक ही दिखता है, परंतु खतरा है कि टैक्स में वृद्धि के बावजूद वित्तीय घाटे का नियंत्रण में आना जरूरी नहीं है। सब्सिडी का भार बढ़ता जा रहा है। सरकारी खर्चो में कटौती के संकेत नहीं हैं। वित्तीय घाटे के नियंत्रण में न आने पर सरकार को दोहरा घाटा लग सकता है। वर्तमान में महंगाई बढ़ने के साथ-साथ आने वाले समय में भी महंगाई बढ़ती जाएगी। वित्तीय घाटे के नियंत्रण में आने के बावजूद विदेशी निवेश आना जरूरी नहीं है और विकास दर न्यून बनी रह सकती है। अत: कुल खेल वित्तीय घाटे के नियंत्रित होने एवं उसका विदेशी निवेश पर सार्थक प्रभाव पड़ने का है। सरकार के वित्तीय स्वास्थ्य पर सबसे बड़ी मार सब्सिडी की है। खाद्य पदार्थ, फर्टिलाइजर, केरोसिन एवं एलपीजी पर सरकार को भारी मात्रा में सब्सिडी देनी पड़ रही है। वर्तमान में सब्सिडी का लाभ लाभार्थी को कम और कंपनी तथा सरकारी नौकरशाही को अधिक मिल रहा है। फर्टिलाइजर सब्सिडी का लाभ निर्माता कंपनियों को होता है। इस समस्या के निदान के लिए वित्त मंत्री ने सब्सिडी को आईटी के माध्यम से चुस्त करने की योजना बनाई है। झारखंड में राशन कार्ड के सत्यापन के लिए आधार योजना का उपयोग किया जा रहा है। एलपीजी सब्सिडी को सीधे लाभार्थी के खाते में जमा करने का प्रयास मैसूर में किया जा रहा है। अल्वर जिले में केरोसिन सब्सिडी को सीधे लाभार्थी के खाते में जमा कराने का प्रयास किया जा रहा है। इन प्रयोगों का विस्तार 50 जिलों में इस वर्ष करने की योजना है। सब्सिडी को सीधे लाभार्थी तक पहुंचाने से सरकार पर वित्तीय भार कम पड़ेगा और साथ ही रकम के लाभार्थी के पास पहुंचने से सत्तारूढ़ पार्टी को राजनीतिक लाभ भी हासिल होगा। इसी क्रम में फर्टिलाइजर पर दी जा रही सब्सिडी पर निगाह रखने का प्लान बनाया जा रहा है। फर्टिलाइजर का मूवमेंट निर्माता से रिटेल विक्रेता तक कंप्यूटर द्वारा देखा जाएगा। आगे चलकर इसे किसान तक पहुंचाने पर भी निगाह रखी जा सकती है। इस कार्यक्रम से भी सरकार पर सब्सिडी का भार कम होगा और किसान को लाभ होगा। ये कदम सही दिशा में हैं। फिर भी मेरा मानना है कि सब्सिडी के मुद्दे पर सरकार द्वारा आक्रामक रुख अपनाया जा सकता था। सभी तरह की सब्सिडी को लाभार्थी तक पहुंचाने की कवायद में सरकार लगी है। इस पूरे झंझट को एक झटके में समाप्त करके पूरी रकम को नागरिकों के बैंक खाते में जमा करा देना चाहिए। किसान को फर्टिलाइजर का जो ऊंचा दाम देना होगा उसकी भरपाई के लिए खाद्यान्न के दाम में वृद्धि सुनिश्चित करनी चाहिए। सब्सिडी हटाने से आम आदमी पर जो भार पड़ेगा उससे ज्यादा रकम उसे सीधे नगद वितरण से मिल जाएगी। वास्तव में यह नगद वितरण स्वास्थ्य एवं शिक्षा पर दी जा रही सब्सिडी पर भी लागू किया जा सकता है। मेरी दृष्टि में यह बजट सही दिशा में छोटा कदम है। सेवा कर एवं एक्साइज ड्यूटी को बढ़ाना उचित ही है। बजट की मुख्य कमी है कि सरकार के अनुत्पादक खर्च विशेषकर कर्मियों की संख्या, वेतन एवं पेंशन पर नियंत्रण के बारे में नहीं सोचा गया है। इस बजट में संकट है कि वित्तीय घाटे का नियंत्रण में आना जरूरी नहीं है, वित्तीय घाटे के नियंत्रण में आने के बावजूद निवेश में वृद्धि जरूरी नहीं है और निजी निवेश में वृद्धि का लाभ आम आदमी तक पहुंचना जरूरी नहीं है। इन कड़ी में से एक भी टूट गई तो यह बजट सत्तारूढ़ पार्टी के लिए हानिकारक सिद्ध होगा और जनता को महंगाई का खामियाजा भुगतना होगा। (लेखक आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ हैं) 12श्चश्रल्ल2@Aंॠ1ंल्ल.Yश्रे

Wednesday, March 14, 2012

हाथ आए कालाधन तो बात बने


कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने हाल में पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों परिणाम के मद्देनजर कांग्रेस की असफलता के कारणों की पड़ताल करते हुए स्वीकार किया था कि इसकी एक वजह महंगाई भी हो सकती है। यानी महंगाई ने कांग्रेस की राह में रोड़े अटकाये और त्रस्त जनता ने इसके लिए उसे जिम्मेदार मानते हुए वोट नहीं दिया। सचाई यह है कि आज महंगाई के कारण आम ही नहीं, खास आदमी तक का बजट पूरी तरह गड़बड़ा गया है। यूं मोटे तौर पर भारत की अर्थव्यवस्था को तीन हिस्सों में बांटा जा सकता है। यहां एक हिस्सा तो पूरी तरह अमेरिकापरस्त हो चुका है। यानी हमारी करीब पांच करोड़ के आसपास की जनसंख्या आय और संपत्ति के लिहाज से अमेरिकियों जैसी जीवन-शैली जी रही है। करीब बीस-पचीस करोड़ के आसपास की जनसंख्या मध्यवर्गीय है और स्तर के लिहाज से मलयेशिया जैसे मंझोले देशों के लोगों की तरह जीवन यापन कर रही है। बाकी की करीब अस्सी से नब्बे करोड़ की जनसंख्या युगांडा या बांग्लादेश जैसे गरीब मुल्कों की गरीब स्थितियों में गुजर-बसर कर रही है। भारत महादेश के अंदर अति संपन्न, संपन्न और विपन्न जीवन जीने वाली जनता 2012 के बजट के मामले में अपनी-अपनी तरह से सरकार से उम्मीदे लगाये बैठी है। बड़े उद्योगपति इस बजट में सरकार से तमाम तरह के पैकेज और छूट की मांग कर रहे है तो मध्यमवर्गीय लोग जो महंगाई के कारण परेशान है उसी का रोना रो रहे है और उससे निजात पाने के सपने देख रहे है। गरीब हमेशा की तरह यही विलाप कर रहा है कि उसके लिए जिंदगी बसर करना मुश्किल होता जा रहा है। आज के समय में गरीब की जिंदगी बहुत मुश्किल होती जा रही है, इस बात का अंदाज हाल के चुनावों से भी मिलता है। केंद्र सरकार के प्रति आम जन इसे लेकर गहरे गुस्से में है। प्रधानमंत्री वित्तमंत्री बहुत बार बयान दे चुके है कि महंगाई बस कम होने ही वाली है पर महंगाई कभी कम नहीं हुई। फिर इधर तो सरकार के पास शोकेस में दिखाने जैसा कुछ है ही नहीं। एक वक्त टेलीकाम, एवियेशन जैसे उद्योगों को नयी आर्थिक नीति की सफलता के परिणाम के तौर पर चिह्नित किया जाता था पर आज के समय में यह भी सीन नहीं है। टेलीकाम उद्योग जहां बड़े स्तर के राजनीतिक घष्टाचार का बड़ा नमूना बन गया है वहीं एवियेशन कुप्रबंध का जीता-जागता उदाहरण माना जा रहा है। ये दोनों ही उद्योग बजट से बहुत उम्मीदें लगा रहे है। सॉफ्टवेयर उद्योग की हालत पहले से बेहतर है पर अमेरिका से जो खबरें आ रही है, उन्हें देखते हुए यह उम्मीद करना बेमानी है कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था जल्दी ही अपनी पुरानी स्थिति में आ पाएगी और साफ्टवेयर की हालत सुधर जाएगी। बहरहाल, बजट से इस बार बहुत आस लगाये है उद्योग जगत और सॉफ्टवेयर क्षेत्र को उम्मीद है कि बजट उनके लिए कुछ ठोस करेगा। यूं देखें तो उम्मीद आम पब्लिक को भी बहुत है कि बजट कुछ सस्ताई लेकर आये। यद्यपि तेल, डीजल की सस्ताई बजट के बूते से बाहर की बात है, पर रोटी, कपड़ा और मोबाइल की सस्ताई उसके बूते में दिखती है। तमाम आइटमों पर यदि एक्साइज शुल्क कम कर दिया जाये तो पक्के तौर पर महंगाई कुछ कम हो सकती है। पर इस मुद्दे पर वित्त मंत्री सोच भी पाएंगे, अभी यह मसला साफ नहीं है। वित्तमंत्री बढ़ते घाटे से परेशान है। उन्हें अपनी आय बढ़ानी है। सरकार की आय बढ़ानी हो, तो कर घटाना विकल्प नहीं होता, कर बढ़ाना विकल्प होता है। ऐसे में नयी-नयी सेवाएं सेवा कर के दायरे में आने की आशंका है। कुल मिलाकर जनता की आशंका यही है कि महंगाई बढ़ेगी। एक आशंका यह भी है कि कहीं बजट में ही पेट्रोल डीजल के भाव भी न बढ़ा दिये जाएं क्योंकि पांच विधानसभाओं के चुनाव संपन्न होने के बाद अब सरकार के सामने राजनीतिक मजबूरी जैसा कुछ नहीं है। पर भूलना नहीं चाहिए कि 2014 के चुनाव बहुत ज्यादा दूर नहीं है। महंगाई जिस तरह से बढ़ी है और लोगों में इसे लेकर जिस तरह का गुस्सा है, उसके खिलाफ, हो सकता है 2014 का चुनाव सिर्फ महंगाई और घष्टाचार के इश्यू पर लड़ा जाये। वित्तमंत्री के सामने दिक्कत यह है कि आय के साधन लगातार बढ़ाये जायें यानी करों को बढाया जाये। रेल किराया और दूसरे कर बढ़ाये जायें पर ऐसा करने के लिए जरूरी राजनीतिक स्थितियां मौजूद नहीं हैं। मसला यह भी है कि नयी स्थितियों में ममता बनर्जी क्या आय के नये साधन आसानी से ढूंढने देंगी। हाल के विधानसभा चुनावों के बाद ममता बनर्जी का रु ख ज्यादा आक्रामक हो गया है। ममता बनर्जी बजट के मौके का इस्तेमाल केंद्र सरकार से समर्थन वापसी के लिए भी कर सकती है। ममता बनर्जी फैक्टर करों को बढाने के मामले में बहुत मुश्किलें पेश करेगा, यह साफ दिखता है। उधर हाल में सरकारी कंपनियों के शेयरों को बेचकर कमाई करने का तजुर्बा भी बहुत कारगर नहीं रहा। यानी कुल मिलाकर स्थितियों से साफ यही होता है कि सरकार की कमाई की संभावनाएं मुश्किल हो रही है और खर्च बराबर बढ़ने का सीन बन रहा है। महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना राजनीतिक तौर पर लाभांश देती है या नहीं, अब यह सवाल भी उठ रहा है। इस पर रकम कम की जा सकती है या नहीं, इस सवाल से जूझना पड़ेगा वित्तमंत्री को। सफल उद्योगों पर कर बढ़ाने का स्कोप ज्यादा नहीं है। हालांकि दो दिन पहले औद्योगिक उत्पादन के जो आंकड़े आये है वह सकारात्मक है। जनवरी, 2012 में औद्योगिक उत्पादन 6.8 प्रतिशत की दर से बढ़ा है। पिछले सात महीनों में यह बढ़ोत्तरी सर्वाधिक है। पर इसके साथ ही उद्योग जगत मांग कर रहा है कि कर घटाये जाएं। कुल मिलाकर साफ यह होता है कि एक परंपरागत बजट बनाकर अर्थव्यवस्था के सारे तबकों को खुश करना लगातार मुश्किल हो रहा है। वित्त मंत्री को अर्थव्यवस्था संभाले रखने के लिए किसी बड़े आइडिया की जरूरत है। हाल में घष्टाचार एक बड़े मुद्दे के तौर पर उभरा है। हाल के तमाम कांडों ने मौजूदा सरकार की छवि को बहुत प्रभावित किया है। काले धन को बाहर निकालने का कोई उपाय अगर बजट सुझा दे, या काले धन को स्विस बैंकों से लाकर भारत की मुख्यधारा में ला पाये, तो यह इस सरकार के लिए बहुत बड़ी राहत होगी। हाल में अर्थशास्त्री देवकर ने अपने अध्ययन में साफ किया है कि 1948 से 2008 तक भारत से गैर कानूनी सौदों के जरिये करीब 213 अरब डॉलर बाहर गये है। इस रकम की वैल्यू अब करीब 462 अरब डॉलर है। 2008 में यह रकम भारतीय अर्थव्यवस्था की सकल घरेलू उत्पाद की करीब सत्रह प्रतिशत थी। यह बहुत बड़ी रकम है। वित्तमंत्री इस रकम को वापस लाने का इंतजाम अगर कर दें, तो इसके राजनीतिक लाभांश भी उनको मिल सकते है। अभी वर्तमान सरकार दो सबसे बड़ी समस्याओं से जूझ रही है-एक, महंगाई और दूसरा घष्टाचार। महंगाई के मामले में बजट एक हद तक रास्ता दिखा सकता है पर काले धन की वापसी पर बजट बहुत कुछ कर सकता है। यह बड़ा राजनीतिक आइडिया है, आर्थिक आइडिया है। इसे कार्यरूप में कैसे ढाला जाये, यह मौजूदा सरकार को देखना होगा। कुल मिलाकर इस बजट में सामान्य आइडिया से काम नहीं चलेगा। इसके लिए कुछ बड़े आइडिया चाहिए। पर मसला यह है कि राजनीतिक अस्तित्व के संकट से जूझती सरकार कहीं से बड़े आइडिया लाने की स्थिति में है भी या नहीं!

जरूरत और जेब के बीच झूलता रक्षा क्षेत्र का बजट


आर्थिक मंदी के अपशकुनों ने रक्षा सेनाओं की पेशानी पर भी परेशानी की लकीरें बढ़ा दी हैं। तेजी से बढ़ती आधुनिक अस्त्र-शस्त्रों व रक्षा इंतजामों की जरूरत और फैसलों की सुस्त चाल के बीच आधुनिकीकरण की रफ्तार को साधना चुनौती बनता जा रहा है। ऐसे में जब पड़ोसी चीन का सैनिक खर्च सौ अरब डॉलर के पार पहुंचा गया है तो खजाने की खस्ता हालत के बीच भारत के लिए अपने रक्षा बजट को 40 अरब डॉलर (दो लाख करोड़ रुपये) तक पहुंचाना भी परीक्षा है। रक्षा जानकारों के मुताबिक वित्त वर्ष 2012-13 के बजट में 10 फीसदी से ज्यादा की बढ़ोतरी मुश्किल नजर आ रही है। अगले सप्ताह 16 मार्च को पेश होने वाले आम बजट में सेनाओं की नजर रक्षा बजट के पूंजी मद में मिलने वाली राशि पर होगी। इसमें होने वाली बढ़ोतरी ही सेना के रक्षा सौदों की नियति तय करेगी। रक्षा थिंक टैंक आइडीएसए के विशेषज्ञ लक्ष्मण बेहुरा कहते हैं कि भारतीय सेनाओं के आधुनिकीकरण की प्रक्रिया ऐसे नाजुक मोड़ पर है जहां उसे मजबूत आर्थिक सहायता की जरूरत है। ऐसे में अपेक्षा है कि रक्षा बजट में 15 फीसदी का इजाफा किया जाए, लेकिन अर्थव्यवस्था की सेहत फिलहाल इस हौंसले के साथ खड़ी नहीं दिखाई दे रही। संकेत हैं कि रक्षा बजट में नई खरीद जरूरतों को पूरा करने के लिए 35 फीसदी से अधिक धनराशि मिलना कठिन है। बजट पूर्व तैयारियों में इस बाबत सरकार की उलझनों के संकेत नजर आने लगे थे। सूत्रों के मुताबिक सेनाओं को अपनी जरूरतों की प्राथमिकताएं बनाने को कहा गया है, ताकि सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता को तवज्जो मिल सके। वैसे, किसी भी फौज के लिए यह तय करना मुश्किल है कि वह अपनी तोपों के लिए गोला-बारूद की जरूरत को तरजीह दे या नई तोप की दरकार को प्राथमिकता बताए। वहीं रक्षा बजट के इस्तेमाल के रिकॉर्ड में सुधार की कोशिशों के बावजूद निर्णय प्रक्रिया की रफ्तार रक्षा मंत्रालय पर कई सवाल खड़े करती है। इसका असर वित्त मंत्री की बजट-बांट में नजर आ सकता है। रक्षा विशेषज्ञ सी उदय भास्कर कहते हैं कि करीब चार साल पहले भारत ने रक्षा बजट के लिए 1,05,600 करोड़ रुपये (26 अरब डॉलर) का प्रावधान किया था। इस दौरान चीन का रक्षा बजट 57 अरब डॉलर था। नए वित्त वर्ष के लिए चीन अपने रक्षा बजट को 106 अरब डॉलर तक पहुंचा चुका है। जबकि भारतीय रक्षा बजट के लिए दो लाख करोड़ रुपये (40 अरब डॉलर) का आंकड़ा पार करना मुश्किल नजर आ रहा है। वर्ष 2011-12 में देश का रक्षा बजट 1,64,415 करोड़ रुपये था। यह 2010-11 के 1,47,344 करोड़ रुपये के रक्षा बजट के मुकाबले लगभग 17 हजार करोड़ (करीब 10 प्रतिशत) ज्यादा था। इसमें 69 हजार करोड़ रुपये नए हथियार, रक्षा उपकरण और साजोसामान खरीदने के लिए दिए गए थे।

ग्लोबल संकट से घबराया ड्रैगन


वर्ष 2008 और 2009 की भयानक मंदी में भी दुनिया को विकास का दम दिखाने वाला ड्रैगन अब पस्त पड़ने लगा है। ताजा वैश्विक आर्थिक संकट के चलते यूरोप और अमेरिका में मांग घटने से दुनिया की इस दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था की घबराहट बढ़ गई है। निर्यात में लगातार कमी को देखते हुए चीन ने वर्ष 2012 के लिए सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर अनुमान को घटाकर 7.5 फीसदी कर दिया है। अर्थव्यवस्था की विकास दर का यह अनुमान पिछले आठ साल में सबसे कम है। इन आठ सालों में ड्रैगन ने हमेशा आठ फीसदी विकास दर का लक्ष्य रखा था मगर हर साल वृद्धि दर लक्ष्य से कहीं ज्यादा रही थी। प्रधानमंत्री वेन जिआबाओ द्वारा चीन की संसद नेशनल पीपुल्स कांग्रेस में सोमवार को पेश सरकार के कामकाज की सलाना रिपोर्ट में आर्थिक वृद्धि के अनुमान को कम किया गया है। दरअसल, चीन की अर्थव्यवस्था निर्यात आधारित है। ग्लोबल स्तर पर नरमी के कारण देश के निर्यात पर असर पड़ रहा है। रिपोर्ट पेश करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि आर्थिक वृद्धि को ज्यादा टिकाऊ और दक्ष बनाने की जरूरत है ताकि लंबे समय तक उच्च स्तरीय और उच्च गुणवत्ता का विकास हासिल किया जा सके। इस दौरान ढांचागत समस्याओं और असंतुलित विकास में सुधार के भी कदम उठाए जाएंगे। इस साल राजस्व घाटे में भी बढ़ोतरी का वेन ने अनुमान जताया है। वर्ष 2011 के 1.1 फीसदी के मुकाबले वर्ष 2012 में राजस्व घाटा जीडीपी का 1.5 फीसदी रहने का अनुमान है। वेन इस साल के अंत में सेवानिवृत्त हो रहे हैं। जबकि राष्ट्रपति हू जिंताओ अगले साल सेवानिवृत्त होंगे। वेन ने कहा कि सरकार विकास दर को रफ्तार देने के लिए नीतियों में सुधार करेगी ताकि घरेलू उपभोक्ता मांग को बढ़ाया जा सके। इसके लिए निम्न और मध्यम वर्ग की आमदनी बढ़ाने की कोशिश की जाएगी। अभी तक चीन का ध्यान निर्यात बढ़ाने पर ही रहा है। अब वह घरेलू उद्योग की समस्याओं को सुलझाने और ढांचागत विकास में तेजी लाने की योजना पर काम कर रहा है ताकि किसानों और मजदूरों की आमदनी में बढ़ोतरी हो। इससे पहले चीन ने 12वीं पंचवर्षीय योजना (2011-15) के दौरान आर्थिक वृद्धि सात फीसदी रहने का अनुमान जताया था। चीन की विकास दर 2011 में 9.2 फीसदी की दर से बढ़कर 7,490 अरब डॉलर रही है। जबकि 2010 में आर्थिक वृद्धि दर 10.3 फीसदी रही थी। पिछले वर्ष की चौथी तिमाही में वृद्धि दर 8.9 फीसदी रही जो सालाना आधार पर पिछली 10 तिमाही में सबसे कम है।