Tuesday, January 24, 2012

कोयले पर अटका 12वीं योजना का बिजली लक्ष्य


कोयले के उत्पादन, आपूर्ति और कीमत को लेकर अनिश्चितता से सरकार 12वीं योजना (वर्ष 2012-17) के लिए बिजली क्षमता का लक्ष्य तय नहीं कर पा रही है। सरकार ने कोयले की कीमत तय करने का नया फार्मूला लागू कर दिया है, लेकिन इससे बिजली कंपनियां परेशान हैं। कंपनियों का कहना है कि नए फार्मूले पर कोयला खरीदने से उनकी बिजली उत्पादन लागत 40 फीसदी तक बढ़ जाएगी। इसका बोझ आज नहीं तो कल आम जनता को उठाना पड़ेगा। 12वीं योजना सिर्फ दो महीने बाद 1 अप्रैल, 2012 से लागू होगी। सरकार अभी तक इसी उधेड़बुन में लगी है कि अतिरिक्त बिजली उत्पादन का लक्ष्य 90 हजार मेगावाट तय किया जाए या एक लाख मेगावाट। प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) की इच्छा है कि यह लक्ष्य एक लाख मेगावाट हो, जबकि योजना आयोग और बिजली मंत्रालय इसे 90 हजार मेगावाट या इससे भी नीचे रखना चाहते हैं। योजना आयोग के सदस्य बीके चुतर्वेदी ने बताया कि बिजली उत्पादन के लक्ष्य के बारे में अंतिम फैसला राष्ट्रीय विकास परिषद की बैठक में होगा। देश की सबसे बड़ी बिजली उत्पादक एनटीपीसी ने साफ कर दिया कि अगर सरकार ने बिजली कंपनियों को भी नए फार्मूले से कोयले की कीमत अदा करने के लिए बाध्य किया तो बिजली उत्पादन महंगा हो जाएगा। कोयला मंत्रालय ने 1 जनवरी, 2012 से ही नए फार्मूले से कोयले की कीमत तय करने का फैसला किया है। घरेलू कोयले के साथ ही आयातित कोयले की कीमत भी लगातार बढ़ रही है। इससे देश में लग रहीं नई बिजली परियोजनाओं से पैदा होने वाली बिजली के लिए ज्यादा शुल्क वसूलना पड़ सकता है। 11वीं योजना के दौरान देश की बिजली उत्पादन क्षमता में बमुश्किल 52 हजार मेगावाट की वृद्धि होने की संभावना है। बिजली मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने यह तो स्वीकार किया कि 11वीं योजना के दौरान तय 62 हजार मेगावाट का लक्ष्य हासिल नहीं हो सकेगा, लेकिन भरोसा जताया कि आगामी योजना के दौरान इससे ज्यादा क्षमता जोड़ी जा सकेगी। शिंदे ने बताया कि 12वीं योजना के दौरान शुरू होने वाली 80 हजार मेगावाट क्षमता की बिजली परियोजानओं पर अभी से काम चालू हो चुका है।

No comments:

Post a Comment