Tuesday, February 14, 2012

सरकार पर बढ़ रहा कर्ज का बोझ


कर राजस्व की सुस्त रफ्तार के चलते खजाना भरने के उपायों में उलझी सरकार के लिए दिक्कतें कम नहीं हो रही हैं। सरकार पर कर्ज का बोझ भी बढ़ता जा रहा है। चालू वित्त वर्ष 2011-12 की तीसरी तिमाही में सरकार के कर्ज में 3.2 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। इस अवधि में सरकार पर करीब 34 लाख करोड़ रुपये का कर्ज हो गया है। वित्त मंत्रालय ने गुरुवार को सार्वजनिक ऋण यानी सरकार के ऊपर कर्ज के तिमाही आंकड़े जारी किए। इनके मुताबिक अक्टूबर-दिसंबर, 2011 की तिमाही में सरकार पर कर्ज 33,82,645 करोड़ रुपये रहा। यह सितंबर तिमाही के मुकाबले 3.2 प्रतिशत अधिक है। उस वक्त सरकार के ऊपर 32,76,368 करोड़ रुपये का कर्ज था। सरकार के कुल कर्ज में आंतरिक ऋण की हिस्सेदारी दिसंबर तिमाही में 89.9 प्रतिशत रही। उसके ऊपर बकाया आंतरिक कर्ज 30,41,895 करोड़ रुपये रहा। यह सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 33.9 प्रतिशत था। सितंबर, 2011 तिमाही में यह 32.7 प्रतिशत था। यह कर्ज वह राशि है, जो सरकार बांड, डाकघर जमाओं और बाजार के जरिए जनता से हासिल करती है। बांड के जरिए सरकार ने चालू वित्त वर्ष की दूसरी छमाही में 52,872 करोड़ रुपये अधिक जुटाए हैं। विनिवेश और अन्य गैर कर स्रोतों से राजस्व नहीं मिलने के चलते सरकार को बजट की अनुमानित बाजार उधारी में वृद्धि करनी पड़ी। इसके बाद भी सरकार की वित्तीय जरूरतें पूरा नहीं होने के बाद बाजार उधारी में 40,000 करोड़ रुपये की और बढ़ोतरी करनी पड़ी। इससे चालू वित्त वर्ष की बाजार उधारी में 92,872 करोड़ रुपये की वृद्धि हो चुकी है। सरकार की राजकोषीय हालत कर राजस्व में कमी के चलते भी बिगड़ी है। तीसरी तिमाही तक सरकार बजट में अनुमानित कर राजस्व का केवल 63.5 प्रतिशत तक ही जुटा पाई है। पिछले वित्त वर्ष में इसी अवधि तक सरकार बजट अनुमान का 70.7 प्रतिशत तक प्राप्त कर चुकी थी।

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