Wednesday, December 28, 2011

मुश्किलों के साथ थोड़ी उपलब्धियां भी

सन 2011आर्थिक मुश्किलों का वर्ष रहा। साल के शुरू में आर्थिक उपलब्धियों की उजली संभावनाएं अनुमानित की जा रही थीं लेकिन वर्ष खत्म होते- होते वैिक स्तर पर अमेरिका के राजकोषीय संकट और यूरोपीय देशों के ऋण संकट से आगे बढ़ी दोहरी मंदी ने भारतीय अर्थव्यवस्था में भी चिंता का दौर पैदा कर दिया। इंडियन पॉलिटिकल इकोनॉमी एसोसिएशन और वरिष्ठ अर्थशास्त्रियों के पैनल द्वारा तैयार सव्रे रिपोर्ट में कहा गया कि दुनिया के विकसित देशों की अर्थव्यवस्थाओं में छाई अनिश्चितता से भारत भी आर्थिक मंदी की दहलीज पर पहुंच गया। रुपया नीचे गिरता गया। आयात महंगे हो गए। राजकोषीय घाटा बढ़ गया। उद्योग-व्यापार और शेयर बाजार निराशा के दौर में पहुंच गए। विकास दर आठ फीसद के अनुमानित लक्ष्य से घटकर सात फीसद रह गई। स्पष्ट है कि 2011 में वैिक आर्थिक हालात के कारण देश के सकल घरेलू उत्पाद में सबसे ज्यादा योगदान देने वाले सेवा क्षेत्र की विकास दर घट गई। पिछले दो सालों में पहली बार निजी क्षेत्र की गतिविधियों में गिरावट दर्ज की गई और यह आंकड़ा घटकर उसी स्तर पर पहुंच गया, जो वर्ष 2008 की वैिक मंदी के समय था। निश्चित रूप से देश के उद्योग-व्यापार के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती ऋण पर बढ़ती ब्याज दरें रही। उद्यमियों को बढ़ती ब्याज दरों के कारण कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। संयुक्त राष्ट्र औद्योगिक विकास संगठन (यूनिडो) ने अपनी नवीनतम रिपोर्ट में कहा कि 2011 में भारत में औद्योगिक विकास में गिरावट की सबसे बड़ी वजह ब्याज दरों में लगातार हो रही बढ़ोतरी रही। भारत में महंगाई पर काबू के लिए रिजर्व बैंक की ओर से लगातार मौद्रिक दरों में की जा रही बढ़ोतरी से औद्योगिक उत्पादन वृद्धि दर और कारोबारी विास में गिरावट आई। करोड़ों लोगों के लिए आवास ऋण पर ब्याज दर बढ़ने का दौर चिंताजनक रहा। निर्यात ऋणों पर ऊंची ब्याज दरों से निर्यातक परेशान रहे। वैिक मंदी के कारण भारतीय निर्यात के जो क्षेत्र सबसे ज्यादा प्रभावित हुए, उनमें जेम एंड ज्वैलरी, लेदर, टेक्सटाइल, आईटी, फार्मा और कुछ अन्य सेवा क्षेत्र शामिल हैं। निसंदेह 2011 में सरकार के कर राजस्व की स्थिति संतोषप्रद नहीं रही। चालू वित्त वर्ष 2011-12 में दिसम्बर महीने तक सरकार कर राजस्व संग्रह के आधे लक्ष्य तक ही पहुंच पाई। राजकोषीय घाटा और विनिवेश लक्ष्य चूकने के कारण संभवत: वित्त मंत्रालय बजट लक्ष्य हासिल नहीं कर पाएगा। पिछले चार वित्त वर्षो में यह तीसरी बार होगा, जब सरकार अपना बजट लक्ष्य हासिल नहीं कर पाएगी। चालू वित्त वर्ष के अंत तक प्रत्यक्ष कर संग्रह पांच लाख करोड़ और अप्रत्यक्ष कर संग्रह 3,90,000 करोड़ रुपए तक रहने की उम्मीद है। यह रकम लक्षित कर संग्रह से 40,000 करोड़ रुपए कम है। ऐसे में राजकोषीय घाटे पर दबाव बढ़ सकता है, जो बजटीय अनुमान 4.6 फीसद से ज्यादा हो सकता है। निश्चित रूप से दिसम्बर 2011 में अमेरिका की प्रतिनिधि सभा में प्रस्तावित आउटसोर्सिग बिल ने भारतीय अर्थव्यवस्था की चिंता बढ़ा दी है। इसमें कहा गया है कि जो कॉल सेंटर अमेरिका से बाहर भारत जैसे मुल्कों से कामकाज करेंगे, उन्हें पांच साल तक अमेरिका की फेडरल संघीय सरकार से अनुदान या गारंटीशुदा लोन नहीं मिलेगा। इस विधेयक की मंजूरी के बाद जो कॉल सेंटर 60 दिन के भीतर अमेरिकी लेबर डिपार्टमेंट को अपने कॉल सेंटर के ट्रांसफर की जानकारी देने में नाकाम रहेंगे, उन पर रोजाना 10,000 डॉलर का जुर्माना लगाया जाएगा। पहले ही वित्तीय सुस्ती से जूझ रहे 14 अरब डॉलर के भारतीय बीपीओ बाजार पर इसका बुरा असर होगा। भारत का बीपीओ सेक्टर अमेरिकी बाजार में सुस्ती और दूसरे मुल्कों से मिल रहे कड़े मुकाबले के चलते काफी दबाव में है। नासकॉम ने बताया कि यह साफ तौर पर संरक्षणवादी विधेयक है और इसे मंजूरी मिलने पर भारत का पूरा आईटी सेक्टर प्रभावित होगा। लेकिन इन आर्थिक निराशाओं के बीच 2011 ने कुछ उजली यादें भी छोड़ी हैं। 22 दिसम्बर, 2011 को लोकसभा में प्रस्तुत खाद्य सुरक्षा बिल के रूप में 64 फीसद आबादी को खुशियों का उपहार मिला। दिसम्बर के अंतिम सप्ताह में खाद्य महंगाई दर चार साल के निम्नतम स्तर पर पहुंच गई। पाकिस्तान और चीन सहित दुनिया के कई विकासशील और विकसित देशों के साथ व्यापार मित्रता के नए अध्याय लिखे गए। सितम्बर 2011 में पेइचिंग में आयोजित भारत और चीन के बीच पहली रणनीतिक आर्थिक वार्ता (एसईडी) में दोनों देशों ने द्विपक्षीय निवेश बढ़ाने, एक-दूसरे के लिए बाजार खोलने, विकास के अनुभवों को साझा करने और ढांचागत क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने पर सहमति जताई। 10- 11 नवम्बर को मालदीव में दक्षिण एशियाई देशों- भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, मालदीव और अफगानिस्तानके क्षेत्रीय सहयोग संगठन (दक्षेस या सार्क) के सत्रहवें शिखर सम्मेलन में भारत के बढ़ते व्यापारिक महत्व को स्वीकार किया गया। दिल्ली में 15 नवम्बर को भारत और पाकिस्तान के वाणिज्य सचिवों की बैठक में पाकिस्तान द्वारा कुछ वस्तुओं को छोड़कर कई वस्तुओं के लिए भारत से खुले आयात की अनुमति देने की घोषणा हुई। बेहतर मानसून के चलते फसलों का उत्पादन काफी अच्छा रहा, इसके चलते दिसम्बर में खाद्य महंगाई में गिरावट आई। हालांकि दाल, दूध, अंडा, मछली आदि के दामों में कमी न होना चिंता का विषय रहा। खाद्य महंगाई से कुल मुद्रास्फीति पर बहुत कम असर पड़ा पर खाद्य मुद्रास्फीति का दिसम्बर के अंतिम सप्ताह में 1.81 प्रतिशत के स्तर पर आने से देश के करोड़ों लोगों को राहत मिली। यह चार साल का सबसे निचला स्तर है। आवश्यक खाद्य वस्तुओं मसलन आलू-प्याज जैसी सब्जियों और गेहूं की कीमतों में कमी से खाद्य मुद्रास्फीति नीचे आई है। यह गिरावट जहां आम उपभोक्ताओं को राहत पहुंचाती दिखी, वहीं किसानों की मुश्किलें कुछ बढ़ गई। निश्चित रूप से वर्ष 2011 के अंत में आर्थिक आशाओं और निराशाओं के बीच देश का जो आर्थिक परिदृश्य दिखाई दिया है, उसके आधार पर 2012 में विभिन्न आर्थिक चुनौतियों की कल्पना की जा सकती है। उम्मीद करें कि नए वर्ष में सरकार हरसंभव प्रयास करके उद्योग-व्यवसाय को गति देगी। खाद्य सुरक्षा कानून के तहत अनाज की पर्याप्त आपूर्ति हेतु खाद्यान्न उत्पादन बढ़ाने की नई रणनीति पर कार्य होगा। साथ ही करोड़ों लोगों को पीड़ा देने वाली महंगाई को नियंत्रित करने के लिए कारगर कदम उठाये जाएंगे।

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