Saturday, December 1, 2012

अर्थव्यवस्था की सुस्त रफ्तार बरकरार



vर्थव्यवस्था के लिए नहीं, बल्कि सरकार के लिए भी चालू वित्त वर्ष के बाकी छह महीने काफी चुनौतीपूर्ण रहने वाले हैं। आर्थिक विकास दर के दस वर्षो के न्यूनतम स्तर पर खिसकने के खतरे को दूर करने के लिए केंद्र सरकार को और कठोर फैसले लेने पड़ सकते हैं। जानकारों की मानें तो सरकार को अगर चालू वित्त वर्ष में छह फीसद की विकास दर का लक्ष्य हासिल करना है तो पेट्रोलियम सब्सिडी घटानी होगी। साथ ही वस्तु व सेवा कर यानी जीएसटी को लागू करने पर दो टूक फैसला करना होगा और ब्याज दरों को भी घटाना होगा। सरकार के ताजा अनुमान के मुताबिक पहली छमाही में देश की विकास दर 5.4 फीसद रही है, जबकि पूरे वर्ष के लिए सरकार ने 5.7 से छह फीसद का लक्ष्य रखा है। इस हिसाब से अक्टूबर-मार्च की दूसरी छमाही में लगभग साढ़े छह फीसद की विकास दर हासिल करनी होगी। उद्योग चैंबर फिक्की के अध्यक्ष आरवी कनोरिया का कहना है कि अगर सरकार ने कठोर फैसले नहीं किए तो विकास दर छह फीसद से काफी नीचे रहेगी। यह देश के लिए दुर्भाग्यपूर्ण होगा, क्योंकि यह सीधे तौर पर देश के युवाओं के रोजगार के अवसरों को प्रभावित करेगा। केंद्र की सरकार को बगैर हिचकिचाहट के आर्थिक सुधारों का यह सिलसिला आगे भी जारी रखना चाहिए। साथ ही मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र को भी पर्याप्त प्रोत्साहन देना चाहिए। अन्य उद्योग संगठन सीआइआइ के महासचिव चंद्रजीत बनर्जी का कहना है कि सरकार को पेट्रोलियम सब्सिडी में और कटौती करने के लिए कदम उठाने होंगे। साथ ही जीएसटी को हर कीमत पर अंतिम रूप देकर लागू करने की कोशिश करनी चाहिए। माना जाता है कि जीएसटी को लागू कर विकास दर में एक फीसदी की वृद्धि हो सकती है। इसके साथ ही ब्याज दरों में कटौती की मांग एक बार फिर उद्योग जगत की तरफ से उठी है। खास तौर पर मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र की बेहद खस्ताहाल स्थिति को देखते हुए तमाम अर्थशास्ति्रयों और उद्योग चैंबरों ने रिजर्व बैंक से तत्काल ब्याज दरों को घटाने की गुहार लगाई है। अब इन सभी को इंतजार है कि राजनीतिक दबाव और आगामी चुनावों को देखते हुए संप्रग सरकार अर्थव्यवस्था की रफ्तार बढ़ाने वाले फैसले करने की हिम्मत दिखा पाती है या नहीं।सरकार के नीतिगत अनिर्णय, महंगे कर्ज और खराब मानसून ने अर्थव्यवस्था को मुश्किल में डाल दिया है। चालू वित्त वर्ष 2012-13 की दूसरी तिमाही में आर्थिक विकास की दर 5.3 प्रतिशत तक नीचे उतर आई है। तिमाही आधार पर यह तीन साल में सबसे कम विकास दर है। अगली छमाही में अगर हालात नहीं बदले तो अर्थव्यवस्था की सालाना विकास दर एक दशक के न्यूनतम स्तर तक जा सकती है। दूसरी तिमाही यानी जुलाई-सितंबर के आर्थिक विकास के आंकड़ों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अर्थव्यवस्था में सुस्ती न सिर्फ बनी हुई है, बल्कि हालात और खराब हुए हैं। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की यह वृद्धि दर 5.5 प्रतिशत रही थी। मगर खराब मानसून से बिगड़ी खेती व महंगे कर्ज से ठप कारखानों ने आर्थिक विकास की दर को और नीचे ला दिया है। बीते वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में विकास दर 6.7 प्रतिशत रही थी। पिछले वित्त वर्ष की चौथी तिमाही से अर्थव्यवस्था में सुस्ती का जो माहौल बना वह इस तिमाही में भी बरकरार रहा है। अर्थव्यवस्था के ताजा आंकड़ों ने सरकार के साथ साथ रिजर्व बैंक पर भी इसमें तेजी लाने संबंधी कदम उठाने का दबाव बना दिया है। रिजर्व बैंक अगले महीने 18 तारीख को अपनी मौद्रिक नीति की मध्य तिमाही समीक्षा करेगा। वैसे, वित्तीय बाजारों पर आर्थिक विकास की धीमी रफ्तार का बहुत ज्यादा असर नहीं हुआ। उम्मीद से कम रहने के बावजूद बीएसई का सेंसेक्स 169 अंक चढ़ा। दूसरी तिमाही में आर्थिक विकास की रफ्तार को धीमा करने में सबसे ज्यादा योगदान कृषि का रहा है। इस अवधि में अनियमित मानसून ने खरीफ की पैदावार को प्रभावित किया है। इसके चलते खेती की वृद्धि दर 1.2 प्रतिशत पर ही सिमट गई है। पहली तिमाही में इसकी विकास दर 2.9 प्रतिशत रही थी। इसी तरह मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र की रफ्तार में भी बहुत फर्क नहीं पड़ा है। महंगे ब्याज के चलते मांग में लगातार कमी हो रही है, जिसका असर औद्योगिक उत्पादन पर पड़ रहा है। सुस्ती का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि दूसरी तिमाही में वित्तीय सेवा क्षेत्र की रफ्तार भी बीती तिमाही के मुकाबले कम हो गई है। वित्तीय सेवा क्षेत्र की वृद्धि दर 10 प्रतिशत से ऊपर बनी हुई थी, मगर जुलाई-सितंबर की तिमाही में यह 9.4 प्रतिशत पर आ गई है।

Dainik Jagran National Edition 1-12-2012 Page -10 अर्थव्यवस्था

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