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Saturday, October 15, 2011

उड़ीसा स्टील प्लांट से हाथ खींच सकती है आर्सेलर मित्तल


फाइलों और मंजूरियों के खेल में उलझी स्टील कंपनी आर्सेलर मित्तल उड़ीसा के प्रस्तावित प्लांट से हाथ वापस खींच सकती है। लगभग 1.2 करोड़ टन स्टील उत्पादन वाले इस संयंत्र में भूमि अधिग्रहण से लेकर मंजूरियों तक को लेकर कई समस्याएं सामने आ रही हैं। कंपनी सूत्रों के मुताबिक पिछले डेढ़ साल में कंपनी को इस परियोजना में कोई प्रगति हासिल नहीं हुई है। ऐसे में कंपनी कर्नाटक और झारखंड में प्लांट लगाने पर ज्यादा गंभीर होती जा रही है। अधिग्रहण के लिए जरूरी 15 ग्रामसभाओं में से अभी तक मात्र आठ सभाएं ही आयोजित हुई हैं। यह ग्रामसभाएं 2010 के मध्य तक ही हो गई थीं। इसके बाद एक भी ग्रामसभा नहीं हुई। आर्सेलर मित्तल ने 2006 में उड़ीसा सरकार के साथ एमओयू पर हस्ताक्षर किए थे। इसके तहत क्योंझर में लगभग 10 अरब डॉलर (50 हजार करोड़ रुपये) के निवेश से 1.2 करोड़ टन स्टील उत्पादन का प्लांट लगाया जाना था। इस एमओयू की अवधि दिसंबर में खत्म हो रही है। जब इस प्रोजेक्ट के भविष्य के बारे में कंपनी प्रतिनिधि से पूछा गया तो उन्होंने कुछ भी बताने से इंकार कर दिया। इस बीच आर्थिक मंदी के चलते कंपनी ने लगभग एक अरब डॉलर की बचत करने का अभियान चला दिया है। कंपनी प्रवक्ता ने बताया कि इस अभियान से कंपनी को दूरगामी फायदे होंगे। हालांकि इसका भारत में किए जा रहे निवेश पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा। वहीं कर्नाटक में स्थिति कहीं बेहतर है। कंपनी के प्रस्तावित 60 लाख टन उत्पादन वाले प्लांट के लिए वहां लगभग पूरी जमीन अधिग्रहित की जा चुकी है। वहीं कंपनी झारखंड में खुद ही भूमि अधिग्रहण कर रही है। कंपनी वहां करमपाड़ा में लौह अयस्क खनन परियोजना शुरू करना चाह रही है। कंपनी का अनुमान है कि इन खदानों से लगभग 20 करोड़ टन का उत्पादन किया जा सकेगा।

फिर ब्याज दरें बढ़ने का खतरा


ब्याज दरों में एक और वृद्धि की संभावना जोर पकड़ने लगी है। महंगाई कम होने का नाम नहीं ले रही। सरकार भी लगभग यह मान चुकी है कि महंगाई के खिलाफ उसके पास ब्याज दर बढ़ाने के अलावा और कोई चारा नहीं है। सितंबर में महंगाई की दर 9.72 फीसदी रही है जो अगस्त, 2011 के मुकाबले थोड़ा बेहतर तो है लेकिन सितंबर, 2010 के मुकाबले (8.98 फीसदी) खराब है। महंगाई के आंकड़े आने के कुछ ही देर बाद रिजर्व बैंक ने साफ संकेत दे दिए कि वह फिर ब्याज दरों को बढ़ाएगा। महंगाई के ताजा आंकड़े बताते हैं कि सितंबर, 2011 में सबसे ज्यादा मैन्युफैक्चरिंग उत्पादों की कीमतों में तेजी आई है। चाहे चमड़े के उत्पाद हों या कपड़े या फिर पैकेज्ड खाद्य उत्पाद, सभी की कीमतें बढ़ी है। खाद्य उत्पादों की श्रेणी में इस महीने 0.9 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है। खाद्य उत्पादों की थोक कीमतें पिछले एक वर्ष के भीतर 9.23 फीसदी बढ़ी हैं। जानकारों का कहना है कि मैन्युफैक्चरिंग उत्पादों की कीमतों में लगातार वृद्धि से साफ है कि ब्याज दरें बढ़ने के बावजूद औद्योगिक क्षेत्र में महंगाई पर कोई काबू नहीं पाया जा सका है। अप्रैल, 2010 के बाद से अभी तक आरबीआइ 12 बार ब्याज दरों को बढ़ा चुका है। ब्याज दरों में संभावित कमी के बारे में जब आरबीआइ के डिप्टी गर्वनर केसी चक्रबर्ती से शुक्रवार को पूछा गया तो उनका सीधा जबाव था कि जब तक महंगाई काबू में नहीं आएगी, ब्याज दरों में वृद्धि जारी रहेगी। उन्होंने कहा, ब्याज दरों की वजह से महंगाई नहीं है बल्कि महंगाई की वजह से ब्याज दरों को बढ़ाना पड़ रहा है। आरबीआइ के पास और कोई तरीका नहीं है। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष व पूर्व आरबीआइ गर्वनर सी. रंगराजन भी मानते हैं कि जब तक महंगाई में साफ तौर पर कमी के संकेत नहीं मिले, आरबीआइ कड़ी मौद्रिक नीति जारी रख सकता है। उन्होंने उम्मीद जताई कि अगले कुछ महीनों में महंगाई की दर मौजूदा स्तर से नीचे आएगी। हालांकि वे पिछले छह महीने से ऐसा कर रहे हैं। सरकार और आरबीआइ पिछले वर्ष की रबी की कटाई के बाद से ही यह बता रहे हैं कि महंगाई की दर अब कम होगी। जबकि हकीकत यह है कि जबरदस्त अनाज उत्पादन के बावजूद खाद्य उत्पादों की कीमतों में भी नरमी का रूख नहीं दिख रहा है। जानकारों का कहना है कि नवंबर, 2011 में वार्षिक मौद्रिक नीति की छमाही समीक्षा के दौरान आरबीआइ ब्याज दरों को और बढ़ा सकता है। आरबीआइ का यह कदम मध्यम वर्ग के साथ ही औद्योगिक क्षेत्र को भारी नुकसान पहुंचा सकता है। हाल के महीने में औद्योगिक विकास दर भी लगातार कम हुई है। इसके लिए महंगे कर्ज को एक बड़ी वजह माना जा रहा है।

आज से रेल माल भाड़ा भी महंगा


बढ़ते खर्चो के बीच कमाई बढ़ाने की गरज से रेलवे ने माल भाड़ा छह फीसदी बढ़ा दिया है। इससे उपभोक्ताओं को इन वस्तुओं की ज्यादा कीमत चुकानी होगी। सभी तरह के माल के लिए की गई यह बढ़ोतरी शनिवार से लागू हो जाएगी और जून, 2012 तक प्रभावी रहेगी। इस संबंध में रेलवे ने एक सर्कुलर जारी किया है। सर्कुलर के मुताबिक, अधिकतर वस्तुओं के लिए व्यस्त सीजन चार्ज मौजूदा 7 से बढ़ाकर 10 फीसदी कर दिया गया है। वहीं, सभी सामानों के लिए विकास शुल्क 2 से बढ़ाकर 5 फीसदी किया गया है। इस तरह दोनों में तीन-तीन फीसदी की बढ़ोतरी से ग्राहकों पर कुल छह फीसदी का भार पड़ेगा। रेलवे का गैर-व्यस्त मौसम 1 जुलाई से 30 सितंबर तक रहता है। उद्योग जगत ने आशंका जताई है कि माल भाड़े में इस बढ़ोतरी से महंगाई और भड़केगी, जबकि रेलवे ने अपने इस कदम को उचित ठहराया है। रेल मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि तीन सालों में स्टील, ईधन और ऊर्जा के दाम कई गुना बढ़े हैं। इसकी वजह से बढ़े खर्च की भरपाई के लिए ही रेलवे ने यह कदम उठाया है। वित्तीय संकट का सामना कर रहे रेलवे ने वित्त मंत्रालय से 2,100 करोड़ रुपये का कर्ज भी मांगा है। उसके पास फिलहाल महज 75 लाख रुपये का नकद रिजर्व रह गया है।