Friday, May 6, 2011

ग्लोबल डॉक्टर बनने के सपने


वैश्विक स्तर पर स्वास्थ्य पर्यटन के क्षेत्र में दक्षिण पूर्वी एशियाई देश बहुत तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। थाईलैंड इस प्रतिस्पर्धा में दक्षिण पूर्व ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में सबसे आगे खड़ा है। वहां के वुमरूनग्रैंड अस्पताल में हर साल लगभग तीन लाख विदेशी मरीज इलाज करवाने आते हैं। भविष्य में भारत में भी इस क्षेत्र में संभावनाएं दिख रही हैं। 2012 तक भारत इस क्षेत्र में अच्छी रणनीति बनाकर सौ अरब डॉलर तक कमा सकता है लेकिन सिंगापुर, मलयेशिया, फिलिपींस, जॉर्डन और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों से उसे कड़ी टक्कर मिल रही है। भारत में 2005 में केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री अम्बुमणि रामदास ने स्वास्थ्य पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए एक कार्यदल का गठन कर कहा था कि हमारी संस्कृति, धरोहर और स्थापत्य के साथ अगर स्वास्थ्य योजनाएं जोड़ दी जाएं तो काफी सफलता मिल सकती है। इससे एक कदम आगे बढ़ते हुए उन्होंने भारत में मेडिकल वीजा की श्रेणी की भी बात कही। भारत ग्लोबल डॉक्टर बन सकता है लेकिन उसके लिए कई नीतियां बनानी होंगी और नियमों में बदलाव भी जरूरी हैं। अन्तरराष्ट्रीय एयरलाइंस और निजी टूर ऑपरेटरों के जरिये अधिकाधिक स्वास्थ्य पर्यटकों को भारत लाने की कोशिश हो रही है। विदेशों से जो मरीज यहां इलाज के लिए आते हैं, उसमें न्यूरो, कार्डिक, ईएनटी, आर्थो, प्लास्टिक सर्जरी, गैस्ट्रो, कास्मेटिक और लाइफ एनहांसिग और बांझपन के साथ सबसे अधिक सरोगेसी यानी किराये की कोख वाले होते हैं। सरोगेसी हालांकि अभी स्वास्थ्य पर्यटन में पूरी तरह शामिल नहीं है लेकिन सरकार इस बारे में जो कानून ला रही है उसके गलत इस्तेमाल की संभावना ज्यादा है। यह कहीं न कहीं सामाजिकता और नैतिकता की कसौटी पर खरा नहीं उतरता है। यह भी सोचने वाली बात है कि अमेरिका और ब्रिटेन समेत कुछ ही देश सरोगेसी को कानूनी मान्यता देते हैं। लेकिन इन देशों में इस प्रक्रिया में कम से कम पचास लाख का खर्च आता है। जबकि भारत में पांच लाख में सब कुछ हो जाता है। इस रूप में ध्यान रखना जरूरी है कि स्वास्थ्य पर्यटन के विचार में स्वस्थ माहौल कायम रहे। अपने यहां बांझपन के उपचार की लागत विकसित राष्ट्रों की तुलना में एक चौथाई है। लेकिन स्वास्थ्य पर्यटन के मामले में कुछ दिक्कतें भी हैं। अन्तरराष्ट्रीय स्तर के बुनियादी ढांचे के अभाव में विदेशी मरीजों की परेशानियां भारत पहुंचते ही शुरू हो जाती हैं। पंजाब व चंडीगढ़ में इनकी बढ़ती संख्या देखते हुए चिकित्सकों के एक समूह ने स्वास्थ्य पर्यटन कम्पनी शुरू की है जो मरीजों के हवाई अड्डे पर पहुंचने से लेकर इलाज के अन्तिम दौर तक उन्हें तमाम सेवाएं उपलब्ध कराती है। अपनी तरह की इस पहली स्वास्थ्य पर्यटन कम्पनी का नाम डॉक्टर जेड इंडिया प्राइवेट लिमिटेड रखा गया है। भारत में स्वास्थ्य पर्यटकों को सरकार की ओर से खूब बढ़ावा दिया जा रहा है। भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) ने इस बारे में अध्ययन भी किया था कि यदि प्रयास हो तो मेडिकल पर्यटन के नाम पर यहां हर साल दस लाख लोग आ सकते हैं। भारत की निगाहें स्वास्थ्य पर्यटन के अन्तर्गत ब्रिटेन जैसे देशों पर भी हैं जहां सरकारी अस्पतालों में ऑपरेशन के लिए लम्बा इंतजार करना पड़ता है। ब्रिटेन के नेशनल हेल्थ सर्विसेज ने कुछ भारतीय अस्पतालों की पहचान की थी जिनमें ब्रिटेन के स्तर का इलाज वहां की तुलना में कही सस्ता है। हृदय रोग संबंधी ऑपरेशन में जहां पश्चिमी देशों में 50,000 डॉलर देने होते हैं, वहीं भारत में यह इलाज मात्र 10,000 डॉलर में हो जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि एक वर्ष में लगभग 20 लाख मरीज विदेशों में इलाज कराने जाते हैं। पश्चिमी देशों से एशियाई देशों में इलाज के लिए आने के दो कारण हैं। एक वे हैं जो खुद इन जगहों का चुनाव करते हैं और दूसरे वे जिनके पास मेडिकल बीमा पॉलिसी नहीं होती। स्वास्थ्य पर्यटन के तहत एशिया में करीब हर साल साढ़े तेरह लाख लोग इलाज के लिए आते हैं। यह व्यापार ज्यादा फायदेमंद होने के कारण इसमें प्रतिस्पर्धा भी खूब दिख रही है क्योंकि इलाज कराने वाले पश्चिमी देशों के मोटी जेब वाले ग्राहक हैं। थाइलैंड मरीजों को लुभाने के लिए इंटरनेट पर बड़े पैमाने पर विज्ञापन द्वारा महाअभियान चला रहा है। इसका लक्ष्य 2015 तक करीब एक करोड़ स्वास्थ्य पर्यटकों को बुलाने का है। ये मरीज सिर्फ अस्पतालों तक ही सीमित नहीं होंगे बल्कि ऑलीशान रिसोर्ट और शापिंग माल के ग्राहक भी होंगे। चीन भी पीछे नहीं है। वह शंघाई को स्वास्थ्य पर्यटन का अड्डा बना रहा है लेकिन वह इस क्षेत्र में तृतीय पक्ष या अभिकर्ता के रूप में होगा। वह ऐसा प्रचार प्लेटफार्म उपलब्ध कराएगा जो किसी विदेशी मरीज के लिए यात्रा, खानपान और कागजी कार्यवाही सहित परिवहन जैसी जरूरतें पूरी करेगा। ताइवान इसी नीति पर कार्य करते हुए अन्तरराष्ट्रीय स्वास्थ्य विकास कोष की स्थापना कर रहा है लेकिन सबसे ध्यान देने वाली बात यह है कि स्वास्थ्य पर्यटन के लगातार उभार से सार्वजनिक क्षेत्र के चिकित्सक और नर्स निजी क्षेत्र की तरफ अग्रसर होंगे जिससे स्वास्थ्य सेवाओं में असन्तुलन पैदा हो सकता है। इसके बावजूद भारत अपनी सकारात्मक नीति के बल पर ग्लोबल डॉक्टर बन सकता है।


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