Tuesday, March 20, 2012

सही दिशा में छोटा कदम


इस बजट का मूल दर्शन समझने की जरूरत है। वित्त मंत्री ने सेवा शुल्क एवं एक्साइज ड्यूटी में वृद्धि की है। इससे एक ओर तत्काल महंगाई बढ़ेगी, क्योंकि हर एक वस्तु के दाम बढ़ेंगे। दूसरी ओर सरकार की आय भी बढ़ेगी और सरकार का वित्तीय घाटा कम होगा। वित्तीय घाटा कम होने से सरकार को रिजर्व बैंक से कम ऋण लेना होगा। रिजर्व बैंक को कम नोट छापने होंगे। नोट कम छापने से आगामी समय में महंगाई थमेगी। यानी सरकार की रणनीति है कि तत्काल महंगाई को बढ़ने दो, लेकिन दीर्घकाल में इसे नियंत्रित कर लो। ऐसा प्रतीत होता है कि सरकार 2014 के चुनाव की तैयारी कर रही है। सोच है कि अगले वर्ष तक लोग टैक्स में इस वृद्धि को भूल जाएंगे। 2013 का बजट चुनावी होगा। उस समय सरकार की आय ठीकठाक होगी और सरकार मनरेगा जैसे लोक-लुभावन कार्यक्रम लाकर पुन: 2014 के चुनाव को जीत सकती है। यही स्थिति विकास दर की है। टैक्स बढ़ाए जाने से तत्काल कंपनियों पर दबाव बढ़ेगा। माल महंगा होगा और उन्हें बिक्री करने में कठिनाई होगी, परंतु यह अल्पकाल की बात है। वित्तीय घाटे पर नियंत्रण होने से देश की मुद्रा स्थिर हो सकती है। ऐसे में विदेशी निवेश के आने की संभावना बनती है। यदि विदेशी निवेश आता है तो आर्थिक विकास पुन: चल पड़ेगा। तत्काल विकास दर में जो गिरावट आएगी वह दीर्घकाल में लाभकारी हो जाएगी। आर्थिक विकास में वृद्धि की संभावना दो और कारणों से बनती है। बजट में बुनियादी ढांचे में लगी भारतीय कंपनियों द्वारा विदेशी निवेशकों को बांड बेचना आसान बना दिया गया है। इसके अलावा बुनियादी ढंाचे में निवेश के लिए टैक्स फ्री बांड की सीमा 30,000 करोड़ से बढ़ाकर 60,000 करोड़ कर दी गई है। इन बांडों के माध्यम से हाईवे, बंदरगाह एवं विद्युतीकरण के लिए और अधिक मात्रा में पूंजी उपलब्ध हो जाएगी। इससे भी विकास दर पर सकारात्मक प्रभाव पड़ने की संभावना है। अत: सरकार की रणनीति है कि तत्काल महंगाई में वृद्धि और विकास दर में कटौती बर्दाश्त करके अगले वर्ष के लोकप्रिय बजट के लिए गुंजाइश बना ली जाए। राजनीतिक दृष्टि से यह ठीक ही दिखता है, परंतु खतरा है कि टैक्स में वृद्धि के बावजूद वित्तीय घाटे का नियंत्रण में आना जरूरी नहीं है। सब्सिडी का भार बढ़ता जा रहा है। सरकारी खर्चो में कटौती के संकेत नहीं हैं। वित्तीय घाटे के नियंत्रण में न आने पर सरकार को दोहरा घाटा लग सकता है। वर्तमान में महंगाई बढ़ने के साथ-साथ आने वाले समय में भी महंगाई बढ़ती जाएगी। वित्तीय घाटे के नियंत्रण में आने के बावजूद विदेशी निवेश आना जरूरी नहीं है और विकास दर न्यून बनी रह सकती है। अत: कुल खेल वित्तीय घाटे के नियंत्रित होने एवं उसका विदेशी निवेश पर सार्थक प्रभाव पड़ने का है। सरकार के वित्तीय स्वास्थ्य पर सबसे बड़ी मार सब्सिडी की है। खाद्य पदार्थ, फर्टिलाइजर, केरोसिन एवं एलपीजी पर सरकार को भारी मात्रा में सब्सिडी देनी पड़ रही है। वर्तमान में सब्सिडी का लाभ लाभार्थी को कम और कंपनी तथा सरकारी नौकरशाही को अधिक मिल रहा है। फर्टिलाइजर सब्सिडी का लाभ निर्माता कंपनियों को होता है। इस समस्या के निदान के लिए वित्त मंत्री ने सब्सिडी को आईटी के माध्यम से चुस्त करने की योजना बनाई है। झारखंड में राशन कार्ड के सत्यापन के लिए आधार योजना का उपयोग किया जा रहा है। एलपीजी सब्सिडी को सीधे लाभार्थी के खाते में जमा करने का प्रयास मैसूर में किया जा रहा है। अल्वर जिले में केरोसिन सब्सिडी को सीधे लाभार्थी के खाते में जमा कराने का प्रयास किया जा रहा है। इन प्रयोगों का विस्तार 50 जिलों में इस वर्ष करने की योजना है। सब्सिडी को सीधे लाभार्थी तक पहुंचाने से सरकार पर वित्तीय भार कम पड़ेगा और साथ ही रकम के लाभार्थी के पास पहुंचने से सत्तारूढ़ पार्टी को राजनीतिक लाभ भी हासिल होगा। इसी क्रम में फर्टिलाइजर पर दी जा रही सब्सिडी पर निगाह रखने का प्लान बनाया जा रहा है। फर्टिलाइजर का मूवमेंट निर्माता से रिटेल विक्रेता तक कंप्यूटर द्वारा देखा जाएगा। आगे चलकर इसे किसान तक पहुंचाने पर भी निगाह रखी जा सकती है। इस कार्यक्रम से भी सरकार पर सब्सिडी का भार कम होगा और किसान को लाभ होगा। ये कदम सही दिशा में हैं। फिर भी मेरा मानना है कि सब्सिडी के मुद्दे पर सरकार द्वारा आक्रामक रुख अपनाया जा सकता था। सभी तरह की सब्सिडी को लाभार्थी तक पहुंचाने की कवायद में सरकार लगी है। इस पूरे झंझट को एक झटके में समाप्त करके पूरी रकम को नागरिकों के बैंक खाते में जमा करा देना चाहिए। किसान को फर्टिलाइजर का जो ऊंचा दाम देना होगा उसकी भरपाई के लिए खाद्यान्न के दाम में वृद्धि सुनिश्चित करनी चाहिए। सब्सिडी हटाने से आम आदमी पर जो भार पड़ेगा उससे ज्यादा रकम उसे सीधे नगद वितरण से मिल जाएगी। वास्तव में यह नगद वितरण स्वास्थ्य एवं शिक्षा पर दी जा रही सब्सिडी पर भी लागू किया जा सकता है। मेरी दृष्टि में यह बजट सही दिशा में छोटा कदम है। सेवा कर एवं एक्साइज ड्यूटी को बढ़ाना उचित ही है। बजट की मुख्य कमी है कि सरकार के अनुत्पादक खर्च विशेषकर कर्मियों की संख्या, वेतन एवं पेंशन पर नियंत्रण के बारे में नहीं सोचा गया है। इस बजट में संकट है कि वित्तीय घाटे का नियंत्रण में आना जरूरी नहीं है, वित्तीय घाटे के नियंत्रण में आने के बावजूद निवेश में वृद्धि जरूरी नहीं है और निजी निवेश में वृद्धि का लाभ आम आदमी तक पहुंचना जरूरी नहीं है। इन कड़ी में से एक भी टूट गई तो यह बजट सत्तारूढ़ पार्टी के लिए हानिकारक सिद्ध होगा और जनता को महंगाई का खामियाजा भुगतना होगा। (लेखक आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ हैं) 12श्चश्रल्ल2@Aंॠ1ंल्ल.Yश्रे

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