Saturday, July 9, 2011

मुनाफाखोरी का उपचार

उपभोक्ताओं और किसानों के हित में बहुराष्ट्रीय रिटेल स्टोर की प्रणाली की वकालत कर रहे हैं लेखक 
कभी-कभी मैं खुद से पूछता हूं कि मुझे एक किलो आलू के 12 रुपये क्यों चुकाने चाहिए, जबकि किसानों को इसमें से सिर्फ तीन या चार रुपये ही मिलते हैं? आलू लंबी यात्रा करके मुझ तक पहुंचते हैं। किसान से मंडी और वहां से दुकानदार की लंबी श्रृंखला है। वितरण श्रृंखला के प्रत्येक चरण में व्यापारी मेरे 12 रुपयों का कुछ हिस्सा अपने पास रख लेते हैं। किसानों को जो मिलता है और ग्राहक जो भुगतान करते हैं उसमें 8-9 रुपयों का अंतर बहुत बड़ा है। अध्ययनों से पता चलता है कि शेष विश्व के मुकाबले भारत में यह अंतर सबसे अधिक इसलिए है, क्योंकि यहां बिचौलियों की संख्या सबसे अधिक है। अमेरिकी किसानों को उपभोक्ता मूल्य का लगभग आधा मिल जाता है। मेरे मामले में अमेरिकी किसान को छह रुपये प्रति किलो मिलते। वस्तुत: यह अंतर माल और मौसम पर भी निर्भर करता है, किंतु कृषि अर्थशास्ति्रयों के अध्ययन के अनुसार विकसित देशों में किसान इसलिए अधिक हिस्सा प्राप्त कर पाते हैं, क्योंकि वहां वितरण श्रृंखला अधिक छोटी और कुशल है। यह भारत के उपभोक्ताओं और किसानों के लिए खुशखबरी है कि सरकार विदेशी सुपरमार्केट की तर्ज पर बहुराष्ट्रीय रिटेल चेन स्टोर खोलकर किसानों के लिए बेहतर वितरण प्रणाली शुरू करने की योजना बना रही है। इस प्रकार के स्टोर तमाम विकसित देशों में मौजूद हैं, किंतु भारत में अब तक इनकी अनुमति नहीं दी गई है। चीन समेत एशिया के तमाम देश आधुनिक श्रृंखला के माध्यम से लाभ उठा रहे हैं। केवल भारतीय उपमहाद्वीप के देश पुराने जमाने के किराना स्टोर और अकुशल मंडियों के कारण पिछड़ गए हैं। आधुनिक रिटेल विशेषज्ञों के आगमन से खाद्यान्न महंगाई पर अंकुश लगेगा, खाद्यान्न उत्पादन में संतुलन पैदा होगा और किसानों को उनकी उपज का अधिक दाम मिलेगा। विदेश में बड़े सुपरमार्केट आम तौर पर किसानों से सीधे खाद्यान्न खरीदते हैं, कोल्ड स्टोर में उनका भंडारण करते हैं, एयरकंडीशंड गाडि़यों में उनका परिचालन करते हैं और एयरकंडीशंड स्टोरों में उन्हें सीधे उपभोक्ताओं को बेचते हैं। यह कोल्ड चेन खुले स्थान में पड़े खाद्यान्न की बर्बादी को रोकती है। भारत में कुल खाद्यान्न उत्पादन का 20 से 30 प्रतिशत बर्बाद हो जाता है। आधुनिक रिटेल स्टोर के आने के बाद खाद्यान्न के दामों में 15-20 फीसदी कमी आने और किसानों की आय में 10 से 20 प्रतिशत की वृद्धि होने का अनुमान है। अब तक जो आधुनिक देशी रिटेल स्टोर भारत में शुरू हुए हैं उनमें खाद्यान्न के दाम बाजार मूल्य से अपेक्षाकृत कम हैं, जबकि ये भारतीय कंपनियां विदेशी कंपनियों की तरह कोल्ड चेन विकसित करने में माहिर नहीं हैं। इसलिए भारत आधुनिक रिटेल क्रांति का लाभ नहीं उठा पाया है। भारतीय रिटेल चेन स्टोरों ने मंडियों के बजाय सीधे किसानों से खाद्यान्न खरीदा है, इसलिए किसानों को मिलने वाले दाम मंडियों की अपेक्षा अधिक हैं। भारतीय रिटेल चेन किसानों को अधिक दाम देकर उपभोक्ताओं को अपेक्षाकृत सस्ते दामों पर खाद्यान्न कैसे दे पाती हैं? इसका सीधा सा जवाब यह है कि कंपनी ने इस श्रृंखला से अनेक बिचौलियों को हटा दिया है। जैसे ही नई सरकारी नीति लागू हो जाएगी वालमार्ट, टेस्को और कैरफॉर जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपनी कोल्ड चेन विशेषज्ञता के बल पर सीधे किसानों से खरीदारी शुरू कर देंगी। इन स्टोरों के भारत में आने से देश-विदेश में विभिन्न रिटेल कंपनियों में प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी, जिसका लाभ उपभोक्ताओं और किसानों दोनों को होगा। वर्तमान में, किसान अपनी फसल को बैलगाड़ी पर लादकर 20-50 किलोमीटर दूर मंडी में ले जाता है, जहां उसे अपना माल बेचने को बाध्य होना पड़ता है, कभी-कभी तो कौडि़यों के दाम। किसान के मंडी में पहुंचने के बाद आढ़ती और अन्य व्यापारी जानते हैं कि वह बिना माल बेचे वापस नहीं जा सकता, इसलिए वे आपस में गुट बनाकर कम दामों पर भी उपज खरीदने में सफल हो जाते हैं। अगर किसान को गांव से निकलते समय मंडी के दामों का पता चल जाता तो वह कुछ दिन इंतजार कर सकता था। कुछ गांवों में ई-चौपाल के माध्यम से किसानों को मोबाइल फोन पर ही मंडियों के दाम पता चल जाते हैं। इस प्रकार मोबाइल फोन किसानों के लिए सूचना का सर्वोत्तम साधन बन गया है। उचित रखरखाव और भंडारण के अभाव में किसानों की फसल खराब हो सकती है। इसका समस्या का जवाब है अधिक कोल्ड स्टोरेज की स्थापना करना। आधुनिक बड़े रिटेल स्टोरों के पास इसका निदान है। आधुनिक रिटेल स्टोर एयरकंडीशंड गोदाम और ट्रकों के माध्यम से खाद्यान्न को लंबे समय तक सुरक्षित रखकर भारत की खाद्यान्न बर्बादी पर अंकुश लगा सकते हैं। नई व्यवस्था के बाद बैंक भी भंडारण गृहों की रसीद के आधार पर किसानों को ऋण देना शुरू कर देंगे। इसमें हैरानी नहीं है कि किराना स्टोर, थोक विक्रेता और आढ़ती बहुराष्ट्रीय रिटेल चेन खोलने का पुरजोर विरोध कर रहे हैं। उनकी दलील है कि अगर रिटेल क्षेत्र में बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियां उतर आईं तो बड़ी संख्या में लोग बेरोजगार हो जाएंगे। वे गलत हैं। यह आइसीआरआइईआर के अध्ययन से स्पष्ट हो जाता है। यह अध्ययन योजना आयोग की पहल पर हुआ है। यह उन तमाम देशों के अनुभव से भी सिद्ध हो जाता है, जहां बहुराष्ट्रीय रिटेल चेन काम कर रही हैं। आजकल भारत के लोग खाद्यान्न से अधिक दूध, सब्जियां और फल का सेवन करते हैं। पिछले 20 वर्षो में प्रति व्यक्ति सब्जी उपभोग गांवों में तीन गुना और शहरों व कस्बों में दोगुना हो चुका है। दूध व दूध उत्पादों का उपभोग शहरों में दोगुना हो चुका है, जबकि खाद्यान्न उपभोग गांवों में 24 फीसदी घट गया है। यह गिरावट गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करने वालों में भी देखी गई। ऐसे में इन उत्पादों को सुरक्षित रखने के लिए कोल्ड रिटेल चेन की आवश्यकता और बढ़ जाती है। कृषि मार्केटिंग कमेटियों में राजनेता-व्यापारी गठजोड़ लोगों की असुरक्षा का दोहन करते हैं। वे आधुनिक रिटेल खोलने के खिलाफ स्वदेशी की दलील देते हैं। यह दलील विनिर्माण क्षेत्र के संबंध में गलत हो जाती है। अगर स्वदेशी की दलील विनिर्माण क्षेत्र में लागू की जाती तो अब भी अंबेसडर कार, बजाज स्कूटर और बीएसएनएल फोन का एकाधिकार रहता। भारत को विश्व के लिए अपने दरवाजे खोलने और इस प्रक्रिया में समृद्ध होने से डरना नहीं चाहिए। इससे भारत के आत्मविश्वास में वृद्धि ही होगी। (लेखक प्रख्यात स्तंभकार हैं).

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