Wednesday, May 23, 2012

सबसे ज्यादा काली कमाई कंपनियों ने बनाई


देश में कितना काला धन छिपा है, इसका आकलन सरकार तो सही-सही अभी तक नहीं लगा पाई है लेकिन उसने जो आंकड़े दिए हैं उससे स्पष्ट है कि यह आम अनुमान से काफी ज्यादा है। सिर्फ पिछले पांच वर्षो में ही आयकर विभाग की विभिन्न एजेंसियों ने देश-विदेश में मोटे तौर पर दो लाख करोड़ रुपये के काले धन का पता लगाया है। विदेशों में कारोबार फैला रहा भारतीय कारपोरेट उद्योग हो या देश के छोटे व्यापारी या आम कर दाता, काला धन बनाने में सब एक से बढ़ कर एक हैं। काले धन पर सरकार की तरफ से पेश श्वेत पत्र में पहली बार आयकर विभाग के छापों और इसमें उजागर होने वाले धन के बारे में विस्तार से जानकारी उपलब्ध कराई गई है। अमूमन ये आंकड़े पिछले छह वित्त वर्षो के हैं, जो अपने आप ही बता रहे हैं कि काले धन की समस्या कितनी विकराल हो गई है। मसलन, आयकर विभाग कानून के तहत मारे जाने वाले छापों में पकड़े जाने वाली राशि इन वर्षो में तीन गुनी हो चुकी है। 2006-07 में 3612.89 करोड़ के काले धन का पता चला था जबकि 2011-12 में आंकड़ा 9289.43 करोड़ रुपये का हो गया। छोटी व मझोली औद्योगिक इकाइयां भी पीछे नहीं। गत छह वर्षो में इनके बीच किये गये सर्वे से 26,579 करोड़ के काले धन का पता चला है। रिपोर्ट से यह भी साफ होता है कि कॉरपोरेट सेक्टर में भी काले धन के मामले काफी तेजी से बढ़े हैं। चाहे विदेशों में कारोबार फैला रही देशी कंपनियां हो या भारत में कार्यरत विदेशी कंपनियां, सही तरीके से कर अदा करने में इन सब की भूमिका संदेहास्पद है। अंतरराष्ट्रीय कराधान निदेशालय को इनसे सही आय व कर वसूलने में नाकों चने चबाना पड़ता है। पिछले एक दशक के दौरान उन भारतीय कंपनियों के एक लाख करोड़ रुपये से ज्यादा का कर वसूला गया जो सही सूचना नहीं दे रही थी। श्वेत पत्र के मुताबिक, गत दो वर्षो के दौरान भारतीय कंपनियों ने विदेशी सहयोगी कंपनियों की मिलीभगत से 67,768 करोड़ का कर बचाने की कोशिश की है। यह पूरा खेल ट्रांसफर प्राइसिंग है जिसमें ये कंपनियां एक उत्पाद या सेवा का भारत में तो कुछ और मूल्य दिखाती हैं लेकिन विदेशों में ज्यादा राजस्व प्राप्त करती हैं।

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