Monday, May 28, 2012

हर भारतीय पर Rs33 हजार का कर्ज


भारी सब्सिडी के बोझ और राजस्व वसूली में कमी के कारण सरकार के ऋण में हो रही बढ़ोतरी से वित्त वर्ष 2011-12 में देश का प्रत्येक नागरिक 33000 रुपए का कर्जदार हो गया। वित्त मंत्रालय के अनुमान के मुताबिक वित्त वर्ष 2011-12 में प्रति व्यक्ति आय में 14 फीसद की वृद्धि हुई लेकिन ऋण में 23 फीसद बढ़ोतरी हो सकती है। मार्च 2012 में प्रति व्यक्ति ऋण के 32812 रुपए पर और प्रति व्यक्ति आय के 14 फीसद बढ़कर 60972 रुपए पर पहुंचने की उम्मीद है। वित्त वर्ष 2010-11 में प्रति व्यक्ति ऋण 26600 रुपए पर था और यह प्रति व्यक्ति आय की तुलना में 50 फीसद से नीचे था। प्रति व्यक्ति ऋण में यह बढ़ोतरी मुख्य रूप से सरकार के साथ ही कंपनियों द्वारा घरेलू और विदेशी बाजारों से उठाये गए कर्ज से हुई है। इसके अतिरक्त व्यक्तिगत ऋण, आवास ऋण और वाहन ऋण भी अधिकांश लोगों पर है। सरकार बढ़े ऋण ऋण के साथ ही लघु बचत स्कीमों जैसे राष्ट्रीय बचत प्रमाण पत्र या जन भविष्य निधि के माध्यम से और बाजार से भी उधार लेती है। विदेशी ऋण की बढ़ोतरी में निजी क्षेत्र हिस्सेदारी अधिक है क्योंकि विदेशी ऋण सस्ते पड़ते हैं। कुल मिलाकर देश का बढ़ता ऋण अंतरराष्ट्रीय साख निर्धारण एजेंसियों की नजर में आ सकता है और इसका असर साख निर्धारण पर पड़ सकता है। आईएमएफके अनुमान के मुताबिक भारत का कुल ऋण सकूल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के करीब 67 फीसद तक रहने की संभावना है जो दुनिया में तेजी से उभरती अर्थव्यवस्थायें ब्रिक्स के चार सदस्यों देशों से अधिक है। ब्रिक्स में ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफीका शामिल है। हालांकि भारत का ऋण अभी भी विकसित अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में बेहतर स्थिति में है। ऋण में हो रही वृद्धि से ब्याज का भार भी बढ़ रहा है। सरकार ने ब्याज के रूप में 2.75 लाख करोड रुपए भुगतान करने का बजटीय प्रावधान किया है जो उसके कुल व्यय का 16.45 फीसद है। वित्त वर्ष 2012-13 के बजट को तैयार करने के दौरान अर्थशास्त्रियों ने सरकारी ब्याज भुगतान और सब्सिडी में कमी करने का आग्रह करते हुए कहा था कि इससे व्यावहारिक एवं सामाजिक बुनियादी सुविधाओं के विकास के लिए अधिक संसाधन उपलब्ध कराने में मदद मिलेगी। सरकार ने चालू वित्त वर्ष में सब्सिडी को कम कर जीडीपी के दो फीसद पर लाने का लक्ष्य निर्धारित किया है।

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