Wednesday, April 13, 2011

ब्रिक्स की होगी अपनी मुद्रा


दुनिया की सबसे तेजी से उभरती पांच अर्थव्यवस्थाओं की अब अपनी मुद्रा होगी। ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) देश इस संबंध में एक समझौते पर गुरुवार को हस्ताक्षर करेंगे। हालांकि इन देशों की कंपनियां अभी इस मुद्रा में कारोबार नहीं करेंगी लेकिन ये देश इस मुद्रा में एक दूसरे को कर्ज और सहायता दे सकेंगी। यानी यूरो और युआन के बाद अमेरिकी डॉलर को एक और मुद्रा से चुनौती मिल सकती है। चीन की यात्रा पर पहुंचे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ब्रिक्स के सदस्यों से अंतरराष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था में सुधारों पर चर्चा करेंगे। चीन पहुंचने से पहले प्रधानमंत्री के विशेष विमान में पत्रकारों से बातचीत में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार शिवशंकर मेनन ने कहा कि हम नई शुरुआत करने जा रहे हैं। संगठन बनने के बाद आर्थिक क्षेत्र में इस तरह का यह पहला ठोस कदम है। व्यापार के लिए डॉलर के मुकाबले युआन को प्रोत्साहित करने के चीन की कोशिशों के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि ब्रिक्स के सामने इस तरह का कोई प्रस्ताव नहीं आया है और न ही युआन को रिजर्व करेंसी के रूप में मान्यता देने की बात उठी है। उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय मॉनेटरी सिस्टम में सुधार एक बड़ा मुद्दा है। सिर्फ पांच देश मिलकर इसका फैसला नहीं कर सकते। अगले दशक तक वैश्विक अर्थव्यवस्था में ब्रिक्स देशों का योगदान 48 फीसदी होने की संभावना है। ऐसे में इनका यह कदम काफी अहम हो सकता है। अपने बढ़ते कद को देखते हुए ब्रिक्स देशों ने इससे पहले अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसे आर्थिक संगठनों में ज्यादा प्रतिनिधित्व देने की मांग कर चुके हैं। इस सम्मेलन में दक्षिण अफ्रीका को पहली बार औपचारिक रूप से संगठन की सदस्यता दी जाएगी। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और चीन के राष्ट्रपति हू जिंताओ के बीच बैठक से पहले भारत ने चीन के साथ अपने बढ़ते व्यापार घाटे पर चिंता जताई है। भारत चाहता है कि चीन अपने बाजार में भारतीय वस्तुओं की बिक्री के लिए और अधिक सहूलियत दे। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री आनंद शर्मा ने कहा कि चीन के साथ व्यापार असंतुलन चिंता का विषय है। 2010 में भारत का चीन के साथ व्यापार घाटा 20 अरब डॉलर था। वर्ष 2009 में व्यापार घाटा लगभग 16 अरब डॉलर का था। इस बारे में दोनों प्रधानमंत्रियों के बीच चर्चा होगी। शर्मा ने कहा कि व्यापार घाटे को प्रधानमंत्री पहले ही न संभालने लायक करार दे चुके हैं। चीन ने भारत को आश्वस्त किया है कि कुछ क्षेत्रों में सरकारी अनुबंधों के जरिए उसे और अधिक बाजार मुहैया कराया जाएगा। अंतर को पाटने के लिए हम हरसंभव कोशिश कर रहे हैं|

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