Friday, April 1, 2011

फैसले पर पुनर्विचार की जरूरत


आम बजट में सरकार ने ब्रांडेड रेडीमेड गारमेंट्स के कुल कारोबार के 60 फीसद हिस्से पर दस फीसद की दर से उत्पाद शुल्क लगाया था लेकिन निर्माताओं के कड़े विरोध के कारण बाद में सरकार ने कुल कारोबार के 45 फीसद हिस्से पर दस फीसद की दर से शुल्क लगाए जाने का ऐलान किया। लेकिन व्यापारियों का कहना है कि कपास की बढ़ती कीमतों के चलते इस शुल्क को पूरी तरह हटा लेना चाहिए। रेडीमेड गारमेंट्स पर वर्ष 2003 में एनडीए की सरकार ने उत्पाद शुल्क लगाया था लेकिन 2004 में ही यूपीए सरकार जब सत्ता में आई तो उसने उत्पाद शुल्क हटा लिया। लेकिन जब केंद्र में दुबारा यूपीए सरकार का गठन हुआ तो इस शुल्क को फिर से लगा दिया गया। ब्रांडेड रेडीमेड गारमेंट्स पर 10 फीसद का उत्पाद शुल्क लगाए जाने के बाद से ही इस कारोबार से जुड़े देशभर के लाखों व्यवसायी और उद्यमी कारोबार बंद कर अपना विरोध जता रहे हैं जिससे सरकार को प्रति दिन करोड़ों रुपए के राजस्व का नुकसान हो रहा है। शुल्क के विरोध में विनिर्माण इकाइयों में काम बंद है, जिससे इस उद्योग से जुड़े अन्य उत्पादों जैसे पैकिंग का सामान, धागा, कपड़ा व अन्य वस्तुओं की खरीदारी भी कारोबारी नहीं कर रहे हैं। इससे सरकार को अप्रत्यक्ष रूप से मिलने वाले राजस्व का भी नुकसान हो रहा है। ऐसा नहीं है कि रेडीमेड गारमेंट्स उद्योग से लुइस फिलिप, चिरागदीन या दीवान जैसी बड़ी कंपनियों के ही नाम जुड़े हैं बल्कि लाखों ऐसी छोटी इकाइयां भी हैं जो मोजे, बनियान और अंडरवियर जैसे उत्पाद बनाती हैं। दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, इंदौर, सूरत, लुधियाना और कानपुर समेत देश के हर छोटे बड़े शहरों में इस तरह की इकाइयां काम कर रही हैं। हालांकि इन इकाइयों का कारोबार बहुत बड़ा तो नहीं है लेकिन इनमें लाखों लोगों को रोजगार मिला है। इसमें कई छोटी-छोटी इकाइयां हॉजरी उत्पादों का निर्यात भी करती हैं जिससे सरकार को करोड़ों रुपए का राजस्व व विदेशी मुद्रा हासिल होती है। सरकार के इस कदम से सिर्फ कारोबारी अथवा इस उद्योग से जुड़े कामगार ही नहीं बल्कि करोड़ों ऐसे लोग भी प्रभावित होंगे जो टेलर को 250 रुपए देकर पैंट और 150 रुपए देकर शर्ट नहीं सिला सकते। आज भी देश में करोड़ों की संख्या में ऐसे लोग हैं जो कम कीमत वाले ब्रांडेड वस्त्रों का इस्तेमाल करते हैं क्योंकि महंगा कपड़ा और महंगी सिलाई देकर कपड़े बनवाने से बेहतर उनको छोटे ब्रांड के कपड़े ज्यादा सस्ते पड़ते हैं। सरकार की नीति देश में लघु एवं कुटीर उद्योग को बढ़ावा देने की है और ब्रांडेड अंडरगारमेंट्स बनाने वाली अधिकतर कंपनियां लघु उद्योग की श्रेणी में आती हैं इसलिए सरकार को चाहिए कि ब्रांडेड परिधानों पर दस फीसद उत्पाद शुल्क लगाने के अपने फैसले पर पुनर्विचार करे। अन्यथा इलेक्ट्रॉनिक्स अथवा अन्य क्षेत्रों की तरह रेडीमेड गारमेंट्स बाजार में भी चाइनीज उत्पादों की पैठ बढ़ जाएगी और सरकार को राजस्व का भारी नुकसान होगा।

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