Wednesday, April 13, 2011

चांद की ओर चांदी की कीमतें


पिछले दो महीने से देशी और विदेशी बाजारों में चांदी के भाव रुकने का नाम नहीं ले रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजार में जहां चांदी 38.80 डॉलर प्रति औंस के स्तर पर पहुंच गई है, वहीं घरेलू बाजार में यह 62 हजार के आंकड़े को छूने को है। बेहतर प्रतिफल की आस में चांदी की मांग बढ़ती जा रही है और फिलहाल निवेशक चांदी को भविष्य को भविष्य का सोना मानकर चल रहे हैं। निवेशकों के चांदी पर इस विश्वास का पुख्ता आधार भी है। अगर आज से पांच साल पहले किसी ने चांदी में निवेश किया था तो वह 240 फीसद से ज्यादा प्रतिफल ले सकता है। महज पिछले एक साल के भीतर ही चांदी 92 फीसद से ज्यादा का प्रतिफल देकर सोने का विकल्प बनती जा रही है। अंतरराष्ट्रीय बाजारों में तो चांदी ने निवेशकों को दोगुने से ज्यादा का प्रतिफल दिया है क्योंकि इसकी कीमतें मार्च 2010 के 16.50 डॉलर प्रति औंस से बढ़कर 23 फरवरी 2011 को 33.54 डॉलर प्रति औंस के स्तर पर पहुंच गई थी। चांदी की कीमतों के चांद पर पहुंचने के पीछे कई वजहें हैं। मिस्र से शुरू हुई लोकतंत्र की बयार का असर उत्तरी अफ्रीका और पश्चिमी एशिया के अधिकतर देशों में हुआ है। राजनीतिक संकट के बीच लीबिया और मिस्र समेत कई देशों ने तेल उत्पादन में कटौती की है जिसका असर दुनियाभर के शेयर बाजारों पर हुआ है। गिरावट के इस दौर से निवेशकों में घबराहट का माहौल है और सुरिक्षत निवेश की चाह में वह कीमती धातुओं का रुख कर रहे हैं। चूंकि सोने के दाम पहले से ही आसमान छू रहे हैं, लिहाजा निवेशकों ने चांदी को तरजीह दी और इसके दाम चढ़ना शुरू हो गए। चांदी की कीमतें बढ़ने का एक कारण इसकी मांग व आपूर्ति के बीच असंतुलन भी है। चांदी का उत्पादन कम है लेकिन चीन और भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं की औद्योगिक इकाइयों में चांदी की मांग बढ़ती जा रही है। हाल ही में जलवायु परिवर्तन के प्रति आई जागरूकता के कारण सौर उपकरणों की मांग में खासी बढ़ोतरी हुई है और सौर उपकरणों में चांदी का इस्तेमाल बड़े पैमाने पर होता है। घरेलू स्तर पर भी चांदी के सिक्कों की बढ़ती मांग के साथ ही चांदी से बने आभूषणों की मांग में भी बढ़ोतरी हुई है। दूसरी तरफ मंदी के बाद विकसित अर्थव्यवस्थाओं में छाये अनिश्चितता के बादलों ने भी चांदी की चमक बढ़ाने में सहयोग दिया है। शेयर बाजार के स्वभाव के अनुरूप ही बेहतर प्रतिफल के लालच में निवेशक चांदी के पीछे दौड़ने लगे और नतीजतन कीमतें ऊपर चढ़ती गई। सवाल उठता है कि क्या चांदी की यह उड़ान स्थायी है और आम निवेशक को ऐसे माहौल में खरीददारी करनी चाहिए? भले ही वैश्विक बाजारों का अनुसरण करते हुए घरेलू बाजार में भी चांदी की कीमतें ऊपर चढ़ रही हों लेकिन व्यापारियों समेत बाजार के जानकार इस बात पर एकमत हैं कि इस बार चांदी की घरेलू मांग कम है। सटोरियों के खेल से आगे बढ़ रही चांदी की कीमतें अपना अधिकतम स्तर पार कर चुकी हैं और इस स्तर पर ज्यादा दिन नहीं टिकने वाली हैं। वैश्विक राजनीतिक अस्थिरता के चलते भविष्य में आपूर्ति प्रभावित होने के डर से बड़े औद्योगिक घराने हेजिंग का सहारा ले रहे हैं और इसी जगह से चांदी की कृत्रिम मांग पैदा हो रही है। इस नकली मांग की आग में घी डालने का काम विदेशी संस्थागत निवेशक कर रहे हैं जो शेयर बाजार की बनिस्वत चांदी को प्राथमिकता दे रहे हैं। एफआईआई के द्वारा चांदी में झोंकी जा रही रकम के बीच सटोरियों की मेहरबानी से वायदा सौदों में उछाल आ रहा है और उसी के नक्शे-कदम पर चलते हुए हाजिर बाजार में तेजी देखने को मिल रही है। जाहिर है कि थोड़े समय बाद चांदी में बिकवाली का दौर शुरू हो जाएगा और कीमतें धड़ाम से नीचे आएंगी। हालिया रुझानों को देखते हुए कहा जा सकता है कि चांदी वैश्विक बाजार में 40 डॉलर प्रति औंस का स्तर छू सकती है लेकिन यह बेहद खतरनाक ऊंचाई है। नवरात्रों के चलते घरेलू बाजार में भी चांदी की कीमतें और ऊपर चढ़ सकती हैं मगर यह दौर स्थायी नहीं होगा। 1981 में भी अंतरराष्ट्रीय बाजार में चांदी की कीमत 54 डॉलर प्रति औंस की ऐतिहासिक ऊंचाई पर पहुंच गई थी और महज दो महीने के भीतर यह 11 डॉलर प्रति औंस तक नीचे गई थी। एक दिन में कीमत आधी रह जाने का रिकॉर्ड भी इस धातु ने उन्हीं दिनों बनाया था। 31 सालों के अंतराल के बाद चांदी की कीमतें फिर से उसी उंचाई पर पहुंच गई हैं लेकिन इस बुलबुले से घरेलू व्यापारी सहमें हुए हैं। कुछ निवेशकों का कहना है कि चांदी की औद्योगिक मांग में बढ़ोतरी होगी लेकिन यह भी कड़वी सच्चाई है कि कीमतों में अत्यधिक बढ़ोतरी के बाद उद्योग चांदी के सस्ते विकल्पों की ओर रुख करेंगे।


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