जैसे-जैसे देश में वैश्वीकरण और निजीकरण बढ़ रहा है, वैसे-वैसे करोड़ों लोगों की आर्थिक-सामाजिक सुरक्षा की जरूरत बढ़ती जा रही है। ऐसे में आर्थिक-सामाजिक सुरक्षा का हर नया कदम संबंधित लोगों को खुशियां देता दिख रहा है। वित्त मंत्रालय ने पिछले दिनों कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) पर ब्याज दर 9.5 फीसद किए जाने की मंजूरी दी है। केन्द्र ने 2005-06 से कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) जमा पर ब्याज दर 8.5 फीसद बनाए रखी थी। अब मौजूदा वित्त वर्ष में एक फीसद ब्याज दर बढ़ाने की मंजूरी से कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) के 4.7 करोड़ खाताधारकों के चेहरे खिल गये हैं। गौरतलब है कि पिछले छह माह से ईपीएफओ पीएफ पर 9.5 फीसद ब्याज दर की मांग कर रहा था। लेकिन वित्त मंत्रालय का तर्क था कि ईपीएफ राशि द्मथ् विनियोग से इतना धन नहीं मिल सकता कि वह 9.5 फीसद ब्याज दे सके । साथ-साथ यह भी तर्क था कि ईपीएफओ की जमा राशि को अच्छे रिटर्न के लिए शेयर बाजार में निवेशित नहीं किया जा सकता। जबकि श्रम मंत्रालय का कहना था कि उसके पास ब्याज अधिशेष खाते (इंटरेस्ट सस्पेंस एकाउंट) में 1731.57 करोड़ रुपए बिना दावे की राशि पड़ी है। उससे वर्ष 2010-11 में सरलतापूर्वक बढ़ी हुई ब्याज राशि का भुगतान किया जा सकेगा। वस्तुत: इस बार श्रम मंत्रालय और ट्रेड यूनियनों का दबाव बढ़ने से ही पीएफ जमा पर ब्याज र में बढ़ोतरी हो सकी है । यकीनन पीएफ पर ब्याज दर बढ़ाना कई आधारों पर न्यायसंगत है। वैश्वीवकरण के इस दौर में बहुराष्ट्रीय कंपनियों के कर्मचारियों के वेतन औरसुविधाएं तेजी से बढ़ती जा रही है लेकिन सरकार के संगठित क्षेत्र के कर्मचारियों के वेतन और सुविधाएं उतनी तेजी से नहीं बढ़ी हैं। कोई व्यक्ति जिंदगी के अधिकतम कार्यशील वर्षो में अपनी सेवाएं किसी संगठन को देता है और इस दौरान अपनी कमाई का कुछ हिस्सा ईपीएफ में इसलिए जमा करता है, ताकि सेवानिवृत्ति के बाद जिंदगी में सुरक्षा व निश्ंिचतता रहे। जब सरकार खुले बाजार में छोटे निवेशकों की दीर्घकालीन जमा राशियों की भरोसेमंद वापसी की गारंटी नहीं दे पाती और सेवानिवृत्ति के बाद किसी पारिवारिक जिम्मेदारी के निर्वाह के लिए भी उसे कई विश्वसनीय सामाजिक सुरक्षा योजना सरकार नहीं देती है, तो यदि सरकार को ईपीएफ पर कुछ ज्यादा ब्याज देना पड़ रहा है, तो यह सरकार का न्यूनतम सामाजिक दायित्व है । पिछले कुछ वर्षो की बचत पर ब्याज संबंधी आंकड़े बता रहे हैं कि बचत पर मिलने वाला ब्याज पिछले चार- पांच वर्षो में बहुत कम हो गया है और जो बचत योजनाएं चल रही हैं, उनमें ब्याज की कमाई का आकर्षण बहुत कम है । लेकिन पिछले एक वर्ष में जमा पर ब्याज दरें बढ़ती गई हैं। उल्लेखनीय है कि 2011 में देश के सभी बैंकों ने जमा पर ब्याज दरें बहुत आकर्षक कर दी हैं। एफडी पर ब्याज नौ फीसद से भी अधिक है। बाजार में नकदी लिक्विडिटी कम है अत: ब्याज बढ़ाया गया है। ईपीएफ पर ब्याज कम होने का असर पीपीएफ पर भी होता है । क्योंकि ईपीएफ संगठित क्षेत्र में काम करने वालों के लिए है तो पीपीएफ असंगठित क्षेत्र के लोगों के लिए। पिछले कुछ वर्षो में कम ब्याज दरों के कारण देश के उन तमाम छोटे निवेशकों का दूरगामी आर्थिक प्रबंधन चरमरा गया है जो अपनी छोटी बचतों के जरिये जिंदगी के महत्वपूर्ण दायित्व निपटाने की सोचे होते हैं- जैसे बच्चों की पढ़ाई, शादी, सामाजिक रीतििरवाजों की पूर्ति और सेवानिवृत्ति के बाद का जीवन। लेकिन छोटी बचत पर हुए लगातार प्रहार से लघु बचतों के निवेश पर निर्भर रहने वाले सामान्य व नौकरीपेशा वर्ग पर भारी बोझ आ पड़ा है। सामाजिक सुरक्षा का प्रमुख आधार बचत कम ब्याज दर से प्रभावित हो रही है। बचत और निवेश दर के आंकड़ों से सवाल उठ रहा है कि क्या ऊंची विकास दर का सिलसिला बरकरार रह पाएगा। 2009- 10 में बचत दर 33.7 फीसद पर पहुंच गई। इसी तरह निवेश दर 36.5 फीसद पर पहुंच गई है। अपने यहां सेवानिवत्ति के बाद किसी भी नौकरीपेशा को अपनी बचत के बूते ही गुजारा करना पड़ता है जबकि विकसित देशों में सरकार किसान व गरीब जनता तथा जरूरतमंद वर्ग को प्रत्यक्ष या परोक्ष आर्थिक सहायता देती है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) द्वारा 'बेहतर विश्व के लिए आर्थिक -सामाजिक सुरक्षा' नाम से जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि आर्थिक सुरक्षा के आधार पर 96 देशों में भारत का 94वां स्थान है तथा सामाजिक सुरक्षा की दृष्टि से दुनिया के 90 देशों में भारत का 74वां स्थान है। आर्थिक सुधार विशेषज्ञों का ध्यान अमेरिका और जापान द्वारा अपने नागरिकों को उपलब्ध करायी जा रही न्यूनतम आर्थिक और सामाजिक सुविधाओं पर नहीं जाता। अमेरिका-जापान में नागरिकों को बेहतर और प्रभावशाली राष्ट्रीय स्वास्थ्य व शिक्षा सुविधा उपलब्ध है जबकि भारत में लोगों को इस तरह की कोई असरदार स्वास्थ्य व शिक्षा सुविधा उपलब्ध नहीं है। अतएव केन्द्र व वित्त मंत्रालय द्वारा पीएफ पर ब्याज दर वृद्धि भविष्य निधि से जुड़े जमाकर्ताओं के लिए ब्याज दर वृद्धि कर्मचारियों की सामाजिक सुरक्षा बढ़ाने की दिशा में न्यायसंगत व सराहनीय कदम है। अपेक्षा है कि सरकार भविष्य में भी सामाजिक सुरक्षा की दिशा में आगे बढ़ती दिखाई देगी।
Friday, April 1, 2011
ब्याज दर बढ़ाना न्यायसंगत
जैसे-जैसे देश में वैश्वीकरण और निजीकरण बढ़ रहा है, वैसे-वैसे करोड़ों लोगों की आर्थिक-सामाजिक सुरक्षा की जरूरत बढ़ती जा रही है। ऐसे में आर्थिक-सामाजिक सुरक्षा का हर नया कदम संबंधित लोगों को खुशियां देता दिख रहा है। वित्त मंत्रालय ने पिछले दिनों कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) पर ब्याज दर 9.5 फीसद किए जाने की मंजूरी दी है। केन्द्र ने 2005-06 से कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) जमा पर ब्याज दर 8.5 फीसद बनाए रखी थी। अब मौजूदा वित्त वर्ष में एक फीसद ब्याज दर बढ़ाने की मंजूरी से कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) के 4.7 करोड़ खाताधारकों के चेहरे खिल गये हैं। गौरतलब है कि पिछले छह माह से ईपीएफओ पीएफ पर 9.5 फीसद ब्याज दर की मांग कर रहा था। लेकिन वित्त मंत्रालय का तर्क था कि ईपीएफ राशि द्मथ् विनियोग से इतना धन नहीं मिल सकता कि वह 9.5 फीसद ब्याज दे सके । साथ-साथ यह भी तर्क था कि ईपीएफओ की जमा राशि को अच्छे रिटर्न के लिए शेयर बाजार में निवेशित नहीं किया जा सकता। जबकि श्रम मंत्रालय का कहना था कि उसके पास ब्याज अधिशेष खाते (इंटरेस्ट सस्पेंस एकाउंट) में 1731.57 करोड़ रुपए बिना दावे की राशि पड़ी है। उससे वर्ष 2010-11 में सरलतापूर्वक बढ़ी हुई ब्याज राशि का भुगतान किया जा सकेगा। वस्तुत: इस बार श्रम मंत्रालय और ट्रेड यूनियनों का दबाव बढ़ने से ही पीएफ जमा पर ब्याज र में बढ़ोतरी हो सकी है । यकीनन पीएफ पर ब्याज दर बढ़ाना कई आधारों पर न्यायसंगत है। वैश्वीवकरण के इस दौर में बहुराष्ट्रीय कंपनियों के कर्मचारियों के वेतन औरसुविधाएं तेजी से बढ़ती जा रही है लेकिन सरकार के संगठित क्षेत्र के कर्मचारियों के वेतन और सुविधाएं उतनी तेजी से नहीं बढ़ी हैं। कोई व्यक्ति जिंदगी के अधिकतम कार्यशील वर्षो में अपनी सेवाएं किसी संगठन को देता है और इस दौरान अपनी कमाई का कुछ हिस्सा ईपीएफ में इसलिए जमा करता है, ताकि सेवानिवृत्ति के बाद जिंदगी में सुरक्षा व निश्ंिचतता रहे। जब सरकार खुले बाजार में छोटे निवेशकों की दीर्घकालीन जमा राशियों की भरोसेमंद वापसी की गारंटी नहीं दे पाती और सेवानिवृत्ति के बाद किसी पारिवारिक जिम्मेदारी के निर्वाह के लिए भी उसे कई विश्वसनीय सामाजिक सुरक्षा योजना सरकार नहीं देती है, तो यदि सरकार को ईपीएफ पर कुछ ज्यादा ब्याज देना पड़ रहा है, तो यह सरकार का न्यूनतम सामाजिक दायित्व है । पिछले कुछ वर्षो की बचत पर ब्याज संबंधी आंकड़े बता रहे हैं कि बचत पर मिलने वाला ब्याज पिछले चार- पांच वर्षो में बहुत कम हो गया है और जो बचत योजनाएं चल रही हैं, उनमें ब्याज की कमाई का आकर्षण बहुत कम है । लेकिन पिछले एक वर्ष में जमा पर ब्याज दरें बढ़ती गई हैं। उल्लेखनीय है कि 2011 में देश के सभी बैंकों ने जमा पर ब्याज दरें बहुत आकर्षक कर दी हैं। एफडी पर ब्याज नौ फीसद से भी अधिक है। बाजार में नकदी लिक्विडिटी कम है अत: ब्याज बढ़ाया गया है। ईपीएफ पर ब्याज कम होने का असर पीपीएफ पर भी होता है । क्योंकि ईपीएफ संगठित क्षेत्र में काम करने वालों के लिए है तो पीपीएफ असंगठित क्षेत्र के लोगों के लिए। पिछले कुछ वर्षो में कम ब्याज दरों के कारण देश के उन तमाम छोटे निवेशकों का दूरगामी आर्थिक प्रबंधन चरमरा गया है जो अपनी छोटी बचतों के जरिये जिंदगी के महत्वपूर्ण दायित्व निपटाने की सोचे होते हैं- जैसे बच्चों की पढ़ाई, शादी, सामाजिक रीतििरवाजों की पूर्ति और सेवानिवृत्ति के बाद का जीवन। लेकिन छोटी बचत पर हुए लगातार प्रहार से लघु बचतों के निवेश पर निर्भर रहने वाले सामान्य व नौकरीपेशा वर्ग पर भारी बोझ आ पड़ा है। सामाजिक सुरक्षा का प्रमुख आधार बचत कम ब्याज दर से प्रभावित हो रही है। बचत और निवेश दर के आंकड़ों से सवाल उठ रहा है कि क्या ऊंची विकास दर का सिलसिला बरकरार रह पाएगा। 2009- 10 में बचत दर 33.7 फीसद पर पहुंच गई। इसी तरह निवेश दर 36.5 फीसद पर पहुंच गई है। अपने यहां सेवानिवत्ति के बाद किसी भी नौकरीपेशा को अपनी बचत के बूते ही गुजारा करना पड़ता है जबकि विकसित देशों में सरकार किसान व गरीब जनता तथा जरूरतमंद वर्ग को प्रत्यक्ष या परोक्ष आर्थिक सहायता देती है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) द्वारा 'बेहतर विश्व के लिए आर्थिक -सामाजिक सुरक्षा' नाम से जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि आर्थिक सुरक्षा के आधार पर 96 देशों में भारत का 94वां स्थान है तथा सामाजिक सुरक्षा की दृष्टि से दुनिया के 90 देशों में भारत का 74वां स्थान है। आर्थिक सुधार विशेषज्ञों का ध्यान अमेरिका और जापान द्वारा अपने नागरिकों को उपलब्ध करायी जा रही न्यूनतम आर्थिक और सामाजिक सुविधाओं पर नहीं जाता। अमेरिका-जापान में नागरिकों को बेहतर और प्रभावशाली राष्ट्रीय स्वास्थ्य व शिक्षा सुविधा उपलब्ध है जबकि भारत में लोगों को इस तरह की कोई असरदार स्वास्थ्य व शिक्षा सुविधा उपलब्ध नहीं है। अतएव केन्द्र व वित्त मंत्रालय द्वारा पीएफ पर ब्याज दर वृद्धि भविष्य निधि से जुड़े जमाकर्ताओं के लिए ब्याज दर वृद्धि कर्मचारियों की सामाजिक सुरक्षा बढ़ाने की दिशा में न्यायसंगत व सराहनीय कदम है। अपेक्षा है कि सरकार भविष्य में भी सामाजिक सुरक्षा की दिशा में आगे बढ़ती दिखाई देगी।
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