Monday, April 25, 2011

लंदन से लाया जाए गिरवी रखा सोना


वहत्तर भारत में सोने का भंडार लगातार बढ़ रहा है। यह स्वर्ण आभूषण विक्रेताओं, घरों और रिजर्व बैंक में जमा है। विश्व स्वर्ण परिषद् द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार भारत में कुल 18 हजार टन सोने का भंडार है। 'इंडिया हार्ट ऑफ गोल्ड 2010' शीर्षक से जारी हुई सोने की उपलब्धता की यह रपट विश्व में सोने की वस्तुस्थिति को लेकर किए गए अध्ययन के बाद सामने आई है। दुनिया का 32 प्रतिशत सोना भारत के पास है। 2010 में देश में सोने की मांग 25 प्रतिशत बढ़कर 963.1 टन हो गई थी। विपुल स्वर्ण भंडार की यह उपलब्धता तब है जबकि चंद्रशेखर के प्रधानमंत्रित्वकाल में बैंक ऑफ इंग्लैंड में गिरवी रखा गया सोना आज तक वापस नहीं आया है। यदि यह आ जाता है तो भारत की स्वर्ण शक्ति में और वृद्धि दर्ज हो जाएगी। हमारे देश में इस समय सोने का जो भंडार है, उसका मूल्य अंतरराष्ट्रीय बाजार में करीब 800 अरब डॉलर है। यदि इस सोने को देश की कुल आबादी में बराबर टुकड़ों में बांटा जाए तो देश के प्रत्येक नागरिक के हिस्से में करीब आधा औंस सोना आएगा। हालांकि प्रति व्यक्ति सोने की यह उपलब्धता पश्चिमी देशों की तुलना में बहुत कम है पर इसका कारण हमारी विशालकाय आबादी है। भारतीय महिलाओं में स्वर्ण- आभूषणों के प्रति लगाव के चलते इसमें बढ़ोतरी होते जाने की उम्मीदें हैं। हमारे यहां के लोग धन की बचत करने में दुनिया में अग्रणी हैं। औसत भारतीय अपनी आमदनी का 30 फीसद हिस्सा बचत करते हैं। स्वर्ण परिषद् के आकलन के मुताबिक 2009 में देश में सोने की मांग 19 अरब डॉलर तक पहुंच गई थी। यह मांग दुनिया में सोने की कुल मांग की 15 प्रतिशत आंकी गई। पिछले एक दशक में सोने की घरेलू मांग में 13 फीसद प्रतिवर्ष की दर से वृद्धि दर्ज की जा रही थी जो 2010 में 25 फीसद तक पहुंच गई। भारतीय रिजर्व बैंक में वित्तीय वर्ष 2009 में सोने का कुल भंडार 357.8 टन था। पिछले छह वित्तीय वर्षों में रिजर्व बैंक में स्वर्ण भंडार की यही उपलब्धता दर्ज बनी चली आ रही है। मनमोहन सिंह सरकार के सात सालों के कार्यकाल में इस भंडार में कोई इजाफा नहीं हुआ है। अटल बिहारी वाजपेयी सरकार से जो स्वर्ण भंडार उन्हें विरासत में मिला था उसमें राई-रत्ती भी बढ़ोतरी अथवा घटोतरी नहीं हुई। गौरतलब है कि देश की वित्तीय हालत खराब होने पर 1991 में तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने 65.27 टन सोना बैंक ऑफ इंग्लैंड और बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट में गिरवी रखवा दिया था जो 19 साल बीत जाने पर भी यथास्थिति में है। देश की जनता के लिए यह हैरानी में डालने वाली बात है जबकि इस दौरान देश में कांग्रेस के पी.वी. नरसिंहाराव और बाद में भाजपा के अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री हुए और अब 2004 से मनमोहन सिंह इस पद पर हैं। लेकिन इस सोने की चिंता कभी किसी ने नहीं की। यद्यपि इस गिरवी रखे गए सोने के बदले जो विदेशी पूंजी भारत सरकार ने उधार ली थी, उसका हिसाब भी चुकता हो चुका है। इसके बावजूद इतने बड़े स्वर्ण भंडार को वापस लाने में सरकारों ने क्यों दिलचस्पी नहीं ली, यह आश्र्चय की बात है। हैरानी की बात यह भी है कि भारतीय रिजर्व बैंक इस सोने को विदेशी निवेश मानकर देश के मुद्रा भंडार में दर्ज भी नहीं करता!
बैंकिंग जानकारों का मानना है कि इस सोने के प्रति जो लापरवाही बरती जा रही है, वह रिजर्व बैंक अधिनियम 1934 की खुली अवहेलना है। अधिनियम के अनुच्छेद 33 (5) के अनुसार रिजर्व बैंक के स्वर्ण भंडार का 85 प्रतिशत भाग देश में रखना जरूरी है। यह सिक्कों, बिस्किट्स, ईटों अथवा शुद्ध सोने के रूप में रिजर्व बैंक या उसकी एजेंसियों के पास आस्तियों अथवा परिसम्पत्तियों के रूप में रखा होना चाहिए। इस अधिनियम से सुनिश्चित होता है कि ज्यादा से ज्यादा 15 फीसद स्वर्णभंडार ही देश के बाहर रखा जा सकता है। लेकिन इंग्लैंड में जो 65.27 टन सोना रखा है वह रिजर्व बैंक में उपलब्ध कुल सोने का 18.24 प्रतिशत है जो रिजर्व बैंक की कानूनी-शतरें के मुताबिक ही 3.24 फीसद ज्यादा है। इस सोने पर रिजर्व बैंक को एक प्रतिशत से भी कम रिटर्न हासिल होता है। 2008-2009 में जिस तेजी से सोने के अंतरराष्ट्रीय मूल्य में वृद्धि दर्ज हुई है उस हिसाब से रिजर्व बैंक में मौजूद कुल स्वर्णभंडार की कीमत 39,548.22 करोड़ बैठती है। बहरहाल सोने का मूल्य जो भी हो इंग्लैंड के बैंकों में सोने के रूप में देश की जो अमानत पड़ी है, उसे वापस लाकर देश के स्वर्णभंडार में शामिल किया जाना चाहिए। यह सोना देश की आर्थिक स्थिति मजबूत करने में लगे लोगों के खून-पसीने की खरी कमाई है, इस नाते इस स्वर्ण को सम्मानपूर्वक देश में तत्काल लाने की प्रक्रिया शुरू होनी चाहिए। सरकार ऐसा नहीं करती है तो जनता को इसके लिए सरकार को बाध्य करना चाहिए क्योंकि यह स्वर्ण तो असल में जनता का ही है।


No comments:

Post a Comment