Saturday, April 23, 2011

आईएसआई का करेंसी षड्यंत्र


पाकिस्तान ने भारत के विरुद्ध 'मनी बम' की थ्योरी ईजाद की है। करांची की सरकारी टकसाल में भारतीय जाली करेंसी छापी जाती है जिसमें 124 कर्मचारी और अधिकारी काम करते हैं। इस जाली करेंसी के बल पर ही पाकिस्तान और आईएसआई की आतंकवादी नीति और भारत विरोधी मानसिकता की सक्रियता खतरनाक रूप से आगे बढ़ रही है। 'मनी बम' की यह थ्योरी काफी पुरानी है और पाकिस्तान पिछले तीन दशकों से भारत में इसके मार्फत खतरनाक खेल-खेल रहा है। हाल में भारतीय गुप्तचर एजेंसियों ने जो आंकड़े और तथ्य जुटाये हैं उसके विशलेषण से यह बात प्रमाणित हो रही है कि हमारी अर्थव्यवस्था पाकिस्तान से आ रहे 'जाली नोटों' से खतरे में हैं। पाकिस्तान सरकार और आईएसआई के नियंतण्रऔर संरक्षण में भारतीय जाली नोट छापे जा रहे हैं। कराची स्थित जिस टकसाल में पाकिस्तान की करेंसी छापी जाती है उसी में भारतीय जाली नोट भी छापे जाते हैं। भारतीय गुप्तचर एजेंसियों के पास इसके पूरे प्रमाण मौजूद हैं। करांची स्थित करेंसी छापने वाले छापाखाने के 124 कर्मचारियों और अधिकारियों के नाम भी भारतीय गुप्तचर एंजेसिंयों के पास मौजूद हैं। फिर भी भारतीय सरकार कोई कूटनीतिक पहल नहीं कर रही है। हाल में क्रिकेट कूटनीति के तहत पाकिस्तानी प्रधानमंत्री यूसुफ गिलानी भारत आये थे। गिलानी के साथ भारतीय प्रधानमंत्री की आतंकवाद के साथ अन्य दो तरफे मुद्दों पर जरूर वार्ता हुई पर जाली करेंसी और भारतीय अर्थव्यवस्था की विध्वंसक नीति पर कोई वार्ता क्यों नही हुई? जबकि जाली करेंसी से न केवल पाकिस्तान अपनी आतंकवादवादी नीति को अंजाम दे रहा है बल्कि भारत विध्वंस के अपने जाल को भी मजबूत कर रहा है। भारतीय जनमत की एक बड़ी आबादी को भी वह भारत विरोधी बनाने में लगा है। 2010 में देश के अंदर दस करोड़ जाली करेंसी पकड़ी गयी थी जो अधिकतर पाकिस्तान से छपकर भारत आयी थी। पड़ोसी मुल्कों में सिर्फ पाकिस्तान ही जाली भारतीय करेंसी छापकर हमारी अर्थव्यवस्था और संप्रभुता को नुकसान नहीं पहुंचा रहा है। नेपाल भी इस प्रसंग में ईमानदार नहीं है। वहां अस्सी के दशक में बड़े पैमाने पर भारतीय जाली नोट छापे जाते थे जो न सिर्फ नेपाल में बल्कि सीमावर्ती भारतीय क्षेत्रों में भी चलाये जाते थे। नेपाल में भारतीय मुद्रा भी कानूनी रूप से चलन में है और भारतीय मुद्रा की कीमत भी नेपाली मुद्रा से लगभग डेढ़ गुनी है। नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री वीपी कोईराला ने एक साक्षात्कार में स्वीकारा था कि उन्होंने नेपाल में लोकतंत्र बहाली आंदोलन के दौरान जाली भारतीय करेंसी छापी थी। उनका तर्क था कि उस दौरान आंदोलन के लिए धन चाहिए था और यह जरूरत किसी और माध्यम से पूरी नहीं हो सकती थी। इसलिए भारतीय जाली करेंसी छापने की नीति अपनायी गयी। दो कारणों से नेपाल में जाली भारतीय करेंसी पकड़ मे नहीं आयी थी। एक कि नेपाली अधिकारियों ने जान- बूझकर इस अपराध पर पर्दा डाला था और दूसरा नेपाली बैंकों के पास उस समय ऐसी तकनीकी दक्षता नहीं थी जिससे जाली भारतीय करेंसी पकड़ी जाये। नेपाल में माओवादियों पर भी जाली भारतीय करेंसी छापने के आरोप हैं। जाली भारतीय करेंसी के खतरनाक खेल में आईएसआई की भूमिका गुनाहगार की है। इस संदर्भ में आईएसआई की नीति जानना कठिन नहीं है। वह घोषित तौर पर भारत विरोधी है। भारत के विध्वंस के लिए उसने भारत विरोधी आतंकवादं की नींव डाली। कश्मीर को आतंकवाद के बल पर हड़पने के साथ- साथ भारत में इस्लामिक गणराज्य की स्थापना की मानसिकता उसने मन में पाली थी। आईएसआई ने आतंकवाद के साथ-साथ अन्य खतरनाक प्रक्रियाओं के माध्यम से भारतीय संप्रभुता के खिलाफ जाल बुने हैं। जिसमें जाली भारतीय करेंसी का खतरनाक खेल भी शामिल है। आतंकवादियों को जाली नोट देकर भारत में आतंकवाद फैलाने के लिए घुसाया जाता है। जाली नोटों की बदौलत एक खास आबादी के गुमराह युवक जाली नोटों के लालच में आईएसआई की भारत विरोधी मानसिकता का वाहक बन जाते हैं। सच पूछा जाए तो इस मामले में हम स्वयं कठघरे में खड़े हैं? इसलिए कि हमारी सत्ता- कूटनीति जाली करेंसी पर उदासीनता की स्थिति से बाहर ही नहीं निकलती दिखती है। आईएसआई और पाकिस्तान के हुकुमरान भारतीय करेंसी की नकल कर जाली भारतीय करेंसी छापने में दक्षता हासिल कैसे की है? भारतीय गुप्तचर एजेंसियों का साफ कहना है कि भारतीय करेंसी की नकल ऐसी उतारी गयी है कि नकली और असली में फर्क करने के अवसर बहुत ही कम बचते हैं। आमजन भारतीय बाजारों में चलायी जा रही इस जाली करेंसी की पहचान कर ही नहीं सकते हैं। खासकर सौ, पांच सौ और एक हजार के नोटों की। कूटनीतिक जानकारियों के अनुसार पाकिस्तान इस मामले में भारतीय कूटनीतिक सवंर्ग और भारतीय सत्ता नीति की कमजोरी का लाभ वह उठा रहा है। भारतीय करेंसी छापने के लिए स्विट्जरलैंड की जिस कंपनी से उसका करार है उसी कंपनी से पाकिस्तान ने भी अपनी मुद्रा छापने का करार किया है। भारतीय करेंसी छापने के लिए जिस स्याही और कागज की जरूरत होती है उस तक पाकिस्तान की पहुंच भी है। यानी अगर वह स्याही और कागज पाकिस्तान की पहुंच में न हो तो वह हूबहू करेंसी की नकल उतार कर भारतीय अर्थव्यवस्था को नुकसान नहीं पहुंचा सकता था। ऐसी स्थिति में स्विटजरलैंड कंपनी से फौरन करार तोड़ लिया जाना चाहिए था। पर अभी तक भारत सरकार ऐसा कोई कदम नहीं उठा सकी है। समझ नहीं आता कि यह कैसी सत्ता नीति है? बहरहाल, देश की संप्रभुता पर भीषण खतरा है। हमारी संप्रभुता के खिलाफ कई परजीवी आवाजें उठ रही हैं जो दुश्मन देशों द्वारा संरक्षित और गतिशील हैं। सिर्फ कश्मीर की ही बात नहीं है। पूर्वोत्तर में कई आतंकवादी संगठन भारतीय संप्रभुता के खिलाफ पड़ोसी देशों की शह पर खूनी खेल खेल रहे हैं। चीन-पाकिस्तान इस भारत विरोधी मानसिकता का न केवल पोषण करते हैं बल्कि उन्हें धन भी देते हैं। धन के रूप में आतंकवादी-उग्रवादी संगठनों को यह जाली करेंसी ही दी जाती है। चूंकि खतरनाक और खूनी संघर्षवाले भारतीय भूभाग में प्रशासन-सत्ता की जमीनी स्तर पर उपस्थिति कम होती है। इसलिए आतंकवादी संगठन जाली करेंसी चलाने में कामयाब हो जाते हैं। दूरदराज स्थित बैंको के पास भी असली और नकली नोटों की पहचान करने वाली तकनीक का अभाव होता है। बहरहाल, जाली करेंसी संबंधी आंकड़े काफी चिंता जताने वाले है। भारतीय बाजार में पाकिस्तान द्वारा भेजे गये जाली नोटों की राशि हजारों करोड़ में है।


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