Wednesday, June 29, 2011

कृष्ण क्रांति की जरूरत


किसी आधारभूत उत्पाद या तकनीक के संदर्भ में दूसरों पर आश्रित रहना देश के अर्थतंत्र के लिए कितना भारी पड़ता है इसका ज्वलंत प्रमाण है भारत में कच्चे तेल की कमी। इसके अंतरराष्ट्रीय मूल्य के निरंतर बढ़ते जाने और वर्तमान में 110 डॉलर प्रति बैरल पार कर जाने से न सिर्फ विश्व के शेयर और अन्य बाजारों में हड़कंप मच गया है, बल्कि उसने मजबूत से मजबूत अर्थतंत्र वाले देशों को भी जड़ से हिला दिया है। इस परिस्थिति के कारण भारत को भी समय-समय पर पेट्रोलियम उत्पादों की मूल्यवृद्धि के लिए विवश होना पड़ता है। वर्तमान समय में देश की प्रमुख तेल कंपनियों की माली हालत अच्छी नहीं है और उनका घाटा बढ़ता जा रहा है। ऐसी विषम परिस्थितियों में हमें इसका स्थायी समाधान खोजना होगा। हरित क्रांति एवं श्वेत क्रांति के बाद अब समय है कृष्ण क्रांति का। पेट्रोलियम उत्पादों के क्षेत्र में देश को आत्मनिर्भर बनाने के प्रयास को कृष्ण क्रांति नाम दिया गया है। इसका उद्देश्य देश को पेट्रोल और डीजल में आत्मनिर्भर बनाना है। इसके लिए देश में एथेनॉल मिश्रित पेट्रोल एवं बायोडीजल के प्रयोग पर बल दिया जाएगा। विश्व के कई देशों जैसे संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्राजील आदि में एथेनॉल मिश्रित पेट्रोलियम का सफल प्रयोग हो रहा है। एथेनॉल गन्ना, चुकंदर, मकई, जौ, आलू, सूरजमुखी या गंध सफेदा से तैयार किया जाता है। यह पेट्रोल के प्रदूषक तत्वों को भी कम करता है। ब्राजील में बीस प्रतिशत मोटरगाडि़यों में इसका प्रयोग होता है। अगर भारत में ऐसा किया जाए तो पेट्रोल की बचत के साथ-साथ विदेशी मुद्रा की बचत में भी यह सहायक होगा। देश में 18 करोड़, 60 लाख हेक्टेयर भूमि बेकार पड़ी है। अगर मात्र एक करोड़ हेक्टेयर भूमि में ही एथेनॉल बनाने वाली चीजों की खेती की जाए तो भी देश तेल के मामले में काफी हद तक आत्मनिर्भर हो जाएगा। इसी तरह बायोडीजल के लिए रतनजोत या जटरोपा का उत्पादन किया जा सकता है। कई विकसित देशों में वाहनों में बायोडीजल का सफल प्रयोग किया जा रहा है। इंडियन ऑयल द्वारा इसका परीक्षण सफल रहा है। वर्तमान वाहनों के इंजन में बिना किसी प्रकार का परिवर्तन लाए इसका प्रयोग संभव है। जटरोपा समशीतोष्ण जलवायु का पौधा है जिसे देश में कहीं भी उगाया जा सकता है। इसे उगाने के लिए पानी की भी अत्यंत कम आवश्यकता होती है। यह बंजर जमीन पर भी आसानी से उग सकता है। जटरोपा की खेती के लिए रेलवे लाइनों के पास खाली पड़ी भूमि का उपयोग किया जा सकता है। देश में वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद, आइआइटी-दिल्ली, पंजाब कृषि विश्वविद्यालय तथा इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पेट्रोलियम, देहरादून ने जटरोपा की खेती के सफल फील्ड ट्रायल किए हैं। रेलवे ने भी बायोडीजल का सफल प्रयोग किया है। 31 जनवरी 2003 को पहली बार दिल्ली-अमृतसर शताब्दी एक्सप्रेस में इसका सफल प्रयोग किया गया। जटरोपा की व्यावसायिक खेती के लिए सरकार किसानों को अनुदान एवं आसान शर्तो पर ऋण देकर प्रोत्साहित कर सकती है। बायोडीजल को ज्यादा परिष्कृत करने की आवश्यकता भी नहीं होती। यह प्रदूषण रहित होता है। इसमें सल्फर की मात्रा शून्य होती है। इसे पर्यावरण के यूरो-3 मानकों में रखा गया है। बायोडीजल ज्वलनशील भी नहीं है। अत: इसका भंडारण और परिवहन भी आसान है। यह ईधन का श्रेष्ठ और सस्ता विकल्प होगा तथा इस ईधन की कीमत 11-12 रुपये प्रति लीटर होगी जो परंपरागत डीजल की कीमत से काफी कम है। यह सीएनजी और एलपीजी से भी सस्ती होगी। बायोडीजल की खेती से ग्रामीण क्षेत्रों में बेरोजगारी दूर होगी तथा लोगों की आय बढ़ने से आत्मनिर्भरता बढ़ेगी। इस दिशा में सरकार को जनसाधारण में भी जागरूकता करने के लिए प्रयास करना चाहिए। (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)


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