अपना छीजता खजाना भरने के लिए सरकार आपकी जेब ढीली करने की तैयारी में है। आने वाले दिनों में न सिर्फ चिट्ठी लिखना आपको महंगा पड़ सकता है बल्कि सरकारी अस्पतालों तक में इलाज कराने के लिए भी ज्यादा खर्च करना पड़ सकता है। सरकार का इरादा ऐसी सभी सेवाओं की दरों में वृद्धि करने का है जिन्हें केंद्र सरकार सीधे-सीधे जनता को पहुंचाती है। सरकार पर इस साल खजाने को भरने का भारी दबाव है। वित्त मंत्रालय मान रहा है कि इस बार उसकी करों से होने वाली आमदनी में भारी कमी हो सकती है। इसलिए उसने उन सभी संभावनाओं को टटोलना शुरू कर दिया है जहां से वह खजाने में कर आमदनी की कमी की भरपाई कर सकती हो। इसी उम्मीद में वित्त मंत्रालय ने पिछले दिनों सभी मंत्रालयों को एक पत्र लिखकर उन सभी सेवाओं की दरों में संशोधन की संभावनाएं तलाशने को कहा है जिन्हें केंद्र सरकार जनता को उपलब्ध कराती है। इन सेवाओं में डाक व स्वास्थ्य सेवाएं ही शामिल नहीं हैं। वित्त मंत्रालय का बस चला तो विदेश जाने के लिए पासपोर्ट बनवाना भी और महंगा हो जाएगा। साथ ही देशभर के दूरदराज इलाकों से गंभीर बीमारियों का इलाज अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में कराने दिल्ली आने वाली आम जनता को भी वित्त मंत्रालय की इस कवायद का खामियाजा भुगतना होगा। सूत्र बताते हैं कि वित्त मंत्रालय ने सभी मंत्रालयों को भेजे पत्र में लिखा है कि वह इन सेवाओं की पहचान कर उनमें होने वाली संभावित वृद्धि का प्रस्ताव करें। जिन्हें इस प्रस्ताव पर एतराज होगा उन्हें इसका तार्किक जवाब देना होगा कि बढ़ोतरी क्यों नहीं की जा सकती। वित्त मंत्रालय के इस कदम से जिन सेवाओं पर सबसे ज्यादा असर पड़ेगा उनमें डाक सेवाओं के तहत आने वाले पोस्टकार्ड, अंतर्देशीय पत्र, लिफाफे और मनीऑर्डर पर लिया जाने वाला कमीशन शामिल है। पोस्टकार्ड अभी पचास पैसे से लेकर दस रुपये (कंपीटिशन वाले) तक की कीमत में बिकता है। जबकि अंतर्देशीय पत्र की कीमत ढाई रुपये है। मनीऑर्डर भेजने पर बीस रुपये पर एक रुपया कमीशन देना होता है। इसके अलावा पासपोर्ट जो अभी 1000 रुपये से 1500 रुपये की फीस देने पर बन जाता है, उसकी फीस भी बढ़ सकती है। केंद्रीय स्वास्थ्य सेवा के अंतर्गत आने वाली सेवाएं भी इसी दायरे में आएंगी। वित्त मंत्रालय का बस चला तो अब इन सभी पर लोगों को अपनी जेब और ढीली करनी होगी। खजाना भरने के लिए सरकार दूसरे रास्ते पहले ही तलाश कर चुकी है। गैर कर राजस्व के तहत वित्त मंत्रालय बचे हुए 2जी स्पेक्ट्रम को बेचने के लिए संचार मंत्रालय को पहले ही सिफारिश कर चुका है.
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