Wednesday, June 15, 2011

महंगाई और बढ़ी, पसोपेश में सरकार


बढ़ती महंगाई ने सरकार को पसोपेश में डाल दिया है। रिजर्व बैंक के कठोर मौद्रिक उपायों के बाद भी महंगाई पर काबू पाना सरकार के लिए मुश्किल हो रहा है। औद्योगिक उत्पादन की घटती रफ्तार के सामने ब्याज दरों में और वृद्धि के रास्ते पर चलना भी सरकार को चुनौती भरा लग रहा है। सरकार के सामने विकास और महंगाई में से एक को चुनने का संकट खड़ा हो गया है। इस साल मई में 9.09 फीसदी पर पहुंची महंगाई दर ने रिजर्व बैंक (आरबीआइ) और सरकार दोनों के लिए परेशानी खड़ी कर दी है। अप्रैल में यह 8.66 प्रतिशत पर थी। आरबीआइ इसी सप्ताह गुरुवार को अपनी मौद्रिक नीति की मध्य तिमाही समीक्षा करेगा। यदि केंद्रीय बैंक प्रमुख ब्याज दरों में किसी तरह का फेरबदल करेगा तो आगे चलकर कर्ज महंगा होगा। यह औद्योगिक क्षेत्र की रफ्तार को भी धीमा करेगा। वैसे ही औद्योगिक उत्पादन के मामले में चालू वित्त वर्ष 2011-12 की शुरुआत अच्छी नहीं रही है। अप्रैल में इसकी दर 6.3 प्रतिशत पर ही सिमट गई है। थोक मूल्यों पर आधारित इस महंगाई के ताजा आंकड़े देख वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने भी चिंता जताई है। वित्त मंत्री ने कहा कि महंगाई को काबू में करने के लिए सरकार उचित कदम उठा रही है। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के चेयरमैन सी. रंगराजन ने भी महंगाई को परेशानी में डालने वाला बताया है। सरकार अपनी तरफ से मौद्रिक उपायों के स्थान पर महंगाई रोकने के अन्य उपायों की संभावनाएं लगातार तलाश रही है। वित्त मंत्रालय ने पशुपालन विभाग के तेल खली के निर्यात पर शुल्क लगाने के प्रस्ताव को ठुकरा दिया है। मंत्रालय का मानना है कि इससे खाद्य तेल महंगा हो सकता है। चूंकि खाद्य तेल की अहमियत महंगाई मापने के सूचकांक में काफी अधिक है, लिहाजा वित्त मंत्रालय ने दूध के स्थान पर खाद्य तेल को सस्ता रखने का विकल्प चुना है। माना जा रहा है कि महंगाई के चलते रिजर्व बैंक ब्याज दरें बढ़ाने का फैसला ले सकता है। हालांकि, उद्योग संगठन कर्ज महंगा होने का विरोध कर रहे हैं। न सिर्फ औद्योगिक उत्पादन, बल्कि छह प्रमुख उद्योगों की रफ्तार भी चालू वित्त वर्ष के शुरुआती दो महीने में घटी है। सरकार मान रही है कि अगर औद्योगिक क्षेत्र की रफ्तार यही रही तो आर्थिक विकास दर के आठ प्रतिशत के लक्ष्य को पाना भी मुश्किल हो जाएगा।


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