Wednesday, November 23, 2011

सस्ता विदेशी कर्ज बना गले की फांस


अर्थव्यवस्था के लिए दिक्कतें बढ़ा रही रुपये की घटती कीमत ने उद्योग जगत की भी नींदें उड़ा दी हैं। महंगे कर्ज से बचने के लिए विदेशी कर्ज जुटाना अब कंपनियों के गले की फांस बन गया है। घरेलू के मुकाबले अंतरराष्ट्रीय बाजार से सस्ता कर्ज उठाने वाली कंपनियों पर रुपये की कमजोरी भारी पड़ी है। इस साल डॉलर के मुकाबले रुपये में हुई तेज गिरावट ने कंपनियों की देनदारी में भारी भरकम वृद्धि कर दी है। घरेलू बाजार में कर्ज की दरें 14-15 प्रतिशत तक पहुंचने के चलते इस साल जनवरी से अब तक कंपनियों ने विदेशी बाजारों से ईसीबी के जरिए करीब 1,50,000 करोड़ रुपये का कर्ज जुटाया है। विदेशी वाणिज्यिक कर्ज (ईसीबी) के जरिए कर्ज जुटाना कंपनियों को इसलिए भी आकर्षक लगा, क्योंकि इस उधारी की ब्याज दर पांच से सात प्रतिशत थी। कम दरों पर कर्ज उठाने का कंपनियों का यह दांव रुपये के कमजोर होने से उलटा पड़ गया है। ब्रोकिंग फर्म एसएमएसी ग्लोबल सिक्योरिटी की एक रिपोर्ट के मुताबिक जनवरी से अब तक रुपये की कीमत में डॉलर के मुकाबले करीब 18 प्रतिशत गिरावट आई है। जनवरी में एक डॉलर की कीमत 44.67 रुपये के आसपास थी, वह मंगलवार को 52.70 रुपये तक पहुंच गई। ईसीबी से कर्ज जुटाकर कंपनियां ब्याज दरों के बड़े अंतर का लाभ उठाना चाहती थी। रुपये की कमजोरी से ऐसी कंपनियों पर करीब 27,000 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ गया है। एसएमसी के विश्लेषक व रिसर्च प्रमुख जगन्नाधम थुनुंगटुला का कहना है कि जिन कंपनियों ने डॉलर की मुद्रा में उतार-चढ़ाव से होने वाले जोखिम का बचाव कर लिया है, उनका नुकसान तो कम होगा। ऐसी कंपनियां, जिन्होंने यह काम नहीं किया है, उन्हें बड़ी हानि सहनी होगी।

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