Monday, November 28, 2011

एक बार फिर आर्थिक मंदी की दहलीज पर पहुंचा भारत

अमेरिका और यूरोजोन सहित दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में छाई अनिश्चितता से भारत पर भी आर्थिक संकट के बादल मंडरा रहे हैं। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही के आर्थिक वृद्धि के आंकड़े पिछले साल की तुलना में नीचे आए हैं। इंडियन पालिटिकल इकोनॉमी एसोसिएशन और वरिष्ठ अर्थशात्रियों के पैनल द्वारा तैयार सव्रे रिपोर्ट में भारत में आर्थिक वृद्धि और विकास के अंतविरेधों के बारे में बताया गया है। रिपोर्ट के अनुसार सन 2009-10 की विकास दर 8.0 प्रतिशत थी जिसके मुकाबले सन 2010-11 में विकास दर 8.6 प्रतिशत तक तेज हुई। लेकिन इस वर्ष तिमाही के आंकड़े बताते हैं कि 2010- 11 के मुकाबले 2011-12 में वृद्धि में कमी आ रही है। इस वर्ष अप्रैल से जुलाई की जीडीपी वृद्धि 7.7 प्रतिशत रही जबकि पिछले वर्ष इसी अवधि में यह 8.8 प्रतिशत रही थी। कमलनयन काबरा, अरुण कुमार त्रिपाठी और जया मेहता अर्थशास्त्रियों के इस पैनल का मानना है कि विकसित अर्थव्यवस्थाएं, विशेषकर अमेरिकी अर्थव्यवस्था धीमी पड़ गई है। वैिक मंदी के बाद भारत, चीन और कुछ अन्य उभरती अर्थव्यस्थाओं ने तेजी तो दिखाई पर मौजूदा वैिक मंदी के कारण इन अर्थव्यवस्थाओं पर भी मंदी के बादल मंडरा रहे हैं। इसका कारण साफ है कि इनकी तरक्की तो विकसित देशों को होने वाले निर्यात पर निर्भर करती है। यह असर 2011-12 में और ज्यादा मजबूत होने वाला है जिसके चलते भारत और अन्य उभरती अर्थव्यस्थाओं में मंदी आना निश्चित ही है। सव्रे में बताया गया है कि सन 2010-11 के आर्थिक सव्रेक्षण से पता चलता है कि देश की जीडीपी मे खेती और उससे जुड़े क्षेत्रों का हिस्सा मात्र 14.2 प्रतिशत ही रह गया है, जबकि इस क्षेत्र में अभी भी देश की श्रम शक्ति का 58 प्रतिशत हिस्सा लगा हुआ है। सव्रे में एनएसएसओ रिपोर्ट का उल्लेख करते हुए बताया गया है कि आज भी देश के 48.6 प्रतिशत किसान कर्ज़दार हैं। सबसे ज्यादा कर्ज का फैलाव आंध्र प्रदेश में है जहां 82 प्रतिशत किसान परिवार कर्ज के बोझ में हैं। यदि व्यापार घाटे की बात की जाए तो यह 1991 की तुलना में 25 से 30 गुना तक बढ़ गया है। वर्ष 2010 की मार्च से 2011 मई मध्य तक व्यापार घाटा 5 लाख 90 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच गया है। इसमें दिलचस्प है कि चालू खाते में भी वर्ष 2010- 11 में पहली छमाही में 1,28,569 करोड़ का घाटा रहा जिसके साल के अंत तक 2,50,000 करोड़ तक पहुंच जाने का अनुमान है।

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