जमीन भारत की और राजस्व वसूल रहा नेपाल! चौंकिए नहीं, बिहार के पूर्वी चंपारण के सीमावर्ती शहर रक्सौल में यही हो रहा है। जिले में स्थित नेपाली रेलवे स्टेशन की 28 एकड़ जमीन भारत सरकार ने 27 फरवरी 1927 को पड़ोसी मुल्क को दी थी। उद्देश्य था यातायात की सहूलियत और व्यापार को बढ़ावा देना। 1960 में इस रेलखंड में ट्रेनों का परिचालन बंद हो गया। इसके बाद 28 एकड़ जमीन में कुछ पर दबंगों ने कब्जा जमा लिया तो कुछ भाग को नेपाल ने लीज पर उठा दिया। कब्जा करने वाले और लीजधारी जमीन से सालाना लाखों की उगाही कर रहे हैं। सब कुछ पता होने के बाद भी रक्सौल नगर परिषद व अंचल कार्यालय मूकदर्शक बने हैं। नेपाल के अधिकारियों का कहना है कि उनके मुल्क ने यह जमीन तत्कालीन ब्रिटिश सरकार से 31,725 रुपये में खरीदी थी। आजादी के बाद वीरगंज से काठमांडू के लिए पर्याप्त बसें चलने लगीं तो इस रेलखंड में यातायात बंद कर दिया गया। इसके बाद गरीबों ने यहां झोपडि़यां बना लीं। नेपाल के एक व्यापारिक संस्थान ने विशाल गोदाम बना लिया। नेपाल सरकार ने इस भूखंड से राजस्व हासिल करने के लिए छोटे-बड़े तालाबों को मछली पालन के लिए लीज पर दे दिया। खाली पड़े भूखंड और सार्वजनिक मार्गो से राजस्व वसूली होने लगी। नेपाल की योजना यहां बनीं झोपडि़यों से भी भाड़ा वसूलने की थी, पर लोगों के सड़क पर उतरने के कारण मामला खटाई में पड़ गया। इस बारे में रक्सौल के अंचलाधिकारी प्रदीप कुमार सिन्हा ने बताया कि इस भूमि से संबंधित खास कागजात उपलब्ध नहीं हैं। 50 वर्षो से मालगुजारी रसीद भी नहीं कटाई गई है। नगर परिषद के कार्यपालक पदाधिकारी राजेन्द्र प्रसाद सिंह का कहना है कि इस जमीन का होल्डिंग कायम है, परंतु नगर परिषद का टैक्स पिछले चार दशकों से बकाया है। कानूनन 12 वर्षो तक मालगुजारी न देने और मालिकाना हक का दावा न करने पर भूमि कब्जाधारी की हो जाती है। उल्लेखनीय है कि रक्सौल में जमीन की कीमतें आसमान छू रही हैं। निबंधन कार्यालय के अनुसार, हाल ही में शहर से हटकर सरकार ने खेतिहर भूमि तक का अधिग्रहण 5 लाख 22 हजार रुपये प्रति कट्ठा किया गया है। ऐसे में शहर से सटी इस जमीन की कीमत सहज ही आंकी जा सकती है।
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