अक्सर शांत रहने वाले इस्पात मंत्री वीरभद्र सिंह ने भी अब परियोजनाओं में देरी के लिए परोक्ष रूप से पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश पर निशाना साधा है। बहुराष्ट्रीय इस्पात कंपनी पोस्को और आर्सेलर-मित्तल की 1.5 लाख करोड़ रुपये की परियोजनाओं में देरी पर अफसोस जताते हुए उन्होंने इसे राष्ट्रीय नुकसान बताया है। उनका मानना है कि इतनी बड़ी परियोजनाओं को तरजीह देने की बजाय इन्हें आम परियोजनाओं की तरह देखा गया। इससे पहले खनन क्षेत्र में गो व नो गो की परिभाषा व्यावहारिक नहीं होने के चलते रमेश कोयला मंत्री श्रीप्रकाश जायसवाल और योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह आहलूवालिया के निशाने पर रहे हैं। वीरभद्र सिंह ने कहा कि मैं इसे लेकर व्यक्तिगत तौर पर दुखी हूं। मुझे लगता है कि यह राष्ट्रीय नुकसान है। उन्होंने कहा कि हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जिन प्रक्रियाओं को लागू किया जाना है, उसे तेजी से लागू किया जाए। परियोजनाओं में देरी से हमारी उत्पादन क्षमता प्रभावित हुई है और हमें 3.6 करोड़ टन का नुकसान हुआ है। पोस्को और आर्सेलर मित्तल द्वारा स्टील संयंत्र लगाए जाने का मामला पिछले पांच साल से लटका है। पोस्को की उड़ीसा परियोजना को पर्यावरण मंत्रालय की मंजूरी का इंतजार है। इसके अलावा दोनों परियोजनाओं को जमीन अधिग्रहण और विरोध संबंधी कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि पोस्को और आर्सेलर मित्तल ने अपनी परियोजनाओं की स्थापना को लेकर गंभीरता दिखाई है लेकिन प्रधानमंत्री कार्यालय समेतच्उच्च स्तर पर चिंता जताए जाने के बावजूद परियोजनाएं लटकी हुई हैं। हम चाहते हैं कि कानून के तहत सभी बाधाएं दूर हो। पोस्को परियोजना उड़ीसा सरकार के लिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसके जरिए 54,000 करोड़ रुपये का प्रत्यक्ष पूंजी निवेश आएगा। दक्षिण कोरियाई कंपनी पोस्को ने उड़ीसा सरकार के साथ 1.2 करोड़ टन सालाना क्षमता का कारखाना लगाने के लिए 2005 में समझौता किया था। कंपनी के निवेश को अबतक का सबसे बड़ा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश माना जा रहा है। इसी तरह दुनिया की दिग्गज स्टील कंपनी आर्सेलर मित्तल ने झारखंड सरकार के साथ 2005 में समझौता किया था। इसके साल बाद कंपनी ने उड़ीसा सरकार के साथ समझौता किया। कंपनी लगभग एक लाख करोड़ रुपये के निवेश से 1.2-1.2 करोड़ टन सालाना क्षमता का कारखाना दोनों राज्यों में लगाना चाहती है। मगर उसे भी कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
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