Tuesday, December 21, 2010

धीमी रही विदेशी निवेश की रफ्तार

नई दिल्ली, एजेंसी : इस साल देश में पिछले साल के मुकाबले प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआइ) में कमी आई है। इसकी मुख्य वजह वैश्विक अर्थव्यवस्था के पटरी पर लौटने की धीमी गति और दुनियाभर की कंपनियों द्वारा जोखिम लेने या विस्तार करने की इच्छा में कमी है। जनवरी-अक्टूबर, 2010 के दौरान देश में 17.37 अरब डॉलर का एफडीआइ आया। एक साल पहले की इसी अवधि में यह 23.8 अरब डॉलर था। इस साल के पहले दस माह के दौरान देश में विदेशी निवेश का प्रवाह 27 फीसदी घटा। हालांकि, देश में कम विदेशी निवेश आने के लिए न तो अर्थव्यवस्था और न ही सरकार को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। विश्व बैंक की एक ताजा रिपोर्ट विश्व निवेश और राजनीतिक जोखिम में विकासशील देशों में एफडीआइ प्रवाह घटने का उचित कारण बताया गया है। रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2008 के वैश्विक आर्थिक संकट से बहुराष्ट्रीय उपक्रम सबसे ज्यादा प्रभावित हुए। वर्ष 2008 और वर्ष 2009 में वैश्विक वृद्धि कम रहने से उनका मुनाफा प्रभावित हुआ है। रिपोर्ट के मुताबिक वैश्विक अर्थव्यवस्था की स्थिति में सुधार हुआ है, लेकिन इसकी गति काफी धीमी है, क्योंकि विकसित देशों में मंदी का असर बहुत ज्यादा था। नीतिगत स्तर पर इस साल मल्टीब्रांड रिटेल क्षेत्र को प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए खोलने की मांग ने जोर पकड़ा। चूंकि अब भारतीय कंपनियां वैश्विक हो रही हैं, इसलिए एफडीआइ सिर्फ एकतरफा नहीं है। आज की तारीख में भारत से दूसरे देशों में निवेश भी काफी महत्वपूर्ण हो गया है। भारतीय रिजर्व बैंक के ताजा आंकड़ों के मुताबिक चालू वित्त वर्ष की अप्रैल-जून की अवधि में दूसरे देशों को भारतीय निवेश में 2.8 अरब डॉलर का इजाफा हुआ है। आर्थिक संकट की वजह से वर्ष 2009 में विकासशील देशों का दूसरे देशों में निवेश घटा था। औद्योगिक नीति एवं संवर्धन विभाग (डीआइपीपी) ने रक्षा क्षेत्र में भी एफडीआइ की सीमा बढ़ाने की इच्छा जताई है। इसके लिए इस नोडल एजेंसी ने परिचर्चा पत्र भी जारी किया है। हालांकि, रक्षा मंत्रालय इसका विरोध कर रहा है। पहले की तरह इस साल भी मॉरीशस देश में एफडीआइ का प्रमुख स्रोत रहा। इसकी वजह मॉरीशस की भारत के साथ दोहरा कराधान बचाव संधि है। साल के दौरान सिंगापुर, अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, जापान, फ्रांस और संयुक्त अरब अमीरात की कंपनियों ने भारत में सबसे ज्यादा निवेश किया। भारत का सेवा क्षेत्र (वित्तीय और गैर वित्तीय) भी विदेश कंपनियों को लुभाता रहा है। वर्ष 2010-11 के पहले सात महीनों के दौरान इन क्षेत्रों में 10 अरब डॉलर का विदेशी निवेश आया। विदेशी निवेश पाने के मामले में महाराष्ट्र, दिल्ली और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्से और हरियाणा आगे रहे।

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