मुंबई सरकार ने यह सोच कर प्याज के निर्यात पर पाबंदी लगाई है कि इससे घरेलू बाजार में प्याज की कीमतें नियंत्रित होंगी। मगर प्याज उत्पादकों का मानना है कि इस बार खरीफ की फसल में प्याज की वह गुणवत्ता ही नहीं मिल रही है, जिसे निर्यात किया जा सके। प्याज का सबसे ज्यादा उत्पादन करने वाले नासिक के लासलगांव तालुका में इस खेती से जुड़े चांगदेव होलकर बताते हैं कि इस वर्ष दीवाली के बाद तक होती रही बरसात ने न सिर्फ महाराष्ट्र, बल्कि दक्षिण भारत के आंध्र प्रदेश, कर्नाटक व तमिलनाडु में भी प्याज की खरीफ फसल को भारी नुकसान पहुंचाया है। इसके कारण नई फसल की पैदावार एवं गुणवत्ता दोनों प्रभावित हुई हैं। होलकर नैफेड के निदेशक भी हैं। वह इस बात से सहमत नहीं हैं कि प्याज के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने से उसके मूल्यों को लंबे समय तक नियंत्रित रखा जा सकेगा। उनके मुताबिक देश से निर्यात होने वाले प्याज का 80 प्रतिशत महाराष्ट्र से ही होता था। लेकिन इस बार हुई फसल की गुणवत्ता ही इस काबिल नहीं है कि उसे विदेश में पसंद किया जाए। दरअसल, सामान्य मौसम में नासिक में होने वाले लाल या हल्के लाल प्याज का आकार 34 से 44 मिलीमीटर व्यास का होता है। इनमें से 54 से 44 मिलीमीटर वाला प्याज विशेष तौर पर खाड़ी देशों को निर्यात होता है। 34 से 54 मिलीमीटर वाला प्याज कोलंबो, सिंगापुर व मलेशिया जाता है। इससे छोटे आकार का प्याज बांग्लादेश और नेपाल आदि देशों को निर्यात किया जाता है। लेकिन इस वर्ष प्याज की खरीफ फसल की गुणवत्ता इतनी खराब हुई है कि ज्यादातर प्याज 24 से 34 मिलीमीटर का ही है। जबकि इस आकार के प्याज को विदेश में बहुत कम पसंद किया जाता है। लिहाजा सरकार के प्याज निर्यात पर रोक लगाने से पहले भी जो प्याज निर्यात होता रहा है, वह इस वर्ष की पैदावार थी ही नहीं। वहीं बारिश के कारण खराब हुई खरीफ की फसल के बाद अब बची-खुची फसलों को रोग ने घेरना शुरू कर दिया है और अगली फसल के लिए बीज के दाम भी आसमान छूने लगे हैं। ऐसे में प्याज के दामों को ठंडा करना सरकार के लिए आसान नहीं होगा.
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