महंगाई से खौफजदा सरकार इस बार दालों की अच्छी पैदावार और अपेक्षाकृत कम कीमतों के बावजूद इसका और अधिक आयात करने की तैयारी कर रही है। खाद्य मंत्रालय मंत्रिसमूह के सुझावों को दरकिनार करते हुए दालों के आयात की तैयारियों में जुटा है। हालांकि सरकारी एजेंसियों के दाल आयात से सरकार पर 400 करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ पड़ने वाला है। खाद्य मंत्रालय का तर्क है कि पिछले साल की तरह दालें महंगी न हो जाएं, इसीलिए इस बार 9 लाख टन दालों के आयात का प्रस्ताव तैयार किया गया है। सरकारी एजेंसियां अब तक 5.25 लाख टन दालों का आयात कर चुकी हैं। इस साल खरीफ सीजन में दलहन की पैदावार पिछले साल के मुकाबले 17 लाख टन अधिक हुई है। जहां पिछले साल खरीफ सीजन में दलहन की पैदावार 43 लाख टन हुई थी, वहीं इस साल दलहन उत्पादन का आंकड़ा 60 लाख टन को पार कर गई है। खास तौर पर अरहर की पैदावार में उल्लेखनीय प्रगति हुई है। यही वजह है कि घरेलू बाजार में कीमतें बहुत नीचे पहुंच गई हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी दालों की पूछ न होने से मूल्य सतह पर पहुंच गए हैं। बुधवार को मुंबई बंदरगाह पर अफ्रीकी देशों की आयातित अरहर 2,600 रुपये और म्यांमार की 2,850 रुपये प्रति क्ंिवटल पड़ रही थी। दालों की घरेलू कमी को पूरा करने के लिए हर साल 30 से 40 लाख टन दालों का आयात होता है। इस साल अब तक केंद्र के निर्देश पर राशन की दुकानों पर बेचने के लिए सरकारी एजेंसियों ने 5.25 लाख टन दालों का आयात किया है। इस दाल पर 10 रुपये प्रति किलो की सब्सिडी का प्रावधान है। पिछले साल राशन दुकानों के लिए कुल 6 लाख टन दालें आयात की गईं थीं, लेकिन तब दालों के मूल्य सातवें आसमान छू रहे थे। इस साल खरीफ सीजन में दालों की पैदावार में भारी इजाफा हुआ है। इसके चलते मूल्य निचले स्तर पर चल रहे हैं, जबकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी इसकी कीमतें काफी नीचे हैं।
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