सरकार को अक्टूबर में ही संकेत मिल गया था कि प्याज की उपज कम होने वाली है। इसके बाद भी सरकार ने सच्चाई को नजरअंदाज किया। हालत इतनी खराब है कि महाराष्ट्र व कर्नाटक जैसे बड़े प्याज उत्पादक राज्यों में 40 फीसदी तक फसल सड़ गई है। जबकि उत्तरी राज्यों में 20 फीसदी तक उत्पादन प्रभावित हुआ है। फिर भी सरकार ने प्याज का निर्यात जारी रखा। अब निर्यात पर पाबंदी और शुल्क मुक्त आयात के बूते प्याज की आपूर्ति बढ़ाने की कोशिशों कासफल होना मुश्किल है। दक्षिण व पश्चिम के राज्यों में देर तक चली बारिश ने प्याज की फसल को काफी नुकसान पहुंचाया है। महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे प्याज उत्पादक राज्यों में प्याज की खेती को 40 फीसदी तक नुकसान हो चुका है। शेष बची प्याज का भंडारण मुश्किल है। इन दो राज्यों में देश का 40 फीसदी प्याज पैदा होता है। इन राज्यों में पैदावार 31 लाख टन से घटकर 18 लाख टन रह गई है। गुजरात, मध्य प्रदेश और राजस्थान में 19 लाख टन प्याज के उत्पादन का अनुमान था। यहां भी केवल 15 लाख टन प्याज ही पैदा हुआ है जिससे मांग व आपूर्ति का अंतर बहुत अधिक बढ़ गया। यह आंकड़ा अक्टूबर में सरकार के सामने था लेकिन तब सरकार उपज में केवल पांच फीसदी की गिरावट मान रही थी। सरकार इस मुगालते में थी कि शीत गृहों में जमा प्याज के जरिये आपूर्ति को संतुलित कर लिया जाएगा। प्याज के दाम नवंबर के मध्य में 40 से 50 रुपये किलो हुए तो नैफेड ने कुछ उपायों की घोषणा तो की, लेकिन उस पर अमल नहीं किया गया। उपज खराब होने के बीच निर्यात जारी रहना प्याज पर भारी पड़ा है। इस नवंबर में पिछले साल के मुकाबले 30 हजार टन ज्यादा प्याज का निर्यात हो गया था। दिसंबर में भी अब तक 10 हजार टन प्याज का निर्यात हो चुका है। यानी संकट का आभास 17 तक नहीं था। देश में कुल एक करोड़ टन से अधिक प्याज की खपत होती है। पिछले साल प्याज का कुल उत्पादन 1.21 करोड़ टन था, जिसमें 18 लाख टन प्याज निर्यात किया गया था। जबकि अप्रैल-नवंबर तक 11.3 लाख टन प्याज का निर्यात किया जा चुका है।
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