प्याज के आसमान छू रहे दामों से अगर आप-हम प्रभावित हैं, तो किसान भी कोई मलाई नहीं काट रहे। सच तो यह है कि इस तेजी का उन्हें कोई फायदा नहीं मिला है। अलबत्ता मजा मार रहे हैं मंडियों के खुदरा व्यापारी और बिचौलिए। आप जिस प्याज को 70 से 80 रुपये किलो में खरीद रहे हैं, उसके लिए किसानों को महज 15 से 20 रुपये प्रति किलो से ज्यादा नहीं मिल रहे। पहले दक्षिण के राज्यों में समुद्री तूफान के बाद आई भारी बारिश ने प्याज की फसल चौपट की, अब असमय बारिश से प्रमुख प्याज उत्पादक राज्यों- महाराष्ट्र और राजस्थान में काफी फसल खेतों में ही सड़ गई। लिहाजा किसानों को कोई फायदा नहीं हुआ। लेकिन बाजार में इससे प्याज की आवक जरूर घट गई, जिसने मंडियों के खुदरा व्यापारियों और बिचौलियों को मालामाल कर दिया। इस वक्त अगर भारत अपनी जरूरत को पूरा करने के लिए कहीं से प्याज मंगा सकता है तो वह पाकिस्तान है। हालांकि पड़ोसी देश की खुद की ही खपत काफी ज्यादा है। भारत में औसतन सालाना 40 लाख टन प्याज की खपत है। प्याज में बढ़ोतरी के पीछे जमाखोरी की बात तो खुद केंद्र सरकार के मंत्री भी कर रहे हैं। प्याज के दाम अचानक जिस तेजी से बढ़े हैं, फिलहाल उससे तो यही संकेत मिलते हैं। दिसंबर की शुरुआत तक जो प्याज 30 रुपये प्रति किलो तक बिक रहा था, 21 दिसंबर को उसी के दाम 80 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गए। अब सरकार के संदेह की सुई भी इसी ओर घूम गई है। आनंद शर्मा ने तो सोमवार को प्याज की कीमतों में अप्रत्याशित तेजी के पीछे सीधे जमाखोरी को ही कारण बता दिया था। वहीं इसके एक रोज बाद वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी ने प्याज की तेजी को आपूर्ति में खामियों से जोड़ दिया। वैसे प्याज के निर्यात पर रोक लगाए जाने के एक दिन बाद ही वहीं दिल्ली स्थित एशिया की सबसे बड़ी सब्जी मंडी आजादपुर में इसके थोक भाव मंगलवार को 5,500 रुपये प्रति क्विंटल रहे। वहीं देश में प्याज के मुख्य उत्पादक महाराष्ट्र के नासिक के थोक बाजारों में प्याज की कीमतें 33 प्रतिशत तक घट गईं। लासालगांव में प्याज का थोक मूल्य सोमवार के 6,299 रुपये प्रति क्विंटल से घटकर 5,200 रुपये प्रति क्विंटल रह गया। हालांकि यहां के थोक मूल्य में इस गिरावट का असर खुदरा बाजार तक पहुंचने में कुछ समय लगेगा।
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